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अप॑श्यं त्वा॒ मन॑सा॒ दीध्या॑नां॒ स्वायां॑ त॒नू ऋत्व्ये॒ नाध॑मानाम् । उप॒ मामु॒च्चा यु॑व॒तिर्ब॑भूया॒: प्र जा॑यस्व प्र॒जया॑ पुत्रकामे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apaśyaṁ tvā manasā dīdhyānāṁ svāyāṁ tanū ṛtvye nādhamānām | upa mām uccā yuvatir babhūyāḥ pra jāyasva prajayā putrakāme ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑श्यम् । त्वा॒ । मन॑सा । दीध्या॑नाम् । स्वाया॑म् । त॒नू इति॑ । ऋत्व्ये॑ । नाध॑मानाम् । उप॑ । माम् । उ॒च्चा । यु॒व॒तिः । ब॒भू॒याः॒ । प्र । जा॒य॒स्व॒ । प्र॒ऽजया॑ । पु॒त्र॒ऽका॒म॒ ॥ १०.१८३.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:183» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:41» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वायां तनू) हे देवि ! अपने शरीर में (ऋत्व्ये) ऋतुकाल पर (नाधमानाम्) गृहस्थधर्म की याचना करती हुई को (मनसा दीध्यानाम्) अपने मन से दीप्यमान तेजस्विनी को (त्वा-अपश्यम्) मैं पुरुष तुझे देखता हूँ (माम्-उप) मेरे समीप (उच्चा युवतिः-बभूयाः) आदर पाई हुई तू युवती हो, बनी रह (पुत्रकामे) हे पुत्रों को चाहनेवाली ! (प्रजया-प्रजायस्व) सन्तति से प्रजा के लक्ष्य से सन्तान उत्पन्न कर ॥२॥
भावार्थभाषाः - विवाहसम्बन्धी वधू के प्रस्ताव को वर स्वीकार करे, यौवनसम्पन्न तेजस्विनी वधू के साथ विवाह करना चाहिये, विवाह सन्तानोत्पत्ति के लिए करने का आदेश है तथा गृहस्थधर्म ऋतुकाल में किया जाना चाहिए, अन्यथा नहीं ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यजमान का पत्नी के प्रति कथन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (त्वा) = तुझे (मनसा) = मनन के द्वारा (दीध्यानाम्) = दीप्त ज्ञानवाली को (अपश्यम्) = देखता हूँ । (स्वायां तनू) = अपने शरीर में (ऋत्व्ये) = ऋतुकाल में गर्भधारणरूप कर्म के निमित्त (नाधमानाम्) = याचना करती हुई को देखता हूँ। [२] तू (मां उप) = मेरे समीप (उच्चा युवति:) = एक (आदृत युवति बभूयाः) = हो। अर्थात् तुझे पति से सदा आदर प्राप्त हो। वह तुझे अपना [ better haly] उत्कृष्ट अर्धभाग समझे । अन्यथा पत्नी में हीनता की भावना आ जाती है और वह फिर सन्तानों में भी संक्रान्त होती है। [३] इस प्रकार आदृत होती हुई हे (युक्तकामे) = पुत्र की कामनावाली तू! (प्रजया प्रजायस्व) = प्रजा से प्रकृष्ट प्रादुर्भाववाली हो । प्रजा से तेरा नाम सदा बना रहे ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पत्नी [क] मननपूर्वक ज्ञानदीप्त बने, [ख] ऋतुकाल में गर्भधारण की कामनावाली हो । [ग] पति से उचित आदर को प्राप्त करे, [घ] उत्तम प्रजा से यशस्विनी बने।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (स्वायां तनू-ऋत्व्ये नाधमानाम्) स्वकीये शरीरे ऋतुकाले गार्हस्थ्यं याचमानाम् (मनसा दीध्यानां त्वाम्-अपश्यम्) स्वमनसा दीप्यमानां तेजस्विनीमहं पुरुषः पश्यामि (माम्-उप-उच्चा युवतिः-बभूयाः) माम्-उप, मम समीपं खलूच्चा आदृता युवतिर्भूयाः “श्लुश्छान्दसः” आशिषि लिङि (पुत्रकामे प्रजया प्रजायस्व) सन्ततिं कामयमाने त्वं प्रजारूपेण प्रजनय ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I see you moved at heart with desire, earnestly praying that you be fulfilled in life with the timely gift of progeny. Come, rise to me, be fulfilled as a youthful woman, reborn in your child as a mother.$(This verse may be taken as spoken by the husband to the wife.)