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स॒हस्र॑णीथाः क॒वयो॒ ये गो॑पा॒यन्ति॒ सूर्य॑म् । ऋषी॒न्तप॑स्वतो यम तपो॒जाँ अपि॑ गच्छतात् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sahasraṇīthāḥ kavayo ye gopāyanti sūryam | ṛṣīn tapasvato yama tapojām̐ api gacchatāt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒हस्र॑ऽनीथाः । क॒वयः॑ । ये । गो॒पा॒यन्ति॑ । सूर्य॑म् । ऋषी॑न् । तप॑स्वतः । य॒म॒ । त॒पः॒ऽजान् । अपि॑ । ग॒च्छ॒ता॒त् ॥ १०.१५४.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:154» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:12» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ये सहस्रणीथाः) जो बहुत ज्ञाननेत्रवाले (कवयः) मेधावी (सूर्यं गोपायन्ति) ज्ञान सूर्य को-वेद को अपने अन्दर धारण करते हैं (तपस्वतः) तपस्वी (तपोजान्) तप से प्रसिद्ध-सम्पन्न (ऋषीन्) ऋषियों को (यम) हे ब्रह्मचारी ! (तान्-अपि-गच्छतात्) उनको भी ज्ञानप्राप्ति के लिए प्राप्त हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचारी को चाहिए कि बहुत ज्ञान नेत्रवाले मेधावी जन, जो वेद को अपने अन्दर धारण किये हैं, उन ऐसे ऋषियों के पास पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए या उन जैसा बनने के लिए प्राप्त हो ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तपस्वी ऋषि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] [नीथ:-पथप्रदर्शन glsiding] (सहस्रणीथा:) = शतश: पुरुषों को मार्गदर्शन करानेवाले (कवयः) = ज्ञानी पुरुष, (ये) = जो (सूर्यं गोपायन्ति) = अपने मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञान सूर्य का रक्षण करते हैं, उन (ऋषीन्) = तत्त्वद्रष्टा ज्ञानी पुरुषों को जो (तपस्वतः) = तपस्यामय जीवनवाले हैं, उन (तपोजान्) = तप से जिन्होंने अपनी शक्तियों का विकास किया है उन पुरुषों को हे (यम) = आचार्य ! यह बालक (अपिगच्छतात्) = प्राप्त होनेवाला हो। [२] इस बालक का इस प्रकार का शिक्षण हो कि यह अपने जीवन को तपस्या के द्वारा उत्तम परिपाकवाला करके औरों के लिये मार्गदर्शन का कार्य करे।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सन्तानों को हम तपस्वी ऋषि तुल्य जीवनवाला बनायें । यह सूक्त सन्तानों के आदर्श निर्माण को हमारे सामने उपस्थित करता है। जिनका इस प्रकार निर्माण होता है वे भारद्वाजः = अपने में सदा त्याग को स्थापित करनेवाले [वाज = saerifice] 'शिरिम्बिठ'= [विठम् अन्तरिक्षम्, इत हिंसायाम्] हृदयान्तरिक्ष में वासना को विनष्ट करनेवाले बनते हैं। ये सदा दान की वृत्तिवाले होते हुए कहते हैं कि-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ये सहस्रणीथाः) ये बहुज्ञाननेत्राः (कवयः) मेधाविनः (सूर्यं गोपायन्ति) ज्ञानसूर्यं वेदम् “सूर्यः सवितेव ज्ञानप्रकाशः” [ ऋ० १।१२५।१ दयानन्दः] स्वस्मिन् रक्षन्ति-धारयन्ति (तपस्वतः-तपोजान्-ऋषीन्) तपस्विनः तपसा सम्पन्नान् ऋषीन् (यम तान्-अपि गच्छतात्) अपि गच्छ ज्ञानप्राप्तये ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Poets, seers and sages of hundredfold vision and virtue who adhere to the light of eternity at heart, and the Rshis established in tapas, O soul on the sojourn of existence, the spirit of life flows to them all and through them all, eternally.