पदार्थान्वयभाषाः - [१] बच्चों की विधवा माता प्रभु से प्रार्थना करती है कि (माम्) = मुझे (प्रतीचीने) = [प्रति अञ्च्] एक-एक कार्य में लगे हुए (अहनि) = दिन में (इष्वाः पर्णम् इव) = बाण के पर्ण की तरह (आदधुः) = सब देव स्थापित करें। बाण में जो पर्ण लगाया जाता वह उसकी तीव्रगति का कारण होता है और लक्ष्य के वेधन में सहायक होता है। जैसे इषु में पर्ण के लगाने से पूर्व भी गति थी, इसी प्रकार यह माता पहले भी खूब क्रियामय जीवन वाली थी परन्तु पर्ण से गति में जैसे तीव्रता आ जाती है उसी प्रकार यह अब पहले से अधिक गति वाली हो गई है। अब यह अपने लक्ष्य की ओर पूर्वापेक्ष्या अधिक ध्यान से चल रही है। इसका दिन प्रतीचीने प्रतिक्षण कार्य में लगा हुआ हो गया है । [२] इस विधवा के लिये सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि (वाचम्) = वाणी को (प्रतीचीम् जग्रभा) = वापिस गतिवाला करके ग्रहण करे, उसी प्रकार ग्रहण करे (यथा) = जैसे (अश्वम्) = घोड़े को (रशनया) = लगाम से रोक लेते हैं । अर्थात् वाणी पर इसका पूरा control [शासन] हो। यह व्यर्थ की बातों में समय को नष्ट न करे। मौन को ही वैधव्य का सर्वोत्तम आभूषण समझे। कम बोलनेवाला कार्य को अधिक सुन्दरता से कर भी सकता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - विधवा स्त्री का एक-एक क्षण कार्यमय हो । वह मौन को महत्त्व दे । सूक्त के प्रथम चार मन्त्रों में दीर्घ जीवन की प्रार्थना है इसके लिये हम स्वार्थ से ऊपर उठें, शुद्ध पवित्र जीवन वाले हों, हम रोगशून्य व उल्लासमय जीवन वाले हों, ब्रह्मचर्य रूप पर्वत से मृत्यु को अन्तर्हित करें। [१-४] हमारा जीवन अविच्छिन्न व पूर्ण हो, [५] निरन्तर उद्योगशील होकर आगे बढ़ते रहें, [६] हमारे घरों में स्त्रियों का स्थान प्रमुख हो, [७] यदि अकस्मात् पति का देहान्त हो जाए तो पत्नी बच्चों का पूरा ध्यान करे, [८] पति के कर्तव्यभार को भी अपने कन्धे पर उठाये, [९] बच्चों का रक्षण व कोमलता के साथ पालन करे, [१०] वह बच्चों का ठीक उपचरण करे, [११] घर को घृत के बाहुल्यवाला बना के रखे, [१२] ऐसे घर पर ही प्रभु की कृपादृष्टि होती है, [१३] मौन रहती हुई कार्य में लगी रहे, [१४] घरों में गौवें हों, इन्द्रियाँ हमारे वश में हों, हमारे जीवन में अग्नि व सोम दोनों तत्त्व हों तथा धन की कमी न हो।