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शीति॑के॒ शीति॑कावति॒ ह्लादि॑के॒ ह्लादि॑कावति । म॒ण्डू॒क्या॒३॒॑ सु सं ग॑म इ॒मं स्व१॒॑ग्निं ह॑र्षय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śītike śītikāvati hlādike hlādikāvati | maṇḍūkyā su saṁ gama imaṁ sv agniṁ harṣaya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शीति॑के । शीति॑काऽवति । ह्लादि॑के । ह्लादि॑काऽवति । म॒ण्डू॒क्या॑ । सु । सम् । ग॒मः॒ । इ॒मम् । सु । अ॒ग्निम् । ह॒र्ष॒य॒ ॥ १०.१६.१४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:16» मन्त्र:14 | अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:1» मन्त्र:14


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शीतिके शीतिकावति ह्लादिके ह्लादिकावति मण्डूक्या सुसङ्गमः-इमम्-अग्निं सुहर्षय) हे शीतरूप दूब ! हे शीतदूबयुक्त भूमे ! हे मन को प्रसन्न करनेवाली सुगन्धवल्लकि ! हे सुगन्धवल्लकियुक्त भूमे ! तू मण्डूकी के साथ भली-भाँति इस प्रकार सङ्गत हो कि अन्त्येष्टि अग्नि के प्रभाव का यहाँ कोई भी चिह्न न रहे ॥१४॥
भावार्थभाषाः - शवाग्नि के पश्चात् उस भूमि का उपचार इस प्रकार होना चाहिये कि वहाँ ठण्डी-ठण्डी दूब और सुगन्धलता उगकर भूमि हरी-भरी और मेण्डकियों के साथ सुन्दर प्रतीत होने लगे एवं शवाग्नि के प्रभाव का कोई भी चिह्न न रहे ॥१४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मण्डूकी

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रस्तुत मन्त्र में (मण्डूकी) = मण्डूकपर्णी का उल्लेख है, यह कोश के अनुसार कई पौधों का नाम है [Name of sevaral plants] । ये सब पौधे शीतवीर्य व सुख प्रीति के बढ़ानेवाले हैं। शीतवीर्य होने से इन्हें मन्त्र में 'शीतिके' शब्द से सम्बोधित किया गया है तथा सुख-प्रीतिवर्धक होने से 'ह्लादिके' कहा गया है। हे (शीतिकावति) = शीतवीर्य वाली, शरीर में उत्तेजना को दूर करके शान्ति को जन्म देनेवाली (शीतिके) = शीतिका नाम वाली ओषधि, हे (ह्लादिकावति) = शरीर में उत्तम धातुओं को जन्म देकर आह्लाद को बढ़ानेवाली (ह्लादिके) = ह्लादिका नामवाली ओषधि; ऐ (ह्लादिकावति) = शरीर को उत्तम धातुओं से मण्डित करनेवाली है। तू (आ सु संगम) = सब प्रकार से उत्तमता से हमारे साथ संगत हो और (इमं) = इस (अग्निम्) = प्रगतिशील जीव की वैश्वानर अग्नि को (हर्षय) = हर्षित कर । इस की यह जाठराग्नि बुझ न जाए। यह दीप्त अग्नि इसके जीवन को भी दीप्त करनेवाली हो। दीप्त अग्नि ही शरीर में शान्ति व हर्ष के वर्धन का कारण बनती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारे भोजन मण्डूकपर्णी ओषधि के समान शीतवीर्य व प्रीतिवर्धक हो । सूक्त के प्रारम्भ में आचार्य विद्यार्थी को तप व दण्ड की उचित व्यवस्था से ज्ञान परिपक्व करते हैं। [१] आचार्यकुल में विद्यार्थी असुनीति प्राणविद्या का अध्ययन करता है और स्वास्थ्य की कला को सीखता है, [२] सूर्यादि देवों के साथ यह अपनी अनुकूलता बनाता है, [३] तप पवित्रता व ज्ञानदीप्ति से यह प्रभु को धारण करता है, [४] गृहस्थ की समाप्ति पर फिर से पितरों के समीप वन में आता है, [५] विषादि को अग्नि प्रयोग से दूर करता है, [६] प्रभु स्मरण रूप कवच को धारण करता है, [७] अपने जीवन से कुटिलता को दूर करता है, [८] मांस भोजन को सर्वथा छोड़ता है, [९] वानस्पतिक भोजन द्वारा यज्ञिय वृत्ति वाला बनता है, [१०] शाकाहार से ही देवत्व तथा पितृत्व की वृद्धि होती है, [११] हम प्रभु की प्राप्ति की कामना वाले बनते हैं, [१२] हम कियाम्बु व पाकदूर्वा का प्रयोग करें, [१३] मण्डूकपर्णी जाति की ओषधियों को अपनायें जो कि शीतवीर्य व हर्षवर्धक हैं, [१४] ऐसा होने पर त्वष्टा की दुहिता सरण्यू से हमारा परिणय होगा ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शीतिके शीतिकावति ह्लादिके ह्लादिकावति मण्डूक्या सु सङ्गमः-इमम्-अग्निं सुहर्षय) हे शीतिके शीतरूपे दूर्वे ! “शीता दूर्वानाम” [धन्वन्तरिनिघण्टौ पर्पटादिवर्गे तथा च वाचस्पत्ये] ‘ततोऽनुकम्पायां कन्’। शीतिकावति ! हे दूर्वावति भूमे ! ह्लादिके-मनःप्रसादिके वल्लकि ! “वल्लकी  ह्लादा सुरभिः सुस्रवा च सा” [धन्वन्तरिनिघण्टौ] ह्लादिकावति-हे ह्लादिकावति भूमे ! मण्डूक्या सह सु सम्यक् सङ्गमः-सङ्गच्छस्व तथेममग्निमग्निप्रभावं सुहर्षय-सम्यगलीकं शान्तं कुरु, “हृषु-अलीके” [भ्वादिः] ॥१४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O cool grass, O refreshing land, growing with luxuriant grass, O delightful spot covered with delightful flowers, rejoice with beauty and grace, let this place of holy fire be renewed, joyous and gracious.