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मम॑ पु॒त्राः श॑त्रु॒हणोऽथो॑ मे दुहि॒ता वि॒राट् । उ॒ताहम॑स्मि संज॒या पत्यौ॑ मे॒ श्लोक॑ उत्त॒मः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mama putrāḥ śatruhaṇo tho me duhitā virāṭ | utāham asmi saṁjayā patyau me śloka uttamaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मम॑ । पु॒त्राः । श॒त्रु॒ऽहनः॑ । अथो॒ इति॑ । मे॒ । दु॒हि॒ता । वि॒राट् । उ॒त । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । स॒म्ऽज॒या । पत्यौ॑ । मे॒ । श्लोकः॑ उ॒त्ऽत॒मः ॥ १०.१५९.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:159» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मम पुत्राः) मेरे पुत्र (शत्रुहणः) शत्रुनाशक हैं (अथ उ) और (मे दुहिता विराट्) मेरी कन्या विशेषरूप से राजमान प्रकाशमान है, जिस घर में होगी, वहाँ अपने प्रभाव को गिरानेवाली ज्योति है (उत) और (अहं सञ्जया-अस्मि) मैं घर के भार को संभालनेवाली थूणी के समान हूँ (मे पत्यौ-उत्तमः-श्लोकः) मेरे पति के निमित्त लोगों का उत्तम प्रशंसाभाव है ॥३॥
भावार्थभाषाः - सद्गृहस्थ के लोग सभी प्रशंसा के पात्र होने चाहिए, पुत्र बाहरी भीतरी शत्रुओं के नाशक हों-कन्याएँ ज्योति के समान घर में कुरूढ़ि और अज्ञान को हटानेवाली हों, पत्नी धर्म की थूणी और पति यश और प्रशंसा के भागी हों ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वीर पुत्र

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र की आदर्श माता यह कह पाती है कि (मम पुत्राः) = मेरे पुत्र (शत्रुहण:) = शत्रुओं को मारनेवाले हैं, ये कभी शत्रुओं से अभिभूत नहीं होते । (अथ उ) = और निश्चय से (मे दुहिता) = मेरी पुत्री (विराट्) = विशिष्टरूप से तेजस्विनी होती है । [२] (उत) = और (अहम्) = मैं (सञ्जया) = सम्यक् शत्रुओं को जीतनेवाली होती हूँ । (मे पत्यौ) = मेरे पति में (उत्तमः श्लोकः) = उत्कृष्ट यश होता है। मेरे पति भी वीरता के कारण यशस्वी होते हैं। माता-पिता की वीरता के होने पर ही सन्तानों में भी वीरता आती है। माता-पिता का जीवन यशस्वी न हो तो सन्तानों का जीवन कभी यशस्वी नहीं हो सकता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वीर माता-पिता ही वीर व यशस्वी सन्तानों को जन्म देते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मम पुत्राः शत्रुहणः) मम पुत्राः-बाह्याभ्यन्तरशत्रुनाशकाः सन्ति (अथ-उ) अथ चैव (मे दुहिता विराट्) मम कन्या विराट् विशेषेण राजमाना-यस्मिन् गृहे भविष्यति तत्र स्वप्रभावं पातयित्री ज्योतिरस्ति “विराजा ज्योतिषा सह धर्मो बिभर्ति” [तै० आ० ४।२१।१] (उत) अपि च (अहं सञ्जया-अस्मि) अहं गृहस्थं सम्यग् जेतुं योग्या स्तम्भिनी “पशूनामवरुध्यै सञ्जयं क्रियते” [ता० ३।६।७] (मे पत्यौ-उत्तमः श्लोकः) मम पतिनिमित्तं जनानामुत्तमः प्रशंसाभावः इति सद्गृहस्थवर्णनम् ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - My sons are destroyers of enmity. My daughter is refulgent. I am the victor all round, so my song of adoration rises to my master who is the light and life of the world.