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ई॒ङ्खय॑न्तीरप॒स्युव॒ इन्द्रं॑ जा॒तमुपा॑सते । भे॒जा॒नास॑: सु॒वीर्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

īṅkhayantīr apasyuva indraṁ jātam upāsate | bhejānāsaḥ suvīryam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒ङ्खय॑न्तीः । अ॒प॒स्युवः॑ । इन्द्र॑म् । जा॒तम् । उप॑ । आ॒स॒ते॒ । भे॒जा॒नासः॑ । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥ १०.१५३.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:153» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में परमात्मा सब बलों का अध्यक्ष द्युलोक का विकासकर्ता, एवं राजा बलों का अध्यक्ष, प्रजाओं का विकासकर्ता होना चाहिए आदि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रम्) परमात्मा या राजा (सुवीर्यम्) शोभनबलयुक्त (जातम्) प्रसिद्ध हुए को (ईङ्खयन्तीः) प्रेरित करती हुई (अपस्युवः) अपने कर्म को चाहती हुई-कर्तव्यपरायण हुई (भेजानासः) भजमान-सेवन करती हुई मानवप्रजा (उप आसते) उपाश्रित करती हैं-उसका आश्रय लेती हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - स्वयंसिद्ध शोभन बलवाले परमात्मा को कर्तव्यकर्मपरायण उपासक प्रजाएँ कर्म का शुभ फल मिले, ऐसी प्रेरणा करती हुई परमात्मा का आश्रय लेती हैं एवं राजसूययज्ञ में प्रसिद्ध हुए बलवान् राजा को सुख फल देने की प्रेरणा करती हुई उसे आश्रित करती हैं-उसका आश्रय लेती हैं ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'स्तुति - क्रिया-संयम'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ईङ्खयन्ती:) = स्तुति द्वारा प्रभु की ओर गति करनेवाली, (अपस्युवः) = अपने साथ कर्म को जोड़नेवाली मातएँ (जातम्) = उत्पन्न हुए हुए (इन्द्रम्) = इस इन्द्रियों के अधिष्ठाता बननेवाले बालक को (उपासते) = उपासित करती हैं। सदा इसका ध्यान करती हैं, इसे अपनी आँखों से ओझल नहीं करती । [२] इसका निर्माण करनेवाली ये माताएँ (सुवीर्यं भेजानासः) = उत्तम वीर्य व शक्ति का सेवन करनेवाली होती हैं। स्वयं संयमी जीवन बिताती हुईं ये शक्ति का रक्षण करती हैं। इनका अपना जीवन संयमवाला न हो, तो इन्होंने बच्चों का क्या निर्माण करना ?
भावार्थभाषाः - भावार्थ- बालक को वही माता 'इन्द्र' बना पाती है जो कि - [क] प्रभु - स्तवन की शक्ति का सेवन करनेवाली वृत्तिवाली हो, [ख] क्रियाशील जीवनवाली हो, [ग] संयम द्वारा उत्तम हो।
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते परमात्मा समस्तबलानाममध्यक्षो द्युलोकस्य विकासयिता, एवं राज्ञा सर्वबलानामध्यक्षेण प्रजानां विकासकेन च भवितव्यम्।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रं सुवीर्यं जातम्) परमात्मानं राजानं वा शोभनबलोपेतं जातम् (ईङ्खयन्तीः) प्रेरयन्त्यः (अपस्युवः) आत्मनः कर्मेच्छन्त्यः कर्त्तव्यपरायणाः (भेजानासः) भजमानाः-सेवमानाः मानवप्रजाः “इकारो वर्णव्यत्ययेन” [ऋ० ४।२९।५ दयानन्दः] (उपासते) उपाश्रयन्ति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Active, expressive and eloquent people, conscious of their rights and duties, serve and abide by the ruling power of the system, Indra, as it arises and advances, and while they do so they enjoy good health, honour and prosperity of life for themselves and their progeny.