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अपे॑हि मनसस्प॒तेऽप॑ क्राम प॒रश्च॑र । प॒रो निॠ॑त्या॒ आ च॑क्ष्व बहु॒धा जीव॑तो॒ मन॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apehi manasas pate pa krāma paraś cara | paro nirṛtyā ā cakṣva bahudhā jīvato manaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑ । इ॒हि॒ । म॒न॒सः॒ । प॒ते॒ । अप॑ । क्रा॒म॒ । प॒रः । च॒र॒ । प॒रः । निःऽऋ॑त्यै । आ । च॒क्ष्व॒ । ब॒हु॒धा । जीव॑तः । मनः॑ ॥ १०.१६४.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:164» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में मानसिक रोग के मन के दुःसङ्कल्प को नष्ट करने के उपाय, परमात्मा की उपासना, शिवसङ्कल्प कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (मनस्पते) हे मन के गिरानेवाले क्लेश देनेवाले रोग ! (अप इहि) मेरे शरीर से दूर हो जा (अपक्राम) भाग जा, उलटे मुँह हो जा (परः-चर) परे चला जा (निर्ऋत्यै) मृत्यु के लिये (परः-आ चक्ष्व) परे रहता हुआ न आवे, यह भलीभाँति कह, यतः (बहुधा) बहुत प्रकार के किए उपचारोंवाला (जीवतः-मनः) जीवन धारण करते हुए का मेरा मन है, इसमें निराशा नहीं है ॥१॥
भावार्थभाषाः - रोगी को निराश नहीं होना चाहिए, किन्तु रोग दूर करने के अनेक औषधोपचार करते हुए मानसिक संकल्प से रोग बढ़ने या मृत्यु तक को भगाने के लिये साहस धारण करना चाहिए ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पाप संकल्प का अपक्रमण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (मनसः पते) = मन के पति बन जानेवाले पाप संकल्प ! यह पाप संकल्प उत्पन्न हुआ और यह मन को पूर्णरूप से वशीभूत-सा कर लेता है। इस पाप संकल्प को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि अप इहि तू हमारे से दूर जा । अप क्राम तेरा पादविक्षेप हमारे से दूरदेश में ही हो । (परः चर) = तू दूर होकर गतिवाला हो । [२] (निर्ऋत्यै) = इस निर्ऋति, दुर्गति, दुराचार के लिये (पर:) = हमारे से दूर होकर आचक्ष्व कथन कर। अर्थात् तू हमें पाप के लिये प्रेरित मत कर । (जीवतः मनः) = प्राणशक्ति को धारण करनेवाले मेरा मन (बहुधा) = बहुत चीजों का धारण करनेवाला है । घर के कितने ही कार्यों, गौ आदि की सेवा व वेदवाणी के अध्ययन में मेरा मन व्यापृत है । सो हे पाप संकल्प ! तू मेरे से दूर जा, मुझे अवकाश नहीं कि मैं तेरे कथनों को सुनूँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम मन पर प्रभुत्व पा लेनेवाले पाप संकल्प को दूर भगायें ।
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते मानसिकरोगस्य मनसो दुःसङ्कल्पस्य नाशनं कर्तव्यं तदुपायश्च परमात्मोपासनं शिवसङ्कल्पश्चेति वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (मनस्पते) हे मनसः पातयितः ! क्लेशयितः ! रोग ! (अपेहि) मम शरीरात् खलु दूरं गच्छ (अपक्राम) प्लायस्व-पराङ्मुखः सन् (परः चर) परागच्छ (निर्ऋत्यै) मृत्यवे (परः-आचक्ष्व) परः सन् तिष्ठ नागच्छेत्याचक्ष्व-समन्तात् कथय, यतः (बहुधा मनः-जीवतः) बहुप्रकारेण कृतोपचारं जीवनः जीवनं धारयतो मम मनोऽस्ति नास्मिन् जीवननिराशा ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Off with you, hypnosis of the mind, disturb not, get away and wander far around with death and adversity, and there proclaim that I am not for you, I am alive, awake and alert, my mind is wakeful and versatile.