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त्वं त्या चि॒द्वात॒स्याश्वागा॑ ऋ॒ज्रा त्मना॒ वह॑ध्यै । ययो॑र्दे॒वो न मर्त्यो॑ य॒न्ता नकि॑र्वि॒दाय्य॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ tyā cid vātasyāśvāgā ṛjrā tmanā vahadhyai | yayor devo na martyo yantā nakir vidāyyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । त्या । चि॒त् । वात॑स्य । अश्वा॑ । आ । अ॒गाः॒ । ऋ॒ज्रा । त्मना॑ । वह॑ध्यै । ययोः॑ । दे॒वः । न । मर्त्यः॑ । य॒न्ता । नकिः॑ । वि॒दाय्यः॑ ॥ १०.२२.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:22» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वं चित्) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्। तू ही (वातस्य) प्राण के (त्या-ऋज्रा-अश्वा) उन ऋजुगामी गतिशील शरीर में व्यापक प्राण, अपान, श्वास, प्रश्वास (वहध्यै) वहने चलाने के लिए (त्मना-अगाः) स्वकीयरूप से चलाता है (ययोः-यन्ता) जिन श्वास-प्रश्वासों को चलानेवाला (देवः-न मर्त्यः) न मुमुक्षु और न मरणधर्मा साधारण जन है (नकि-विदाय्यः) न कोई वेत्ता न ज्ञाता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - प्राण के ऋजुगामी श्वास-प्रश्वासों को चलाने के लिए परमात्मा तू ही समर्थ है। तुझसे अतिरिक्त न कोई मुमुक्षु, न कोई इसका ज्ञाता ही है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

इन्द्रियों की प्रबलता

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (त्वम्) = हे (इन्द्र) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता जीव ! तू (त्या) = उन (वातस्य) = वायु के (चित्) = भी (अश्वा) = घोड़ों को अर्थात् वायु के समान वेगवान् व बलवान् इन्द्रियाश्वों को (आगा:) = सर्वथा प्राप्त होता है । ये इन्द्रियाश्व तेरे अधिष्ठातृत्व में (ऋज्रा) = ऋजु मार्ग से चलनेवाले हैं। तू इन्हें (त्मना) = स्वयं (वहध्यै) = वहन के लिये प्राप्त होता है। तू इनका अधिष्ठाता बनता है, ये तुझे इधर-उधर भटकानेवाले नहीं होते । [२] तू उन ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप अश्वों को लक्ष्य स्थान की ओर ले चलता है, (ययोः) = जिनका (यन्ता) = काबू करनेवाला (न देवः) = न तो देव है, (न) = और ना ही (मर्त्यः) = मनुष्य | बड़े-बड़े विद्वान् भी इन इन्द्रियाश्वों को काबू नहीं कर पाते, मनुष्य की तो क्या शक्ति है कि इन्हें काबू कर सके ? इन इन्द्रियाश्वों की शक्ति को (विदाय्यः) = जाननेवाला भी (नकिः) = कोई नहीं है । 'इन्द्रियाणि प्रमाथीनि' इन शब्दों के अनुसार ये इन्द्रियाँ मनुष्य को कुचल देनेवाली हैं। इनका संयम सुगम नहीं। इतनी प्रबल शक्ति वाली भी इन इन्द्रियों को वह जीव, जो कि प्रभु का प्रिय पुत्र बनने का प्रयत्न करता है, अपने वश में करके ऋजु मार्ग से जीवनयात्रा में आगे बढ़ता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- इन्द्रियों को वश में करना कठिन है। एक साधक ही इन इन्द्रियों को वश में करके जीवनयात्रा को सिद्ध करता है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वं चित्) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! त्वं हि, चित् पूजायामत्र “आचार्यश्चिदिदं ब्रूयादिति पूजायाम्” [निरु० १।४] (वातस्य) प्राणस्य (त्या-ऋज्रा-अश्वा) तावृजुगामिनौ गतिमन्तौ शरीरे व्यापिनौ प्राणापानौ श्वासप्रश्वासौ (वहध्यै) वहनाय चालनाय (त्मना-अगाः) स्वीयस्वरूपतः-गमयास ‘अन्तर्गतणिजर्थः’ (ययोः-यन्ता) ययोः प्राणापानयोः श्वासप्रश्वासयोर्यमयिता चालयिता (देवः-न मर्त्यः) न मुमुक्षुर्न मरणधर्मा साधारणजनोऽस्ति  (नकिः-विदाय्यः) न कश्चिद् वेत्ता ज्ञाताऽस्ति ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - You by yourself impel those two straight and natural currents of cosmic energy of which there is no other impeller divine or human, nor is any one else who really knows. (The energies may be interpreted as prana and apana of the body system too.)