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यस्त्वा॒ स्वप्ने॑न॒ तम॑सा मोहयि॒त्वा नि॒पद्य॑ते । प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas tvā svapnena tamasā mohayitvā nipadyate | prajāṁ yas te jighāṁsati tam ito nāśayāmasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । त्वा॒ । स्वप्ने॑न । तम॑सा । मो॒ह॒यि॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते । प्र॒ऽजाम् । यः । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒तः । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥ १०.१६२.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:162» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः-त्वा) हे रुग्णा देवी ! जो रोगकृमि तुझे (तमसा स्वप्नेन) अन्धकार-रूप स्वप्नसदृश मूर्च्छाप्रकार से (मोहयित्वा) मूर्छित करके स्मृतिरहित करके (निपद्यते) प्राप्त होता है (यः) जो (ते) तेरी (प्रजाम्) सन्तति को (जिघांसति) मारना चाहता है, (तम्) उसे (इतः) इस रोगी स्त्री से पृथक् कर (नाशयामसि) नष्ट करते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - स्त्री को अपस्मार हिस्टीरिया आदि करनेवाला रोगकृमि आक्रान्ता है, जो गर्भाशय में गर्भशिशु को मार देता है, उसे चिकित्सा से नष्ट करना चाहिए ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अचेतनावस्था में भोग निषेध

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो (त्वा) = तुझे (स्वप्नेन तमसा) = स्वप्नावस्था में ले जाने वाले तमोगुणी पदार्थों के प्रयोग से (मोहयित्वा) = मूढ व अचेतन बनाकर (निपद्यते) = भोग के लिये प्राप्त होता है और इस प्रकार (य:) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = प्रजा को, गर्भस्थ सन्तान को (जिघांसति) = नष्ट करना चाहता है, (तम्) = उसको (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम दूर करते हैं । [२] गर्भिणी को अचेतनावस्था में ले जाकर भोग-प्रवृत्त होना गर्भस्थ बालक के उन्माद या विनाश का कारण हो सकता है। सो वह सर्वथा हेय है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पत्नी को अचेतनावस्था में उपयुक्त करना गर्भस्थ बालक के लिये अत्यन्त घातक होता है । सम्पूर्ण सूक्त उत्तम सन्तति को प्राप्त करने के लिये आवश्यक बातों का निर्देश करता है। अगले सूक्त में अंग-प्रत्यंग से रोगों के उद्धर्हण करनेवाले का उल्लेख है। रोगों के उद्धर्हण को करनेवाला यह 'विवृहा' है । ज्ञानी होने से यह 'काश्यप' है। यह कहता है कि-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः-त्वा) हे रुग्णे ! यो रोगकृमिस्त्वाम् (तमसा स्वप्नेन) अन्धकाररूपेण स्वप्नेनेव मूर्च्छनेन (मोहयित्वा निपद्यते) मूर्च्छितः स्मृतिरहितः कृत्वा प्राप्नोति (यः ते प्रजाम्) यश्च तव सन्ततिम् (जिघांसति) हन्तुमिच्छति (तम्-इतः-नाशयामसि) तं खल्वस्या रुग्णाया नाशयामः ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Whoever or whatever approaches you either by creating dreams of reality or in the state of sleep or under veil of darkness or by hypnosis, and hurts or destroys your progeny, that we eliminate from here.