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आ त्वा॑हार्षम॒न्तरे॑धि ध्रु॒वस्ति॒ष्ठावि॑चाचलिः । विश॑स्त्वा॒ सर्वा॑ वाञ्छन्तु॒ मा त्वद्रा॒ष्ट्रमधि॑ भ्रशत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tvāhārṣam antar edhi dhruvas tiṣṭhāvicācaliḥ | viśas tvā sarvā vāñchantu mā tvad rāṣṭram adhi bhraśat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । त्वा॒ । अ॒हा॒र्ष॒म् । अ॒न्तः । ए॒धि॒ । ध्रु॒वः । ति॒ष्ठ॒ । अवि॑ऽचाचलिः । विशः॑ । त्वा॒ । सर्वाः॑ । वा॒ञ्छ॒न्तु॒ । मा । त्वत् । रा॒ष्ट्रम् । अधि॑ । भ्र॒श॒त् ॥ १०.१७३.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:173» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:31» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

स सूक्त में राजा शासन अधिकार प्राप्त करके प्रजा को सुखी करे, राष्ट्र को दृढ़ समृद्ध करे, उस में अन्य राज्याधिकारियों विद्वानों के साथ सुराज्य बनावे, इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वा) हे राजन् ! मैं पुरोहित राजसूययज्ञ में तुझे राष्ट्र के स्वामी होने के लिये राजसूयवेदी पर (आहार्षम्) लाया हूँ-लाता हूँ (अन्तः-एधि) हमारे मध्य में स्वामी हो (ध्रुवः) ध्रुव (अविचाचलिः-तिष्ठ) राजपद पर नियत-अविचलित हुआ प्रतिष्ठित हो (सर्वाः-विशः) सारी प्रजाएँ (त्वा वाञ्छन्तु) तुझे चाहें चाहती हैं (त्वत्-राष्ट्रम्) तुझसे-तेरे शासन से राष्ट्र (मा-भ्रशत्) नष्ट न हो ॥१॥
भावार्थभाषाः - पुरोहित राजा को राजसूययज्ञ में वेदी पर प्रतिष्ठित करता है और सारी प्रजाएँ उसे चाहें, राजा को इस प्रकार शासन करना चाहिये कि प्रजाएँ सब सुखी रहें, प्रसन्न रहें और राष्ट्र विपत्ति को प्राप्त न हो ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रजाओं से वरण किया गया 'राजा'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रजा से चुने गये राजा का राज्याभिषेक करते हुए पुरोहित कहता है कि-(त्वा) = तुझे (आहार्षम्) = प्रजा के मध्य से इस स्थान पर लाता हूँ । (अन्तः एधि) = तू इन प्रजाओं के अन्दर होनेवाला ही हो । गर्व के कारण प्रजाओं के लिये तू अगम्य न हो जा। अपने कार्य को उत्तमता से करता हुआ तू (ध्रुवः तिष्ठ) = स्थिर रूप से इस आसन पर विराज । (अविचाचलिः) = अपने कर्त्तव्य से कभी विचलित होनेवाला न हो। [२] अपने इस शासनकार्य को न्यायपूर्वक करता हुआ तू इस प्रकार व्यवहारवाला हो कि (सर्वाः विश:) = सब प्रजाएं (त्वा वाञ्छन्तु) = तुझे चाहें। न तो तीक्ष्ण दण्डवाला और ना ही मृदुदण्डवाला तू हो, सदा यथोचित दण्डवाला तूने बनना। विचारपूर्वक दिया गया उचित दण्ड सब प्रजाओं को रञ्जित करनेवाला होता है। [३] तीक्ष्ण दण्डवाला होकर तू प्रजाओं के उद्वेग का कारण मत बनना, मृदुदण्डवाला होकर तिरस्कृत आज्ञाओंवाला भी न होना । यथार्थ दण्ड होकर तूने प्रजाओं का पूज्य बनना । तूने उचित ही व्यवहार करना। (त्वत्) = तेरे से (राष्ट्रम्) = राष्ट्र (मा अधिभ्रशत्) = भ्रष्ट न हो। कहीं अयोग्य प्रमाणित होने से तुझे इस आसन से उतारना न पड़ जाये ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - राजा प्रजाओं से चुना जाये । उचित शासन करता हुआ वह सब प्रजाओं का प्रिय हो । अचानक अयोग्य प्रमाणित होने पर उसे सिंहासन से उतार दिया जाए।
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते राजा शासनाधिकारं प्राप्य प्रजाः सुखयेत् राष्ट्रं दृढं समृद्धं कुर्यात् तत्रान्यै राज्याधिकारिभिः विद्वद्भिः सह च सुराज्यं कुर्यादित्येवं विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वा-आहार्षम्) हे राजन् ! अहं पुरोहितो राजसूये यज्ञे त्वां राष्ट्रस्य स्वामित्वाय राजसूयवेद्यामानयम्-आनयामि (अन्तः-एधि) अस्माकं मध्ये स्वामी भव (ध्रुवः-अविचाचलिः-तिष्ठ) ध्रुवराजपदे नियतः प्रतिष्ठितो भव “यद्वै स्थिरं यत्प्रतिष्ठितं तद्ध्रुवम्” [श० ८।२।१।४] भृशमविचलः “चल धातोर्यङ्लुगन्तादौणादिक इ प्रत्ययः” राष्ट्रमधितिष्ठ (सर्वाः-विशः-त्वा वाञ्छन्तु) सर्वाः प्रजास्त्वां कामयन्ते लडर्थे लोट् व्यत्ययेन (त्वत्-राष्ट्रं मा-भ्रशत्) त्वत्तो त्वच्छासनाद्राष्ट्रं न भ्रश्येत-भ्रष्टं न भवतु ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I, high priest of the nation, take you, O Ruler, to the high seat of governance and pray take it in our midst. Be firm, stay undisturbed. All the people have chosen and welcome you. Let not the state suffer embarrassment because of you, nor must the state fall foul of you.