वांछित मन्त्र चुनें

म॒हो यस्पति॒: शव॑सो॒ असा॒म्या म॒हो नृ॒म्णस्य॑ तूतु॒जिः । भ॒र्ता वज्र॑स्य धृ॒ष्णोः पि॒ता पु॒त्रमि॑व प्रि॒यम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

maho yas patiḥ śavaso asāmy ā maho nṛmṇasya tūtujiḥ | bhartā vajrasya dhṛṣṇoḥ pitā putram iva priyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हः । यः । पतिः॑ । शव॑सः । असा॑मि । आ । म॒हः । नृ॒म्णस्य॑ । तू॒तु॒जिः । भ॒र्ता । वज्र॑स्य । धृ॒ष्णोः । पि॒ता । पु॒त्रम्ऽइ॑व । प्रि॒यम् ॥ १०.२२.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:22» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:3


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो इन्द्र ऐश्वर्यवान् परमात्मा (महः शवसः पतिः) महान् बल आत्मबल का पालक रक्षक और दाता है (महः नृम्णस्य-असामि-आ-तूतुजिः) न समाप्त होनेवाले महान् मोक्ष धन का शीघ्र दाता है (धृष्णोः वज्रस्य) धर्षणशील ओजस्वी उपासक का (प्रियं पुत्रम्-इव पिता) प्यारे पुत्र के प्रति पिता के समान है ॥३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा महान् बल-आत्मबल का स्वामी तथा रक्षक एवं पालक है, महान् धन-मोक्ष का प्रदान करनेवाला है। वह दृढ़ अभ्यासी ओजस्वी उपासक प्रियपुत्र के प्रति पिता के समान व्यवहार करता है ॥३॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'बल के स्वामी' प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में हमारे से स्तुति किये जानेवाले प्रभु वे हैं (यः) = जो कि (महः शवसः) = महान् बल के (पतिः) = स्वामी हैं । उस प्रभु की शक्ति अनन्त है, उसकी शक्ति महनीय है । [२] वे प्रभु (महो नृम्णस्य) = महान् धन के (असामि) = पूर्णरूपेण (आतूतुजि:) = सब प्रकार से हमारे में प्रेरक हैं। अर्थात् प्रभु कृपा से हमें वह महनीय धन प्राप्त होता है जो कि हमारे सब सुखों का साधन बनता है । [३] वे प्रभु (वज्रस्य) = [वज गतौ] गतिशील और अतएव (धृष्णोः) = कामादि शत्रुओं का धर्षण करनेवाले व्यक्ति का भर्ता भरण करनेवाले हैं। (इव) = उसी प्रकार भरण करनेवाले हैं जैसे कि (पिता) = एक पिता (प्रियं पुत्रम्) = प्रिय पुत्र का भरण करता है। 'स्वास्थ्य, सदाचार व स्वाध्याय' आदि गुणों से पिता को प्रीणित करनेवाला पुत्र पिता के लिये सदा प्रिय होता है और पिता उसका अवश्य भरण करते हैं । इसी प्रकार क्रियाशील व कामादि से युद्ध करके उनके धर्षण में प्रवृत्त जीव प्रभु का प्रिय होता है और प्रभु इसे महनीय शक्ति व धन प्राप्त कराते हैं। इन्हें प्राप्त करके यह उन्नतिपथ पर अग्रसर होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु अनन्त शक्ति के स्वामी हैं, वे हमारे में शक्ति व धन को प्रेरित करते हैं, जिससे उन्नत होकर हम प्रभु के प्रिय पुत्र बन पायें ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) य इन्द्र ऐश्वर्यवान् परमात्मा (महः शवसः पतिः) महतो बलस्य-आत्मबलस्य पालको रक्षको दाता “शवः बलनाम” [निघ० २।९] (महः नृम्णस्य-असामि-आ तूतुजिः) महतो धनस्य मोक्षैश्वर्यस्य “नृम्णं धननाम” [निघ० २।१० ] असुसमाप्तश्च शीघ्रकारी-शीघ्रदातेत्यर्थः, “तूतुजिः क्षिप्रनाम” [निघ० २।१५] “तूतुजिः शीघ्रकारी” [ऋ० ४।३२।२ दयानन्दः] (धृष्णोः वज्रस्य) धर्षणशीलस्य प्रखरौजसः-ओजस्विन उपासकस्य ‘मतुब्लोपश्छान्दसः’ (प्रियं पुत्रम्-इव पिता) प्रियं पुत्रं प्रति पिता-इव-अस्ति ॥३॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Mighty master, commander and giver of great strength is he, perfect, unequalled and great giver of wealth and power, wielder of the awful thunderbolt and father protector and promoter of humanity as of his own children.