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सोम॒ एके॑भ्यः पवते घृ॒तमेक॒ उपा॑सते । येभ्यो॒ मधु॑ प्र॒धाव॑ति॒ ताँश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

soma ekebhyaḥ pavate ghṛtam eka upāsate | yebhyo madhu pradhāvati tām̐ś cid evāpi gacchatāt ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोमः॑ । एके॑भ्यः । प॒व॒ते॒ । घृ॒तम् । एके॑ । उप॑ । आ॒स॒ते॒ । येभ्यः॑ । मधु॑ । प्र॒ऽधाव॑ति । तान् । चि॒त् । ए॒व । अपि॑ । ग॒च्छ॒ता॒त् ॥ १०.१५४.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:154» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:12» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में ब्रह्मचारी को वेदाचार्यों के पास जाकर वेदाध्ययन करना, आश्रमों का क्रमशः सेवन और वर्णों को यथेच्छ वरना चाहिए इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (एकेभ्यः) सामाध्यापक ऋषियों के लिए (सोमः पवते) परमात्मा का आनन्दरस या सोमौषधी का रस प्रवाहित होता है, बहता है-प्राप्त होता है (एके) कुछ एक यजुर्वेद के अध्यापक ऋषि (घृतम्-उप आसते) अध्यात्म तेज का सेवन करते हैं (येभ्यः) जिन अथर्ववेद के अध्यापक ऋषियों के लिए (मधु प्रधावति) मधुर आत्मभाव प्रकृष्टरूप से प्राप्त होता है (तान्-चित्) उन्हें भी जो ऋग्वेद के अध्यापक ऋषि हैं (एव) इसी प्रकार (अपि गच्छतात्) हे संयमी ब्रह्मचारी ! अध्ययन के लिए प्राप्त हो ॥१॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचारी को चाहिए कि अपने अन्दर परमात्मा के आनन्दरस को- अध्यात्मतेज को लाने के लिए सामवेद के अध्यापक, यजुर्वेद के अध्यापक, अथर्ववेद के अध्यापक से तथा सभी गुणों की प्राप्ति के लिए ऋग्वेद के अध्यापक से मन्त्रों का अध्ययन करे ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सौम्य - दीप्त- मधुर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एकेभ्यः) = कइयों के लिये (सोमः) = सोम [वीर्य] (पवते) = पवित्र करनेवाला होता है । वीर्य के रक्षण से उनका जीवन शरीर में नीरोग, मन में निर्मल व बुद्धि में तीव्र बनता है। (एके) = कई (धृतम्) = ज्ञानदीप्ति की उपासते उपासना करते हैं। ज्ञान को महत्त्व देते हुए वे ज्ञान से चमक उठते मुख हैं। कई ऐसे होते हैं, (येभ्यः) = जिनसे कि मधु (प्रधावति) = मधु ही प्रवाहित होता है, जिनके से शहद के समान मधुर शब्द ही निकलते हैं । [२] यह हमारे समीप आया हुआ बालक (चित्) = निश्चय से (तान् एव) = उन लोगों को ही (अपि गच्छतात्) = समीपता से प्राप्त होनेवाला हो । अर्थात् इसकी भी गिनती उनमें हो, जो सोम का रक्षण करते हैं, ज्ञान से दीप्त होते हैं और मधुर ही शब्दों को बोलते हैं। शरीर में सोमरक्षण से यह बिलकुल नीरोग हो, मस्तिष्क में ज्ञान से परिपूर्ण हो और व्यवहार में अत्यन्त मधुर हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हमारे सन्तान 'सौम्य, दीप्त व मधुर स्वभाव' के हों ।
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ब्रह्ममुनि

सूक्तेऽस्मिन् ब्रह्मचारिणा वेदाचार्यस्य पार्श्वे गत्वाऽध्येयं क्रमेण खल्वाश्रमाणामनुष्ठानं करणीयं वर्णानां च यथेच्छं वरणीययित्येवमादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (एकेभ्यः सोमः पवते) एकेभ्यः सामाध्यापकेभ्यः-ऋषिभ्यः सोमः परमात्मानन्दरसः सोमौषधिरसो वा प्रवहति “यत्सामानि ऋषयोऽध्यगीषत सोमाहुतयः” [तै० आ० २।९।२] (एके घृतम्-उपासते) एके खल्वृषयो ये यजूंषि-अध्यापयन्ति तेऽध्यात्मतेजः सेवन्ते “यद् यजूंषि-ऋषयोऽध्यगीषत घृताहुतयः” [तै० आ० २।९।२] (येभ्यः-मधु प्रधावति) येभ्योऽथर्वाध्यापकेभ्य ऋषिभ्यो मधु-मधुर आत्मभावः प्रकृष्टं प्राप्नोति “आत्मा वै पुरुषस्य मधु” [तै० २।३।२।९] “यदथर्वणाऽङ्गिरसो मधुकुल्या इति” [तै० आ० २।९।२] (तान्-चित्-एव-अपि गच्छतात्) हे संयमिन् ब्रह्मचारिन् ! तानृङ्मन्त्राध्यापकानपि देवान् गच्छ तेभ्योऽध्येतुम् ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma flows for many, they chant the Samans. Many love ghrta for the yajna fire, they chant the Yajus. Honey flows for those who chant the Atharva verses, and knowledge for the lovers of Rks. The spirit of life flows for all them, universally.