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अ॒क॒र्मा दस्यु॑र॒भि नो॑ अम॒न्तुर॒न्यव्र॑तो॒ अमा॑नुषः । त्वं तस्या॑मित्रह॒न्वध॑र्दा॒सस्य॑ दम्भय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

akarmā dasyur abhi no amantur anyavrato amānuṣaḥ | tvaṁ tasyāmitrahan vadhar dāsasya dambhaya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒क॒र्मा । दसुः॑ । अ॒भि । नः॒ । अ॒म॒न्तुः । अ॒न्यऽव्र॑तः । अमा॑नुषः । त्वम् । तस्य॑ । अ॒मि॒त्र॒ऽह॒न् । वधः॑ । दा॒सस्य॑ । द॒म्भ॒य॒ ॥ १०.२२.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:22» मन्त्र:8 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अकर्मा) जो सत्कर्मशून्य-धर्मकर्मरहित (दस्युः) पीडक तथा (अमन्तुः) दूसरे को मान न देनेवाला गर्वित (अन्यव्रतः) अन्यथाचारी (अमानुषः) मनुष्यस्वभाव से भिन्न (नः-अभि) हमारे पर अभिभूत होता है-हमें दबाता है-सताता है (तस्य दासस्य) उस नीच जन का (वधः) जो हननसाधन है (त्वम्-अमित्रहन्) तू क्रूरजन के हन्ता परमात्मन् या राजन् ! (दम्भय) उसे नष्ट कर ॥८॥
भावार्थभाषाः - धर्म-कर्मरहित, गर्वित, अन्यथाचारी, मनुष्यस्वभाव से भिन्न, दूसरों को दबानेवाले, सतानेवाले को परमात्मा या राजा नष्ट किया करता है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

दास का दामन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में 'अमानुष' के विनाशक बल की आराधना की गई थी। प्रस्तुत मन्त्र में उसी 'अमानुष' का स्पष्टीकरण करते हुए कहते हैं कि यह (अकर्मा) = [अविद्यमानयागादि कर्मा सा० ] यह यज्ञादि उत्तम कर्मों में कभी प्रवृत्त नहीं होता। [२] यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त होना तो दूर रहा, यह (दस्युः) = [उपक्षपयिता] औरों के विनाशकारी कर्मों में प्रवृत्त होता है, इसको दूसरों के कार्यों में विघ्न करना ही रुचिकर होता है। दूसरों की हानि में यह मजा लेता है। [३] यह (नः) = हमारा (अभि) = लक्ष्य करके (अमन्तुः) = न विचार करनेवाला है। जगत् को यह अनीश्वर मानता है। ईश्वर की सत्ता को न मानता हुआ, यह संसार को 'अपरस्पर संभूत-कामहैतुक' मानता है। इसके प्रातः- सायं प्रभु के ध्यान करने का प्रश्न ही नहीं उठता। [४] (अन्यव्रतः) = श्रुति प्रतिपादित कर्मों को न करके अन्य कर्मों में ही यह व्यापृत रहता है। 'धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः '-' धर्म को जानने की इच्छा वालों के लिये श्रुति ही परम प्रमाण है' ये मनु के शब्द इनको इष्ट नहीं हैं। ये श्रुति विरुद्ध कर्मों में ही आनन्द लेने का प्रयत्न करते हैं । [५] (अमानुषः) = ये क्रूर स्वभाव के राक्षस होते हैं। इनमें मनुष्यता नहीं है। ये [Humane] = दयालु न होकर Inhumane = क्रूर व बर्बर होते हैं। [६] हे (अमित्रहन्) = हमारे शत्रुओं के नष्ट करनेवाले प्रभो ! (त्वं) = आप ही (तस्य दासस्य) = उस औरों का नाश करनेवाले के (वधः) = मारनेवाले हो। इस दस्यु का नाश आप ही कर सकते हो । सो कृपया (दम्भय) = इस को आप नष्ट करिये। राष्ट्र में राजा प्रभु का ही प्रतिनिधि होता है। सो राजा का यह कर्तव्य है कि वह इन अमानुष लोगों को नष्ट करके प्रजा का उचित रक्षण करें। ऐसे लोगों से पीड़ित हुई हुई प्रजायें उन्नति के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ पाती। इन से आनेवाले कष्ट कहलाते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- ' अकर्मा, दस्यु, अमन्तु, अन्यव्रत, अमानुष' पुरुष ही दास हैं। इनसे भिन्न आर्य हैं। प्रभु कृपा से व राज- प्रयत्न से राष्ट्र में आर्यों का वर्धन व दासों का वध हो ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अकर्मा) यः सत्कर्मशून्यः (दस्युः) उपक्षयकर्त्ता (अमन्तुः) अन्यस्मै न मानदः स्वयं मर्षितः (अन्यव्रतः) अन्यथाचारी कदाचारी (अमानुषः) मनुष्यस्वभावभिन्नः (नः-अभि) अस्मानभिभवति (तस्य दासस्य) तस्य नीचजनस्य (वधः) या वधः-हननसाधनमस्ति (त्वम्-अमित्रहन्) त्वं क्रूरजनस्य हन्तः परमात्मन् राजन् वा ! (दम्भय) नाशय ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Whoever or whatever be negative, incorrigible, corrosive, without commitment or ill-committed, anti human and anti-life, that negative and destructive force, O destroyer of the unfriendly, saboteurs and destroyers, control, suppress and eliminate.