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मेह॑नाद्वनं॒कर॑णा॒ल्लोम॑भ्यस्ते न॒खेभ्य॑: । यक्ष्मं॒ सर्व॑स्मादा॒त्मन॒स्तमि॒दं वि वृ॑हामि ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mehanād vanaṁkaraṇāl lomabhyas te nakhebhyaḥ | yakṣmaṁ sarvasmād ātmanas tam idaṁ vi vṛhāmi te ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मेह॑नात् । व॒न॒म्ऽकर॑णात् । लोम॑ऽभ्यः । ते॒ । न॒खेभ्यः॑ । यक्ष्म॑म् । सर्व॑स्मात् । आ॒त्मनः॑ । तम् । इ॒दम् । वि । वृ॒हा॒मि॒ । ते॒ ॥ १०.१६३.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:163» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) हे रोगी ! तेरे (वनंकरणात्-मेहनात्) वननीय शुक्रसम्पादक मूत्रेन्द्रिय से (लोमभ्यः) लोमस्थानों से-केशस्थानों से (नखेभ्यः) नखस्थानों से (सर्वस्मात्-आत्मनः) सारे शरीर से (तम्-इदम्) तेरे इस रोग को (वि वृहामि) दूर करता हूँ-अलग करता हूँ ॥५॥
भावार्थभाषाः - बालों और नखों के स्थानों से, गुप्तेन्द्रिय से, सारे शरीर से रोगों को दूर करना चाहिये ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'लोम नख दोष' दूरीकरण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे यक्ष्मगृहीत पुरुष ! मैं (ते) = तेरे (वनंकरणात्) जल को उत्पन्न करनेवाले [to make water] (मेहनात्) = शुक्र सेचक मूल इन्द्रिय से, (लोमभ्यः) = लोमों से तथा (नखेभ्यः) = नखों से (यक्ष्मम्) = रोग को उखाड़ फेंकता हूँ। [२] (ते) = तेरे (सर्वस्माद् आत्मनः) = सारे शरीर से (तं इदम्) = [यक्ष्मं] उस इस रोग को विवृहामि विनष्ट करता हूँ ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ मूलेन्द्रिय, लोम व नख आदि से रोग का निराकरण करता हूँ ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) तव (वनंकरणात्-मेहनात्) वननीयशुक्रसम्पादकान्मेहनस्थानात् गुप्तेन्द्रियात् (लोमभ्यः) लोमस्थानेभ्यः (नखेभ्यः) नखस्थानेभ्यः (सर्वस्मात्-आत्मनः) सर्वस्माच्छरीरात् “आत्मा वै तनूः” [श० ६।७।२।६] (तम्-इदं-विवृहामि) तं रोगं दूरीकरोमि ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I uproot the cancerous disease from your prostate and urinary system, hair, nails and indeed I eliminate whatever wastes and consumes the vitality of your entire living system, I throw it out.