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उत्ते॑ स्तभ्नामि पृथि॒वीं त्वत्परी॒मं लो॒गं नि॒दध॒न्मो अ॒हं रि॑षम् । ए॒तां स्थूणां॑ पि॒तरो॑ धारयन्तु॒ तेऽत्रा॑ य॒मः साद॑ना ते मिनोतु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ut te stabhnāmi pṛthivīṁ tvat parīmaṁ logaṁ nidadhan mo ahaṁ riṣam | etāṁ sthūṇām pitaro dhārayantu te trā yamaḥ sādanā te minotu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत् । ते॒ । स्त॒भ्ना॒मि॒ । पृ॒थि॒वीम् । त्वत् । परि॑ । इ॒मम् । लो॒गम् । नि॒ऽदध॑त् । मो इति॑ । अ॒हम् । रि॒ष॒म् । ए॒ताम् । स्थूणा॑म् । पि॒तरः॑ । धा॒र॒य॒न्तु॒ । ते । अत्र॑ । य॒मः । सद॑ना । ते॒ । मि॒नो॒तु॒ ॥ १०.१८.१३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:18» मन्त्र:13 | अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवीं ते-उत् स्तभ्नामि) हे जीव ! तेरे लिए मैं ईश्वर, पृथिवी को जलमिश्रित भूगोल से ऊपर खींचता हूँ (इमं त्वत् परिनिदधत्-म-उ-अहं रिषम्) वहाँ तेरे इस गर्भकोश को रखता हुआ मैं पीड़ा नहीं देता हूँ (एतां स्थूणां पितरः-धारयन्तु) इस ऊपर उठी हुई पृथिवी को सूर्यकिरणें धारण करें (तत्र यमः-ते सदना मिनोतु) सूर्य तेरे लिए सब आवश्यक कोशों को प्राप्त करावे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - आरम्भ सृष्टि भूगोल के ऊँचें भाग पर होती है। वह भाग जलमिश्रित भूगोल से पर्वतभूमि के रूप में ऊपर खींचा जाता है। उस उठे हुए भूभाग को सूर्य की रश्मियाँ धारण करती हैं और सूर्य अपनी रश्मियों द्वारा जीवात्मा के गर्भादि को प्राप्त कराता है, अतएव उसका दूसरा नाम सविता है ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

घर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रस्तुत मन्त्र में घर का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि (ते पृथिवीम्) = तेरी भूमि को (उत् स्तभ्नामि) = ऊपर थामता हूँ, अर्थात् तेरे पाये को [Pedestal] कुछ ऊँचा रखता हूँ । वस्तुतः घर का पाया नीचा होने पर घर में कुछ सील का अंश बना रहता है जो स्वास्थ्य के लिये उतना हितकर नहीं होता। [२] और (त्वत् परि) = तेरे चारों ओर (इमम्) = इस (लोगम्) = पार्थिव ढेर को मुंडेर को (निदधन्) = रखता हुआ (अहं) = मैं (मा उ रिषम्) = मत ही हिंसित होऊँ । घर के चारों ओर कुछ चारदिवारी सी हो जिससे कि अवाञ्छनीय पशु आदि का प्रवेश न होता रहे और आंगन ठीक से बना रहे। [३] (एतां स्थूणाम्) = घर के इस स्तम्भ को (ते पितरः) = तेरे पितर- मामा, चाचा, दादा आदि (धारयन्तु) = धारण करनेवाले हों। बच्चों की माता के इन बुजुर्ग बन्धुओं की यह नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि वे बच्चों के पिता के चले जाने के बाद घर के बोझ को अपने कन्धों पर लें, घर का ध्यान करनेवाले बनें। [४] और सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि (अत्रा) = इस घर में अब (यमः) = वह सर्वनियन्ता प्रभु (ते सादना) = तेरे बैठने उठने के स्थानभूत कमरों को (मिनोतु) = [observer, perceiver] देखनेवाला हो । अर्थात् प्रभु की कृपादृष्टि इस घर पर सदा बनी रहे। अनाथों के सच्चे नाथ तो वे प्रभु ही हैं। प्रभु कृपा से सब बात ठीक हो जाती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - घर का पाया ऊँचा हो, नीरोगता के लिये यह आवश्यक है। चारदिवारी ठीक हो जिससे आंगन ठीक रहे। रिश्तेदार घर के बोझ को अपने कन्धों पर लें और सब से बड़ी बात यह कि घर पर प्रभु की कृपादृष्टि बनी रहे ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवीं ते-उत् स्तभ्नामि) हे जीव ! तुभ्यमहमीश्वरः पृथिवीं जलमिश्राद् भूगोलादुपर्याकर्षामि (त्वत्-इमं लोगं परिनिदधत्-म-उ-अहं रिषम्) तव ‘विभक्तिव्यत्ययः’ इमं लोगं लुङ्गं ग्रहणं गर्भकोशमित्यर्थः ‘लुजि हिंसाबलादाननिकेतनेषु” [चुरादिः] “इदितो नुम् धातोः” [अष्टा०७।१।५८] इति छन्दसि सर्वे विधयो विकल्प्यन्तेऽतो नुमभावः, अधिकरणार्थे घञ् “चजोः कु घिण्ण्यतोः” [अष्टा०७।३।५२] इति कुत्वम्, परिनिदधत्-समर्पयन् नैवाहं हिंसेयम् (एतां स्थूणां पितरः-धारयन्तु) एतां स्थूणामुपर्युत्थितां भूमिं सूर्यरश्मयो धारयन्तु-स्थिरीकुर्वन्तु-स्थिरी-कुर्वन्ति, (तत्र यमः-ते सदना मिनोतु) तत्र यमः-सूर्यस्तुभ्यं सदना-गर्भकोशान् मिनोतु-प्रापयतु ‘अन्तर्गतणिजर्थः’ “मिनोतिर्गतिकर्मा” [निघ०२।१४] ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O man, for you I sustain this earth up in space, for you I place this global atmosphere around, and this I would not hurt or dislodge. This well pillared, well sustained planet of clay the rays of the sun would sustain, and the sun would sustain and vitalise the homes of life.