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अ॒श्वा॒यन्तो॑ ग॒व्यन्तो॑ वा॒जय॑न्तो॒ हवा॑महे॒ त्वोप॑गन्त॒वा उ॑ । आ॒भूष॑न्तस्ते सुम॒तौ नवा॑यां व॒यमि॑न्द्र त्वा शु॒नं हु॑वेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aśvāyanto gavyanto vājayanto havāmahe tvopagantavā u | ābhūṣantas te sumatau navāyāṁ vayam indra tvā śunaṁ huvema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒श्व॒यन्तः॑ । ग॒व्यन्तः॑ । वा॒जय॑न्तः । हवा॑महे । त्वा॒ । उप॑ऽग॒न्त॒वै । ऊँ॒ इति॑ । आ॒ऽभूष॑न्तः । ते॒ । सु॒ऽम॒तौ । नवा॑याम् । व॒यम् । इ॒न्द्र॒ । त्वा॒ । शु॒नम् । हु॒वे॒म॒ ॥ १०.१६०.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:160» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वायन्तः) घोड़े को चाहते हुए (गव्यन्तः) गौ को चाहते हुए (वाजयन्तः) अन्न को चाहते हुए (त्वा-उपगन्तवै-उ) तुझे पास आने के लिए अवश्य ही (हवामहे) आमन्त्रित करते हैं (इन्द्र) राजन् ! (ते) तेरी (नवायां-सुमतौ) स्तोतव्य कल्याणी मति में (आभूषन्तः) अपने को भलीभाँति अलंकृत करते हुए (त्वा शुनं हुवेम) तुझे सुख के लिए प्रार्थना करते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनों को घोड़ों, गौओं और अन्नादि पदार्थों की आवश्यकता होती है, इस प्रयोजन के लिए राजा से वे प्रार्थना करें और राजा उन्हें इन वस्तुओं से संपन्न बनावे, प्रजाजन भी उसकी प्रशंसनीय कल्याणी नीति पर चलें ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तपस्वी जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में वर्णित विलासमय जीवन से विपरीत जीवन का चित्रण करते हुए कहते हैं कि (अश्वायन्तः) = शक्ति की कामना करते हुए हम (उपगन्तवा उ) = आपके प्रभु के समीप प्राप्त होने के लिये (त्वा हवामहे) = आपको पुकारते हैं। प्रभु की आराधना से जीवन का मार्ग विलास का नहीं होता और परिणामतः कर्मेन्द्रियाँ व ज्ञानेन्द्रियाँ सशक्त बनी रहती हैं। शरीर की शक्ति का विनाश नहीं होता। [२] हे प्रभो ! इस प्रकार (ते) = आपकी (नवायाम्) = अत्यन्त स्तुत्य (सुमतौ) = कल्याणीमति में (आभूषन्तः) = सदा वर्तमान होते हुए (वयम्) = हम, हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो ! (शुनम्) = आनन्दस्वरूप (त्वा) = आपको (हुवेम) = पुकारते हैं। आपकी आराधना में चलते हुए ही हम आपकी कल्याणीमति को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - उत्तम कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों व शक्ति का सम्पादन करते हुए हम प्रभु का उपासन करें। प्रभु हमें शुभ बुद्धि को प्राप्त कराते हैं । सूक्त का मुख्य विषय यही है कि सोम के रक्षण के द्वारा जीवन को उत्तम बनायें । इसका परिणाम यह होगा कि हमारे सब रोग विनष्ट हो जायेंगे। हम 'यक्ष्मनाशन: ' होंगे। नीरोग बनकर यज्ञात्मक कर्मों से लोकहित में प्रवृत्त होने से हम 'प्राजापत्य: ' होंगे। यही अगले सूक्त का ऋषि है-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वायन्तः) अश्वमिच्छन्तः (गव्यन्तः) गामिच्छन्तः (वाजयन्तः) अन्नादिभोग्यमिच्छन्तः (त्वा-उपगन्तवै-उ हवामहे) त्वामुपगन्तुम् “तुमर्थे से…तवै…” [अष्टा० ३।४।९] इति तवै प्रत्ययः-आमन्त्रयामहे, (इन्द्र ते नवायां सुमतौ) हे राजन् ! तव स्तोतव्यायां कल्याण्यां मतौ (आभूषन्तः) आत्मानं समन्तादलङ्कुर्वन्तः (त्वा शुनं-हुवेम) त्वां सुखं प्रार्थयामहे ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Enthusiastic and advancing for progress, prosperity and pride of achievement, we call upon you, Indra, ruling lord of the world, to come close to us and be with us. Winning the graces of life and doing glory to divinity, we pray, let us abide in your favour and adorable good will. We pray for peace and well being, we ask for divine grace.