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श्र॒द्धां दे॒वा यज॑माना वा॒युगो॑पा॒ उपा॑सते । श्र॒द्धां हृ॑द॒य्य१॒॑याकू॑त्या श्र॒द्धया॑ विन्दते॒ वसु॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śraddhāṁ devā yajamānā vāyugopā upāsate | śraddhāṁ hṛdayyayākūtyā śraddhayā vindate vasu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्र॒द्धाम् । दे॒वाः । यज॑मानाः । वा॒युऽगो॑पाः । उप॑ । आ॒स॒ते॒ । श्र॒द्धाम् । हृ॒द॒य्य॑या । आऽकू॑त्या । श्र॒द्धया॑ । वि॒न्द॒ते॒ । वसु॑ ॥ १०.१५१.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:151» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) मुमुक्षु विद्वान् (हृदय्यया-आकूत्या) हृदयस्थ अहंकृति-संकल्पवृत्ति से (श्रद्धाम्) सदिच्छा को पूरा करते हैं (यजमानाः) यजनशील (वायुगोपाः) प्राणायामों के द्वारा होम से सुगन्धित वायु जिनका रक्षक है, ऐसे लोग सदिच्छा को पूरा करते हैं (श्रद्धया वसु विन्दते) सदिच्छा से बसानेवाले धन को प्राप्त करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - मुमुक्षु जन हृदयस्थ संकल्पवृत्ति से अपनी सदिच्छा को पूरा कर सकते हैं, यज्ञ करनेवाले सुगन्धित वायु को लेते हुए स्वास्थ्यसम्बन्धी इच्छा को पूरा करते हैं और सदिच्छा से आवश्यक वसानेवाले धन को भी प्राप्त किया जा सकता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रद्धा से देवत्व व वसुओं की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (देवाः) = देववृत्ति के पुरुष (श्रद्धां उपासते) = श्रद्धा का उपासन करते हैं। वस्तुतः श्रद्धा के कारण ही वे देव बन पाते हैं। (यजमाना:) = यज्ञशील पुरुष श्रद्धा की उपासना करते हैं। श्रद्धा के कारण ही वस्तुतः वे यज्ञशील बनते हैं। (वायुगोपाः) = वायु का रक्षण करनेवाले, अर्थात् प्राणायाम के अभ्यासी प्राणसाधक योगी पुरुष भी श्रद्धा की उपासना करते हैं। यह योग तो दीर्घकाल तक निरन्तर आदर से सेवित होकर ही दृढ़ भूमि होता है। एक दिन में योग का फल नहीं दिखने लगता । श्रद्धावाला ही अनिर्विष्ण भाव से साधना में लगा रहता है। [२] (श्रद्धाम्) = श्रद्धा को (हृदय्यया आकूत्या) = हृदय के दृढ़ संकल्प से मनुष्य अपनाता है । ढिल-मिल पुरुष कभी श्रद्धावाला नहीं हो पाता । (श्रद्धया) = श्रद्धा से ही (वसु) = सब वसुओं को, धनों को (विन्दते) = पाता है। श्रद्धा ही सब वसुओं की जननी है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - श्रद्धा से ही हम देव यज्ञशील व योगाभ्यासी बन पाते हैं। श्रद्धा हमें सब वसुओं को प्राप्त कराती हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः-हृदय्यया-आकूत्या श्रद्धाम्) मुमुक्षवो विद्वांसो हृदयस्था-हङ्कृत्या श्रद्धां सदिच्छां सेवन्ते पूरयन्ति (यजमानाः-वायुगोपाः श्रद्धाम्-उपासते) यजनशीलाः प्राणायामैर्वायू रक्षको येषां ते तथाभूताः श्रद्धां सदिच्छां सेवन्ते ते (श्रद्धया वसु विन्दते) सदिच्छया वासकं धनं लभन्ते ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Divinities of nature and humanity, performers of yajna, all protected by the universal energy of Vayu in meditation, love and value Shraddha without compromise. Shraddha, unshakable faith, which is heartfelt and unquestionable in conviction, deserves and earns wealth, honour and excellence in life. This is possible only by Shraddha.