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आहा॑र्षं॒ त्वावि॑दं त्वा॒ पुन॒रागा॑: पुनर्नव । सर्वा॑ङ्ग॒ सर्वं॑ ते॒ चक्षु॒: सर्व॒मायु॑श्च तेऽविदम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āhārṣaṁ tvāvidaṁ tvā punar āgāḥ punarnava | sarvāṅga sarvaṁ te cakṣuḥ sarvam āyuś ca te vidam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । त्वा॒ । अवि॑दम् । त्वा॒ । पुनः॑ । आ । अ॒गाः॒ । पु॒नः॒ऽन॒व॒ । सर्व॑ऽअङ्ग । सर्व॑म् । ते॒ । चक्षुः॑ । सर्व॑म् । आयुः॑ । च॒ । ते॒ । अ॒वि॒द॒म् ॥ १०.१६१.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:161» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वा-आहार्षम्) हे रोगी ! तुझे रोग से छुड़ा लाया हूँ (त्वा-अविदम्) तुझे स्वास्थ्य के लिये प्राप्त कर लिया है (पुनः आगाः) फिर जीवन को प्राप्त कर (पुनर्नव सर्वाङ्ग) पुनर्नव जीवनवाले सर्वाङ्गोंवाले ! (ते चक्षुः सर्वम्) तेरी आँख सब ठीक है (च) और (सर्वम्-आयुः-ते अविदम्) तेरी सब-पूर्ण आयु प्राप्त कर लिया है युक्त चिकित्सक ने ॥५॥
भावार्थभाषाः - रोगी अच्छे वैद्य द्वारा चिकित्सा होने पर रोग से मुक्त होकर नवजीवन सर्वाङ्गपूर्ण हो पूरी आयु को प्राप्त हो जाता है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सर्वाङ्ग [पूर्ण स्वस्थ]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] रोगी को सम्बोधन करते हुए कहते हैं कि (त्वा आहार्षम्) = तुझे रोग से बाहिर ले आता हूँ और इस प्रकार (त्वा अविदम्) = तुझे प्राप्त करता हूँ । (पुनः आगा:) = तू फिर से हमें प्राप्त हो । [२] हे (पुनर्नव) = फिर से स्वस्थ होकर नवीन जीवन को प्राप्त हुए हुए पुरुष ! सर्वाङ्ग हे सम्पूर्ण अंगोंवाले पुरुष ! (ते) = तेरे लिये (सर्वं चक्षुः) = पूर्ण स्वस्थ (दृष्टि च) = और (ते) = तेरे लिये (सर्वं आयुः) = पूर्ण जीवन (अविदम्) = मैंने प्राप्त कराया है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-हम नीरोग होकर ठीक दृष्टि को व स्वस्थ अविकृत अंगों को प्राप्त करते हुए पूर्ण जीवन को प्राप्त करें । अग्निहोत्र में आहुत हविर्द्रव्यों के द्वारा नीरोगता प्राप्ति का सूक्त में वर्णन है । वे रोगकृमि अपने रमण के लिये हमारा क्षय करने से 'रक्षस्' हैं। इनको नष्ट करनेवाला 'रक्षोहा' अगले सूक्त का ऋषि है। यह सब रोगों व राक्षसीभावों से ऊपर उठने के कारण ब्रह्म को प्राप्त होता है, सो 'ब्राह्मः कहलाता है । इसकी प्रार्थना है-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वा-आहार्षम्) हे रुग्ण ! त्वां रोगादानयामि (त्वा-अविदम्) त्वां स्वास्थ्याय प्राप्नोमि (पुनः आगाः) पुनरागच्छ (पुनः-नव) हे पुनर्नवजीवन्युक्तो (सर्वाङ्ग) सर्वाङ्ग  !  (ते चक्षुः सर्वम्) तव चक्षुः सर्वं तथैवास्तु (च) तथा (सर्वम्-आयुः-ते-अविदम्) तव सर्वमायुरपि प्राप्नोमि ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I have delivered you from death and disease, brought you back to life. Live life again, renewed, refreshed again, healthy over all in all limbs, organs and systems function. I have brought back your vision and understanding in full, your life and age in full.