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स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः । स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samānī va ākūtiḥ samānā hṛdayāni vaḥ | samānam astu vo mano yathā vaḥ susahāsati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒मा॒नी । वः॒ । आऽकू॑तिः । स॒मा॒ना । हृद॑यानि । वः॒ । स॒मा॒नम् । अ॒स्तु॒ । वः॒ । मनः॑ । यथा॑ । वः॒ । सुऽस॑ह । अस॑ति ॥ १०.१९१.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:191» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:49» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः) हे मनुष्यो ! तुम्हारी (आकूतिः) अहम्भावना (समानी) समान हो (वः-हृदयानि) तुम्हारे हृदय-सङ्कल्पित वृत्त (समाना) समान हों (वः-मनः) तुम्हारा मन (समानम्-अस्तु) समान हो, कदाचित् एक दूसरे के प्रति वैमनस्य न हो (वः) तुम्हारा (यथा) जैसे भी हो (सुसह-असति) अच्छा सहयोग हो सके, वैसा वर्तें ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों की अहम्मन्यता एक जैसी हो, हृदय में संकल्पित व्यवहार एक जैसे हों, मन समान होना चाहिये, यह परस्पर सहयोग में आवश्यक है, मनुष्यों का परस्पर सहयोग में रहना ही मानवता है, यह जानना चाहिए ॥४॥ ॥इति॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

परस्पर एकता

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वः) = तुम्हारा (आकूतिः) = संकल्प व अध्यवसाय (समानी) = समान हो । (वः) = आपके (हृदयानि:) = हृदय समाना समान हों। [२] (वः) = तुम्हारा (मनः) = मन [ = इच्छायें] (समानम्) = समान हों । सब को इस प्रकार हो कि (यथा) = जिससे (वः) = तुम्हारा (सुसह) = शोभन साहित्य = उत्तम मेल (असति) = किसी भी प्रकार का तुम्हारा विरोध न हो। यह अविरोध ही तुम्हें देव बनायेगा, यही तुम्हें विजयी करेगा।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे संकल्प हृदय मन सब परस्पर समान हों। हमारा परस्पर मेल अत्यन्त दृढ़ हो । यह सम्पूर्ण सूक्त मेल का उपदेश दे रहा है। ऋग्वेद विज्ञान वेद है। परस्पर मेल होने पर यह विज्ञान कल्याण ही कल्याण करेगा। विरोध के होने पर यह विज्ञान ही विनाश का कारण बन जायेगा। इसी दृष्टि से ऋग्वेद की समाप्ति इस संज्ञान सूक्त पर हुई है। हम नश्वरता का स्मरण करते हुए परस्पर मेल से ही चलने का प्रयत्न करें।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वः-आकूतिः समानी) युष्माकमहङ्कृतिः-अहम्भावना समानी भवतु (वः-हृदयानि समाना) युष्माकं हृद्गतसङ्कल्पितानि वृत्तानि समानानि भवन्तु (वः-मनः समानम्-अस्तु) युष्माकं मनः समानं भवतु न कदाचिद्वैमनस्यं स्यात् (वः-यथा सुसह-असति) युष्माकं यथा हि सुष्ठु सहयोगो भवेत् ॥४॥ ग्वेदान्तर्गतदशममण्डलस्य संस्कृतार्यभाषयोः स्वामिब्रह्ममुनिपरिव्राजकेन विद्यामार्तण्डेन कृतं भाष्यं समाप्तिमगात् ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let your discussion and resolve be equal and common, your heart, feelings and passions equal and common. Let your thought and will be equal and common so that you may realise and enjoy a common wealth of peace, progress and all round well being for all in commonalty.