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यस्त्वा॒ भ्राता॒ पति॑र्भू॒त्वा जा॒रो भू॒त्वा नि॒पद्य॑ते । प्र॒जां यस्ते॒ जिघां॑सति॒ तमि॒तो ना॑शयामसि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas tvā bhrātā patir bhūtvā jāro bhūtvā nipadyate | prajāṁ yas te jighāṁsati tam ito nāśayāmasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । त्वा॒ । भ्राता॑ । पतिः॑ । भू॒त्वा । जा॒रः । भू॒त्वा । नि॒ऽपद्य॑ते । प्र॒ऽजाम् । यः । ते॒ । जिघां॑सति । तम् । इ॒तः । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥ १०.१६२.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:162» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो अमीवा रोगकृमि (भ्राता-पतिः-भूत्वा) भ्राता-भ्राता जैसा जन्म से या पति जैसा पति के जन्मकाल से प्राप्त हुआ (जारः-भूत्वा) कौमार्य अवस्था को जीर्ण करनेवाला (त्वा निपद्यते) तुझे प्राप्त होता है, तेरे अन्दर बैठ जाता है (ते प्रजां जिघांसति) तेरी सन्तति को नष्ट करता है (तम्-इतः-नाशयामसि) उसे इस स्थान से नष्ट करते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - स्त्री के अन्दर रोगकृमि भ्राता के समान जन्म के साथ आ गया है या पति के समान पति के वीर्य के साथ घुस जाता है या कौमारावस्था को नष्ट करता है, उसे नष्ट करना चाहिए ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गर्भस्थ बालक के होने पर संयम का महत्त्व

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो (भ्राता) = भरण करनेवाला (पतिः भूत्वा) = पति बनकर (त्वा) = गर्भस्थ बालकवाली तुझे (निपद्यते) = भोग के लिये प्राप्त होता है अथवा (जार:) = तेरी शक्तियों को जीर्ण करनेवाला ही (भूत्वा) = बनकर तुझे प्राप्त होता है और इस प्रकार (यः) = जो (ते) = तेरी (प्रजाम्) = उस गर्भस्थ सन्तति को (जिघांसति) = मारने की ही कामनावाला होता है, (तम्) = उसको (इतः) = यहाँ से (नाशयामसि) = हम नष्ट [दूर] करते हैं। अर्थात् ऐसी व्यवस्था करते हैं कि तुझ गर्भिणी के साथ भोगवृत्ति से कोई वर्ताव करनेवाला न हो । [२] गर्भिणी स्त्री के पति का भी यह कर्त्तव्य है कि बच्चे के गर्भस्थ होने के समय में वह भ्राता ही बना रहे। उस समय भोग का परिणाम स्त्री की शक्तियों को जीर्ण करना ही होगा और परिणामतः बालक के निर्माण में अवश्य कमी रह जायेगी। इस सारी बात को समझता हुआ भी पति यदि भोग की ओर झुकता है तो वह पति क्या ? वह तो जार ही है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- बाल के गर्भस्थ होने पर पति भी भाई की तरह वर्ते । उस समय पति के रूप में वर्तना 'जार वृत्ति' है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) योऽमीवा कृमिः (भ्राता पतिः-भूत्वा) भ्राता भ्रातृसदृशो जन्मतः यद्वा पत्या सदृशः पत्युर्जन्मतः प्राप्तः सन् (जारः-भूत्वा) जार इव भूत्वा वयोहानिं कुर्वन् (त्वां निपद्यते) त्वां प्राप्नोति (ते प्रजां जिघांसति) तव सन्ततिं हिनस्ति नाशयति (तम्-इतः-नाशयामसि) तमितः स्थानात्-खलु नाशयामः ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Whatever evil and afflication comes as brother, i.e., genetically, or as husband, i.e., through conjugal relationship, or otherwise through love and passion, and hurts, damages or destroys your progeny, we destroy and eliminate from here.