अचेतनावस्था में भोग निषेध
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो (त्वा) = तुझे (स्वप्नेन तमसा) = स्वप्नावस्था में ले जाने वाले तमोगुणी पदार्थों के प्रयोग से (मोहयित्वा) = मूढ व अचेतन बनाकर (निपद्यते) = भोग के लिये प्राप्त होता है और इस प्रकार (य:) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = प्रजा को, गर्भस्थ सन्तान को (जिघांसति) = नष्ट करना चाहता है, (तम्) = उसको (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम दूर करते हैं । [२] गर्भिणी को अचेतनावस्था में ले जाकर भोग-प्रवृत्त होना गर्भस्थ बालक के उन्माद या विनाश का कारण हो सकता है। सो वह सर्वथा हेय है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पत्नी को अचेतनावस्था में उपयुक्त करना गर्भस्थ बालक के लिये अत्यन्त घातक होता है । सम्पूर्ण सूक्त उत्तम सन्तति को प्राप्त करने के लिये आवश्यक बातों का निर्देश करता है। अगले सूक्त में अंग-प्रत्यंग से रोगों के उद्धर्हण करनेवाले का उल्लेख है। रोगों के उद्धर्हण को करनेवाला यह 'विवृहा' है । ज्ञानी होने से यह 'काश्यप' है। यह कहता है कि-