पदार्थान्वयभाषाः - [१] (नः अभि) = हमारी ओर (नि एतु) = निश्चय से प्राप्त हो। वह (दिवः धर्ता) = द्युलोक व सूर्य का धारण करनेवाला, (सविता) = सबका उत्पादक, (विश्ववार:) = सब से वरण के योग्य प्रभु हमें इस प्रकार प्राप्त हो, (इव) = जैसे कि (गावः) = गौवें (ग्रामम्) = ग्राम को प्राप्त होती हैं। हम कभी भी प्रभु की आँख से ओझल न हों। [२] हमें प्रभु इस प्रकार प्राप्त हों, (इव) = जैसे कि (यूयुधिः) = एक योद्धा (अश्वान्) = अश्वों को प्राप्त होता है। एक योद्धा से अधिष्ठित अश्व विजय को प्राप्त होता है, इसी प्रकार प्रभु से अधिष्ठित हम विजयी हों। [३] इस प्रकार हमें प्रभु प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (वाश्रा) = शब्द करती हुई (सुमनाः) = उत्तम मनवाली (दुहाना:) = दूध देनेवाली गौ (वत्सम्) = बछड़े को प्राप्त होती है। हमें प्रभु ज्ञानोपदेश दें, हम प्रभु के लिये वत्स तुल्य प्रिय हों। [४] इस प्रकार प्रभु हमें प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (पतिः जायाम्) = पति-पत्नी को प्राप्त होता है। पति पत्नी का रक्षण करता है, हम प्रभु से रक्षणीय हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वह विश्ववरणीय प्रभु हमें प्राप्त हों। उस प्रकार प्राप्त हों जैसे गौवें ग्राम को, योद्धा अश्वों को, रम्भाती हुई गौ बछड़े को तथा पति-पत्नी को प्राप्त होता है ।