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इ॒दं श्रेष्ठं॒ ज्योति॑षां॒ ज्योति॑रुत्त॒मं वि॑श्व॒जिद्ध॑न॒जिदु॑च्यते बृ॒हत् । वि॒श्व॒भ्राड्भ्रा॒जो महि॒ सूर्यो॑ दृ॒श उ॒रु प॑प्रथे॒ सह॒ ओजो॒ अच्यु॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ śreṣṭhaṁ jyotiṣāṁ jyotir uttamaṁ viśvajid dhanajid ucyate bṛhat | viśvabhrāḍ bhrājo mahi sūryo dṛśa uru paprathe saha ojo acyutam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम् । श्रेष्ठ॑म् । ज्योति॑षाम् । ज्योतिः॑ । उ॒त्ऽत॒मम् । वि॒श्व॒ऽजित् । ध॒न॒ऽजित् । उ॒च्य॒ते॒ । बृ॒हत् । वि॒श्व॒ऽभ्राट् । भ्रा॒जः । महि॑ । सूर्यः॑ । दृ॒शे । उ॒रु । प॒प्र॒थे॒ । सहः॑ । ओजः॑ । अच्यु॑तम् ॥ १०.१७०.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:170» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिषाम्) ज्योतियों की, (ज्योतिः) ज्योति (इदम्-उत्तमं श्रेष्ठम्) यह ऊपर गई हुई श्रेष्ठ-अविनश्वर (बृहत्-उच्यते) महत्त्वपूर्ण कही जाती है। (विश्वभ्राट्) विश्व को प्रकाश देनेवाला (भ्राजः) स्वयं प्रकाशमान (महि सूर्यः) महान् सूर्य है (दृशे) विश्व को दिखाने के लिए (उरु सहः-ओजः पप्रथे) बहुत बलरूप ओजस्वी प्रतापी प्रथित-प्रसिद्ध हो रहा है ॥३॥
भावार्थभाषाः - आकाश में सूर्य सब ज्योतियों का ज्योति, श्रेष्ठ और महान् है, यह जगत् को दिखाने के लिए बड़ा तेजस्वी प्रतापवान् प्रसिद्ध है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सहस्वी - ओजस्वी

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में वर्णित उस सर्वाधार प्रभु में अर्पित (इदं ज्योतिः) = यह ज्योति (श्रेष्ठम्) = श्रेष्ठ है, प्रशस्यतम है। (ज्योतिषां उत्तमम्) = सब ज्योतियों में उत्तम हैं। यह (विश्वजित्) = हमारे लिये विश्व का विजय करनेवाली है, (धनजित्) = सब धनों को जीतनेवाली है । यह ज्योति (बृहत् उच्यते) = वृद्धि का कारण कही जाती है । [२] इस ज्योति को प्राप्त करनेवाला 'विभ्राट्' (विश्व भ्राट्) = संसार में चमकता है (महि भ्राजः) = यह महनीय भ्राज व तेज होता है । (सूर्यः दृशे) = यह देखने के लिये सूर्य ही होता है। सूर्य के समान दिखता है । यह अपने अन्दर (अच्युतम्) = न नष्ट होनेवाले (सहः) = शत्रुमर्षक बल को तथा (ओजः) = शरीर की शक्तियों को विस्तृत करनेवाले बल को (उरु पप्रथे) = खूब ही विस्तृत करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु की ज्योति को प्राप्त करके हम सहस्वी व ओजस्वी बनते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिषां ज्योतिः-इदम्-उत्तमं श्रेष्ठं बृहत्-उच्यते) ज्योतिषां ज्योतिरिदमुत्तमं श्रेष्ठमविनश्वरं महदस्ति (विश्वभ्राट्-भ्राजः-महि सूर्यः) विश्वप्रकाशको भ्राजमानो महान् सूर्यः (दृशे-उरु सहः-ओजः पप्रथे) दर्शनाय बहुबलरूपः-ओजस्वी प्रतापी प्रथते ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - This mighty best and highest light of lights is exalted as universally pervasive winner and giver of wealth. This world illuminant light, great sun, is the light for the world’s vision. It expands far and wide, undaunted lustre and majesty that it is, imperishable and eternal.