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पुन॑रे॒ता नि व॑र्तन्ताम॒स्मिन्पु॑ष्यन्तु॒ गोप॑तौ । इ॒हैवाग्ने॒ नि धा॑रये॒ह ति॑ष्ठतु॒ या र॒यिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

punar etā ni vartantām asmin puṣyantu gopatau | ihaivāgne ni dhārayeha tiṣṭhatu yā rayiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पुनः॑ । ए॒ताः । नि । व॒र्त॒न्ता॒म् । अ॒स्मिन् । पु॒ष्य॒न्तु॒ । गोऽप॑तौ । इ॒ह । ए॒व । अ॒ग्ने॒ । नि । धा॒र॒य॒ । इ॒ह । ति॒ष्ठ॒तु॒ । या । र॒यिः ॥ १०.१९.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:19» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:1» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एताः पुनः-निवर्तन्ताम्) ये गौवें प्रजाएँ और इन्द्रियवृत्तियाँ अपना-अपना उचित व्यापार करके लौट आवें (अस्मिन् गोपतौ पुष्यन्तु) इस गोस्वामी, प्रजापालक और इन्द्रियस्वामी आत्मा के आधार पर पुष्ट होवें (अग्ने) अग्रणायक परमात्मन् ! (इह-एव निधारय) यहाँ मेरे अधीन नियत करे (इह) मेरे अधीन (या रयिः-तिष्ठतु) जो पुष्टि, सम्पत्ति हो, वह स्थिर होवे ॥३॥
भावार्थभाषाः - गौ आदि पशु, प्रजाएँ तथा इन्द्रियाँ पुनः-पुनः व्यापार करके लौट आएँ और मुझ स्वामी के अधीन पुष्ट होवें। परमात्मा पुष्टि व सम्पत्ति को मेरे अधीन स्थिर रखे ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान धन का रक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एताः) = ये ज्ञानेन्द्रिय रूप गोवें अपने-अपने विषयों में विचरण करके (पुनः) = फिर (निवर्तन्ताम्) = लौट आयें। और (अस्मिन् गोपतौ) = इस इन्द्रियरूप गौवों के स्वामी में (पुष्यन्तु) = पोषण को प्राप्त हों। विषयों में जाने से ही तो इनकी शक्तियाँ क्षीण होती हैं। ये सदा विषयों को ही न चरती रह जाएँ। विषयों में आसक्त हो जाने पर इनके पोषण का प्रसंग नहीं रहता । [२] हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! तू (इह एव) = यहाँ अपने में ही (निधारय) = निश्चय से इनका धारण कर । मनरूपी लगाम के द्वारा हम इनको अपने वश में रखें। अपने वश में हुई हुई इन्द्रियों से जब हम विषयों में जायेंगे तो उन विषयों से बद्ध न होंगे। [३] ऐसा करने पर इन इन्द्रियों से प्राप्त होनेवाला (या रयिः) = जो ज्ञानधन है वह (इह तिष्ठतु) = हमारे में ही स्थित होता है । हमारा ज्ञान ठीक बना रहता है। यही इन्द्रियों की खूबी है कि वशीभूत हुई हुई ये हमारे ज्ञानधन का वर्धन करती हैं, और उच्छृंखल हुई हुई ये हमारे संचित ज्ञानधन को भी नष्ट करनेवाली हो जाती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम अपनी इन्द्रियों को उच्छृंखल न होने दें, अपितु स्व- वश में रखें ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एताः पुनः-निवर्तन्ताम्) पूर्वोक्ताः गावः, प्रजाः, इन्द्रियशक्तयः स्वव्यापारं विधाय पुनः प्रत्यागच्छन्तु (अस्मिन् गोपतौ पुष्यन्तु) अस्मिन् गोस्वामिनि, प्रजास्वामिनि, इन्द्रियस्वामिनि-आत्मनि मयि पुष्टीभवन्तु (अग्ने) अग्रणायक परमात्मन् ! (इह एव निधारय) अत्र मयि हि निरोधय (इह) अत्र मयि (या रयिः-तिष्ठतु) या पुष्टिः पोषणसम्पत्तिः सा स्थिरीभवतु ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let these dynamic forces in circulation come back again, grow and rise in this social system governed by the ruling power. Here itself, O Agni, keep their reins on hold, and let the wealth centre here in the soul of the system.