पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रस्तुत मन्त्र में घर का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि (ते पृथिवीम्) = तेरी भूमि को (उत् स्तभ्नामि) = ऊपर थामता हूँ, अर्थात् तेरे पाये को [Pedestal] कुछ ऊँचा रखता हूँ । वस्तुतः घर का पाया नीचा होने पर घर में कुछ सील का अंश बना रहता है जो स्वास्थ्य के लिये उतना हितकर नहीं होता। [२] और (त्वत् परि) = तेरे चारों ओर (इमम्) = इस (लोगम्) = पार्थिव ढेर को मुंडेर को (निदधन्) = रखता हुआ (अहं) = मैं (मा उ रिषम्) = मत ही हिंसित होऊँ । घर के चारों ओर कुछ चारदिवारी सी हो जिससे कि अवाञ्छनीय पशु आदि का प्रवेश न होता रहे और आंगन ठीक से बना रहे। [३] (एतां स्थूणाम्) = घर के इस स्तम्भ को (ते पितरः) = तेरे पितर- मामा, चाचा, दादा आदि (धारयन्तु) = धारण करनेवाले हों। बच्चों की माता के इन बुजुर्ग बन्धुओं की यह नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि वे बच्चों के पिता के चले जाने के बाद घर के बोझ को अपने कन्धों पर लें, घर का ध्यान करनेवाले बनें। [४] और सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि (अत्रा) = इस घर में अब (यमः) = वह सर्वनियन्ता प्रभु (ते सादना) = तेरे बैठने उठने के स्थानभूत कमरों को (मिनोतु) = [observer, perceiver] देखनेवाला हो । अर्थात् प्रभु की कृपादृष्टि इस घर पर सदा बनी रहे। अनाथों के सच्चे नाथ तो वे प्रभु ही हैं। प्रभु कृपा से सब बात ठीक हो जाती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - घर का पाया ऊँचा हो, नीरोगता के लिये यह आवश्यक है। चारदिवारी ठीक हो जिससे आंगन ठीक रहे। रिश्तेदार घर के बोझ को अपने कन्धों पर लें और सब से बड़ी बात यह कि घर पर प्रभु की कृपादृष्टि बनी रहे ।