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अ॒हं गर्भ॑मदधा॒मोष॑धीष्व॒हं विश्वे॑षु॒ भुव॑नेष्व॒न्तः । अ॒हं प्र॒जा अ॑जनयं पृथि॒व्याम॒हं जनि॑भ्यो अप॒रीषु॑ पु॒त्रान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ahaṁ garbham adadhām oṣadhīṣv ahaṁ viśveṣu bhuvaneṣv antaḥ | aham prajā ajanayam pṛthivyām ahaṁ janibhyo aparīṣu putrān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒हम् । गर्भ॑म् । अ॒द॒धा॒म् । ओष॑धीषु । अ॒हम् । विश्वे॑षु । भुव॑नेषु । अ॒न्तरिति॑ । अ॒हम् । प्र॒ऽजाः । अ॒ज॒न॒य॒म् । पृ॒थि॒व्याम् । अ॒हम् । जनि॑ऽभ्यः । अ॒प॒रीषु॑ पु॒त्रान् ॥ १०.१८३.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:183» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:41» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) मैं प्रजापति परमेश्वर (ओषधीषु) ओषधियों में (गर्भम्) गर्भसामर्थ्य को (अदधाम्) स्थापित करता हूँ (अहम्) मैं परमेश्वर (विश्वेषु) सारे (भुवनेषु-अन्तः) प्राणियों के अन्दर गर्भसामर्थ्य को संस्थापित करता हूँ (अहम्) मैं परमेश्वर (पृथिव्याम्) प्रथित सृष्टि में (प्रजाम्) प्रजा उत्पन्न वस्तु को (अजनयम्) उत्पन्न करता हूँ (जनिभ्यः) जननयोग्य (अपरीषु) अन्य योनियों में (पुत्रान्) पुत्रों को जन्म देता हूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - ओषधियों, प्राणियों, अन्य योनियों की सृष्टि में जो भी उत्पन्न होता है, परमेश्वर ही उत्पन्न करता है, वह ही सर्वोत्पादक है, उसे मानना चाहिए ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

होता की इच्छायें

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अहम्) = मैं (ओषधीषु) = ओषधियों में (गर्भं अदधाम्) = गर्भ को स्थापित करता हूँ । अर्थात् ओषधियाँ का सेवन करता हुआ, उनसे उत्पन्न शक्ति के द्वारा सन्तान को जन्म देता हूँ। इस प्रकार ये सन्तानें सात्त्विकि वृत्तिवाली होती हुई परस्पर प्रेम से चलनेवाली होती हैं । [२] (अहम्) = मैं (विश्वेषु भुवनेषु अन्त:) = मैं सब भुवनों में इन सन्तानों को जन्म देता हूँ । अर्थात् सब लोकों का हित करनेवाली सन्तानों को जन्म देता हूँ । उन सन्तानों को, जो कि अपने को विश्व का नागरिक अनुभव करती हैं। देशभक्ति उन्हें अन्य देशों से घृणा करनेवाला नहीं बनाती। [३] (अहम्)= मैं (पृथिव्याम्) = पृथिवी में (प्रजाः) = प्रजाओं को (अजनयम्) = उत्पन्न करता हूँ। ऐसी सन्तानों को जन्म देता हूँ जो कि पृथिवी पर चलती हैं। आकाश में नहीं उड़ती-फिरती, हवाई किले नहीं बनाती रहतीं। [४] (अहम्) = मैं (अपरीषु) = न परायी स्त्रियों में (जनिभ्यः) = माताओं के लिये पुत्रान् पुत्रों को जन्म देता हूँ। अपनी पत्नी में ही सन्तान को जन्म देना है और उस सन्तान को माता के लिये ही सौंपना है । वस्तुतः माता ने ही तो सन्तान के चरित्र का निर्माण करना होता है। 'बच्चा कुछ भी माँगे', उसे यही कहना कि 'माता जी से कहो'। बस ऐसा होने पर बच्चा माता के पूरे शासन में होगा और सुन्दर जीवनवाला बनेगा ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उत्तम सन्तान के लिये वानस्पतिक भोजन आवश्यक है सन्तान ऐसे हों जो कि [क] अपने को विश्व का नागरिक समझें, [ख] हवाई किले न बनायें, [ग] माता के शासन में चलें यह उत्तम सन्तान का निर्माण करनेवाला 'त्वष्टा' है, यही 'गर्भकर्ता' है। इस के लिये कहते हैं कि-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) अहं युवाभ्यां भिन्नः प्रजापतिः परमेश्वरः (ओषधीषु गर्भम्-अदधाम्) ओषधिषु गर्भं गर्भसामर्थ्यं धारयामि (अहम्) अहं परमेश्वरः (विश्वेषु भुवनेषु-अन्तः) सर्वेषु प्राणिषु खल्वन्तर्गर्भसामर्थ्यं संस्थापयामि (अहम्) अहं परमेश्वरः (पृथिव्यां प्रजाम् अजनयम्) प्रथितायां सृष्टौ प्रजामुत्पादयामि (जनिभ्यः) जननयोग्यासु “सप्तम्यर्थे चतुर्थी छान्दसी व्यत्ययेन” (अपरीषु पुत्रान्) अन्यासु योनिषु पुत्रान् जनयामि ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I plant the seed in herbs and plants. I plant the seed of life in all regions of the world. I engender the forms of life on the earth, and I would generate progeny for all others, women who love to be mothers for fulfilment.