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अ॒स्मे ता त॑ इन्द्र सन्तु स॒त्याहिं॑सन्तीरुप॒स्पृश॑: । वि॒द्याम॒ यासां॒ भुजो॑ धेनू॒नां न व॑ज्रिवः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asme tā ta indra santu satyāhiṁsantīr upaspṛśaḥ | vidyāma yāsām bhujo dhenūnāṁ na vajrivaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्मे इति॑ । ता । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । स॒न्तु॒ । स॒त्या । अहिं॑सन्तीः । उ॒प॒ऽस्पृषः॑ । वि॒द्याम॑ । यासा॑म् । भुजः॑ । धे॒नू॒नाम् । न । व॒ज्रि॒ऽवः॒ ॥ १०.२२.१३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:22» मन्त्र:13 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्रिवः इन्द्र) हे ओजस्वी परमात्मन् या राजन् ! (ते) तेरे (उपस्पृशः) दयास्पर्श-दयादृष्टियाँ (अहिंसन्तीः) न दुःख देनेवाली कल्याणकारी हैं (ताः अस्मे सत्याः सन्तु) वे हमारे लिए सफल हों (यासां भुजः) जिसके भोग (विद्याम) हम प्राप्त करें (धेनूनां न) गौवों की दुग्धधारा के समान ॥१३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा या राजा के दयासम्पर्क या दयादृष्टियाँ उपासकों या प्रजाओं के लिए कल्याणकारी हुआ करती हैं। वे जीवन में सफलता को लाती हैं और गौवों से प्राप्त होनेवाले दूध की भाँति हैं ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सत्य व अहिंसा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (ताः) = वे (ते) = तेरी (उपस्पृशः) = उपासनाएँ (अस्मे) = हमारे लिये (सत्याः अहिंसन्ती:) = सत्य व अहिंसा वाली हों। आपकी उपासना से मेरे जीवन में सत्य व अहिंसा का वर्धन हो । दूसरे शब्दों में, प्रभु का उपासक सत्य व अहिंसा के व्रतवाला होता है । उसके जीवन में असत्य व हिंसा के लिये स्थान नहीं रहता । सत्य व अहिंसा ही उसके साध्य होते हैं। सत्य व अहिंसा को छोड़कर वह संसार की बड़ी से बड़ी वस्तु को लेने का विचार नहीं करता । [२] ये उपासनाएँ वे हैं (यासाम्) = जिनके (भुजः) = पालनों को (विद्याम) = हम उसी प्रकार प्राप्त करें, हे (वज्रिव:) = वज्रयुक्त हाथों वाले प्रभो ! (न) = जैसे (धेनूनाम्) = दुधार गौवों के (भुजः) = उपभोगों को हम प्राप्त करते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उपासना एक दुधार गौ के समान है, जिसका दूध हमारा उत्तम पालन करते हैं और हमारे जीवनों को सत्य व अहिंसा वाला बनाते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्रिवः-इन्द्र) हे ओजस्विन् परमात्मन् राजन् वा ! (ते) तव (उपस्पृशः) ता दयास्पर्शाः-दयादृष्टयः  (अहिंसन्तीः) हिंसां न कुर्वन्त्यः कल्याणकारिण्यः (ताः-अस्मे सत्याः सन्तु) अस्मभ्यं सफला भवन्तु (यासां भुजः) यासां भागान् (विद्याम) प्राप्नुयाम (धेनूनां न) गवां दुग्धधारा इव ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, wielder of thunderbolt and justice, may all our prayers, adorations and yajakas, full of love and faith without violence, reaching you in service and worship, be true and fruitful, and may we be blest with pleasing fruits of these like delicious cow’s milk and delicacies.