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वि॒भ्राज॒ञ्ज्योति॑षा॒ स्व१॒॑रग॑च्छो रोच॒नं दि॒वः । येने॒मा विश्वा॒ भुव॑ना॒न्याभृ॑ता वि॒श्वक॑र्मणा वि॒श्वदे॑व्यावता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vibhrājañ jyotiṣā svar agaccho rocanaṁ divaḥ | yenemā viśvā bhuvanāny ābhṛtā viśvakarmaṇā viśvadevyāvatā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒ऽभ्राज॑म् । ज्योति॑षा । स्वः॑ । अग॑च्छः । रो॒च॒नम् । दि॒वः । येन॑ । इ॒मा । विश्वा॑ । भुव॑नानि । आऽभृ॑ता । वि॒श्वऽक॑र्मणा । वि॒श्वदे॑व्यऽवता ॥ १०.१७०.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:170» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:28» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिषा विभ्राजन्) ज्योति से विशेष प्रकाशमान होता हुआ (दिवः-रोचनम्) द्युलोक का चमकनेवाला (स्वः-अगच्छः) तू सबको प्राप्त होता है, (येन विश्वकर्मणा) जिस-सर्वकर्म सामर्थ्यवाले (विश्व-देव्यावता) समस्त देवगुणों के प्रभाववाले से (इमा विश्वा भुवनानि) ये सब लोक-लोकान्तर (आभृता) धारित हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - सूर्य अपनी ज्योति से प्रकाशमान, द्युलोक का प्रकाशनिमित्त सबको दृष्टिगोचर होता है, सब कर्मसामर्थ्य और सब दिव्य गुणवाले प्रभाव से सब लोक-लोकान्तरों को धारण करता है, वह सूर्य है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देवलोक में जन्म

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे विभ्राट् ! तू (ज्योतिषा विभ्राजन्) = प्रभु की ज्योति से दीप्त होता हुआ (स्वः अगच्छः) = प्रकाशमय लोक को प्राप्त करता है, जो प्रकाशमय लोक (दिवः रोचनम्) = द्युलोक का दीप्त स्थान है। अर्थात् इस व्यक्ति को अगला जन्म इस मर्त्यलोक में न प्राप्त होकर द्युलोक में मिलता है, यह देवलोक में जन्म लेता है । [२] यह ज्योति वह है (येन) = जिससे (इमा) = ये (विश्वा भुवनानि) = सब भुवन (आभृता) = भरण किये गये हैं । (विश्वकर्मणा) = जो ज्योति हमारे सब कर्मों का साधन बनती है और (विश्वदेव्यावता) = सब दिव्य गुणोंवाली है । इस ज्योति को प्राप्त करके हम सबका उत्तम भरण करते हैं, सदा कर्मशील बने रहते हैं और दिव्यगुणों का धारण करनेवाले बनते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ज्योति से जीवन को दीप्त करके हम देवलोक में जन्म के पात्र बनें। यह सूक्त ज्योति को प्राप्त करके ज्योतिर्मय जीवनवाले 'विभ्राट्' का वर्णन करता है। यह विभ्राट् 'इट' = गतिशील होता है और जीवन को ज्ञान से परिपक्व करनेवाला 'भार्गव' बनता है। इस 'इट भार्गव' का ही अगला सूक्त है-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिषा विभ्राजन्) ज्योतिषा विशेषेण प्रकाशमानः सन् (दिवः-रोचनम्) द्युलोकस्य प्रकाशनम्-प्रकाशनिमित्तम् (स्वः-अगच्छः) सर्वम् “स्वः सर्वम्” [निरु० १२।२६] प्राप्नोषि (येन विश्वकर्मणा देव्यावता) येन सर्वकर्मसामर्थ्यवता देवगुणप्रभावेण (इमा विश्वा भुवनानि-आभृता) एतानि सर्वाणि लोकलोकान्तराणि धारितानि सन्ति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Blazing with self-refulgence, light of heaven, you pervade all regions from earth to heaven. By you are all these world regions sustained, omnipotent divine lord of universal action and universal glory: Vishvadeva.