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यदि॑ क्षि॒तायु॒र्यदि॑ वा॒ परे॑तो॒ यदि॑ मृ॒त्योर॑न्ति॒कं नी॑त ए॒व । तमा ह॑रामि॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॒दस्पा॑र्षमेनं श॒तशा॑रदाय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadi kṣitāyur yadi vā pareto yadi mṛtyor antikaṁ nīta eva | tam ā harāmi nirṛter upasthād aspārṣam enaṁ śataśāradāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यदि॑ । क्षि॒तऽआ॑युः । यदि॑ । वा॒ । परा॑ऽइतः । यदि॑ । मृ॒त्योः । अ॒न्ति॒कम् । निऽइ॑तः । ए॒व । तम् । आ । ह॒रा॒मि॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्था॑त् । अस्पा॑र्षम् । ए॒न॒म् । श॒तऽशा॑रदाय ॥ १०.१६१.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:161» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि क्षितायुः) यदि रोगाक्रान्त क्षीण आयु हो गया (यदि वा परेतः) यदि वर्त्तमान अवस्था से परे चला गया है, अधिक रोगी हो गया है (अन्तिकं नीतः-एव) यदि मृत्यु के समीप रोग ने पहुँचा दिया-मरणासन्न कर दिया (तं निर्ऋतेः) उस घोर आपत्ति के (उपस्थात्-आ हरामि) उत्सङ्ग से ले आता हूँ (एनं शतशारदाय) इसे सौ शरद् काल के लिए, सौ वर्ष-पर्यन्त जीवन के लिए (आस्पार्षम्) बलवान् करता हूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - रोगी घने रोग में पड़ जावे, तो चकित्सक ओषधि से चिकित्सा करता हुआ होमचिकित्सा करता हुआ साथ-साथ बलवान् शब्दों में आश्वासन दे कि मैं तुझे मृत्यु के समीप गये हुए को भी पूर्ण बलवान् बनाता हूँ ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

निरृति की गोद से बाहिर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यदि) = यदि (क्षितायुः) - यह रुग्ण पुरुष क्षीण आयुष्यवाला हो गया है। (यदि वा) = अथवा (परेत:) = [परा इतः] रोग में बहुत दूर पहुँच गया है। यदि अगर (मृत्योः) = मृत्यु के (अन्तिकम्) = समीप (एव) = ही (नीतः) = प्राप्त कराया गया है, तो भी (तम्) = उसको (निर्ऋते:) = दुर्गति की (उपस्थात्) = गोद से (आहरामि) = बाहर ले आता हूँ। वस्तुतः गतमन्त्र में वर्णित अग्निहोत्र के द्वारा मैं इसे तीव्रतम रोगों से भी मुक्त करता हूँ। [२] इस प्रकार रोगमुक्त करके (एनम्) = इसको (शतशारदाय) = पूरे शतवर्ष के जीवन के लिये (अस्पार्षम्) = [स्पृ] बलयुक्त करता हूँ । अग्निहोत्र के द्वारा इसे [क] रोगों से मुक्त करता हूँ और [ख] बल से युक्त करता हूँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थं - अग्निहोत्र के द्वारा तीव्रतम रोगों से भी मुक्ति सम्भव है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदि क्षितायुः) यदि रोगाक्रान्तः-क्षीणायुः (यदि वा परेतः) यदि चेतोऽवस्थातः परागतः (यदि-मृत्योः-अन्तिकं नीतः-एव) यदि मृत्योः समीपं रोगेण नीतो मरणासन्नः कृतोऽपि (तं निर्ऋतेः-उपस्थात्-आहरामि) तं घोरापत्तेरुपस्थानादुत्सङ्गादानयामि (एनं शतशारदाय-अस्पार्षम्) एनं शतशरत्कालाय शतवर्षपर्यन्तमित्यर्थः-बलिनं करोमि “स्पृ प्रीतिबलनयोः” ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - If the patient is extremely debilitated, sunk beyond hope, almost gone to the brink of death, I touch and bring him back from the depth of despair to live his full hundred years of life. (The word ‘asparsham’ suggests the efficacy of touch therapy.)