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सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् । दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

saṁ gacchadhvaṁ saṁ vadadhvaṁ saṁ vo manāṁsi jānatām | devā bhāgaṁ yathā pūrve saṁjānānā upāsate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम् । ग॒च्छ॒ध्व॒म् । सम् । व॒द॒ध्व॒म् । सम् । वः॒ । मनां॑सि । जा॒न॒ता॒म् । दे॒वाः । भा॒गम् । यथा॑ । पूर्वे॑ । स॒म्ऽजा॒ना॒नाः । उ॒प॒ऽआस॑ते ॥ १०.१९१.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:191» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:49» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सं गच्छध्वम्) हे मनुष्यों तुम लोग परस्पर संगत हो जाओ, समाज के रूप में मिल जाओ, इसलिए कि (सं वदध्वम्) तुम संवाद कर सको, विवाद नहीं, इसलिए कि (वः-मनांसि) तुम्हारे मन (सं जानताम्) संगत हो जावें-एक हो जावें, इसलिए कि (सञ्जानानाः पूर्वे देवाः) एक मन हुए पूर्व के विद्वान् (यथा) जैसे (भागम्-उपासते) भाग अपने अधिकार या लाभ को सेवन करते थे, वैसे तुम भी कर सको ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों में अलग-अलग दल न होने चाहिए, किन्तु सब मिलकर एक सूत्र में बँधें, मिलकर रहें, इसलिए मिलें कि परस्पर संवाद कर सकें, एक-दूसरे के सुख-दुःख और अभिप्राय को सुन सकें और इसलिए संवाद करें कि मन सब का एक बने-एक ही लक्ष्य बने और एक लक्ष्य इसलिये बनना चाहिये कि जैसे श्रेष्ठ विद्वान् एक मन बनाकर मानव का सच्चा सुख प्राप्त करते रहे, ऐसे तुम भी करते रहो ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अविरोध का उपदेश

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रभु अपने पुत्रों को कहते हैं कि (संगच्छध्वम्) = परस्पर मिलकर के चलो। तुम्हारी गतियाँ परस्पर विरुद्ध न हों 'येन देवा न वियन्ति = देव परस्पर विरुद्ध गतिवाले नहीं होते । [२] (संवदध्वम्) = तुम परस्पर संवादवाले बनो । विवाद तो मूर्ख ही किया करते हैं, 'विद्या विवादाय' = मूर्खो की ही विद्या विवाद के लिये होती है । [३] (वः मनांसि) = तुम्हारे मन (संजानताम्) = संज्ञानवाले हों । तुम्हारे मनों में एक दूसरे के विरोधी विचार न उत्पन्न होते रहें। एक दूसरे के हित की भावनाएँ ही तुम्हारे मनों में स्थान पायें । 'नो च विद्विषते मिथः ' - ज्ञानी लोग परस्पर द्वेष नहीं करते। [४] (पूर्वे देवा:) = अपना पालन व पूरण करनेवाले देव (संजानाना:) = परस्पर संज्ञान व ऐकमत्यवाले होते हुए (यथा भागम्) = अपने-अपने भाग के अनुसार (उपासते) = कर्त्तव्य का उपासन करते हैं । इस प्रकार अपने-अपने कर्त्तव्यभाग को पूर्ण करते हुए वे समूचे कार्य को पूर्ण सफलता के साथ कर पाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम अविरुद्ध गतिवाले, संवादवाले व संज्ञानवाले बनें। देवों की तरह अपने-अपने कर्त्तव्यभाग को परस्पर अविरोध के साथ पूर्ण करनेवाले हों ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सङ्गच्छध्वम्) हे मनुष्याः ! यूयं परस्परं सङ्गता भवत समाजे संसृष्टा भवत-यतः (संवदध्वम्) यूयं परस्परं संवादं कुरुत, नहि विवदध्वम्, यतो हि (वः-मनांसि सञ्जानताम्) युष्माकं मनांसि सङ्गतानि भवेयुः पुनर्यतः (यथा पूर्वे देवाः सञ्जानाना भागम्-उपासते) यथा पूर्वे विद्वांसः समानमनसः सन्तः परम्परया स्वाधिकारं प्राप्नुवन्ति स्म तथा यूयं सेवध्वम् ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Move together forward in unison, speak together, and with equal mind all in accord, know you all together as the sages of old, knowing and doing together, play their part in life and fulfill their duty according to Dharma.