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स॒ह॒स्रा॒क्षेण॑ श॒तशा॑रदेन श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् । श॒तं यथे॒मं श॒रदो॒ नया॒तीन्द्रो॒ विश्व॑स्य दुरि॒तस्य॑ पा॒रम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sahasrākṣeṇa śataśāradena śatāyuṣā haviṣāhārṣam enam | śataṁ yathemaṁ śarado nayātīndro viśvasya duritasya pāram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षेण॑ । श॒तऽशा॑रदेन । श॒तऽआ॑युषा । ह॒विषा॑ । आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । ए॒न॒म् । श॒तम् । यथा॑ । इ॒मम् । श॒रदः॑ । नया॑ति । इन्द्रः॑ । विश्व॑स्य । दुः॒ऽइ॒तस्य॑ । पा॒रम् ॥ १०.१६१.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:161» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शतशारदेन) सौ शरत्काल से (शतायुषा) सौ वर्ष आयु जिससे होती है, वैसे (हविषा) होम द्रव्य से (एनम्) इस रोगी को (आहार्षम्) ले आया हूँ (यथा) जिससे (शतं शरदः) इस रोगी को सौ शरत्काल तक (विश्वस्य-दुरितस्य) सर्व रोग दुःख के (पारम्) पार (इन्द्रः-नयाति) वैद्य ले जावे ॥३॥
भावार्थभाषाः - उतम वैद्य होम द्रव्य के द्वारा सौ वर्ष तक समस्त रोग दुःख से पार कर देता है, कर दिया करता है, कर दे ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सहस्वाक्ष हवि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] मैं (एनम्) = इस रुग्ण पुरुष को (हविषा) = हवि के द्वारा (आहार्षम्) = रोग से बाहिर ले आता हूँ । उस हवि के द्वारा जो कि (सहस्त्राक्षेण) = हजारों आँखोंवाली है, हजारों पुरुषों का ध्यान करती है, हजारों को रोग मुक्त करती है। शतशारदेन यह हवि हमें शतवर्ष पर्यन्त ले चलती है । (शतायुषा) = इस हवि के द्वारा हमारा शतवर्ष का आयुष्य क्रियामय बना रहता है [एति इति आयुः] । [२] मैं इसको हवि के द्वारा रोग से बाहिर लाता हूँ और इस प्रकार व्यवस्था करता हूँ (यथा) = जिससे (इमम्) = इस पुरुष को (इन्द्रः) = सूर्य (विश्वस्य दुरितस्य) = सब दुर्गतियों के (पारं नयाति) = पार ले जाता है। अग्नि और इन्द्र [सूर्य] मिलकर मनुष्य को सब कष्टों से दूर कर देते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - अग्निहोत्र में डाले गये हविर्द्रव्यों से हजारों पुरुषों का कल्याण होता है, ये उन्हें सौ वर्षों तक जीनेवाला बनाते हैं, उनके जीवन को क्रियामय रखते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शतशारदेन) शतशरत्कालेन (शतायुषा) शतवर्षायुर्यस्माद् भवति तथाभूतेन (हविषा) होमद्रव्येण (एनम्-आहार्षम्) एतं रोगिण- मानयामि (यथा-इमं शतं शरदः) यथा हीमं रोगिणं शतं शरत्कालान् (विश्वस्य दुरितस्य) सर्वस्य रोगदुःखस्य (पारम्) पारम् (इन्द्रः-नयाति) सद्वैद्यो नयेत् “इन्द्रः-वैद्यः” [ऋ० ६।२७।२ दयानन्दः] ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - With medicines, herbs and tonics of a thousandfold efficacy of light power, a hundred year’s vitality capable of sustaining a hundred year span of life, I have brought this patient back to life and health just as Indra, lord of life and his physician version, the doctor, takes this patient across all evils and maladies of the world to a full life of hundred years.