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गाव॑ इव॒ ग्रामं॒ यूयु॑धिरि॒वाश्वा॑न्वा॒श्रेव॑ व॒त्सं सु॒मना॒ दुहा॑ना । पति॑रिव जा॒याम॒भि नो॒ न्ये॑तु ध॒र्ता दि॒वः स॑वि॒ता वि॒श्ववा॑रः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gāva iva grāmaṁ yūyudhir ivāśvān vāśreva vatsaṁ sumanā duhānā | patir iva jāyām abhi no ny etu dhartā divaḥ savitā viśvavāraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गावः॑ऽइव । ग्राम॑म् । यूयु॑धिःऽइव । अश्वा॑न् । वा॒श्राऽइ॑व । व॒त्सम् । सु॒ऽमनाः॑ । दुहा॑ना । पतिः॑ऽइव । जा॒याम् । अ॒भि । नः॒ । नि । ए॒तु॒ । ध॒र्ता । दि॒वः । स॒वि॒ता । वि॒श्वऽवा॑रः ॥ १०.१४९.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:149» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (गावः-इव) गौवें जैसे (ग्रामम्) बाहर चर करके ग्राम को प्राप्त होती हैं (यूयुधिः-अश्वान्) योद्धा जन जैसे घोड़ों को प्राप्त होता है (दुहाना सुमनाः) दुहने योग्य अच्छे मनवाली (वाश्रा-इव) कामना करती हुई गौ जैसे (वत्सम्) बछड़े को प्राप्त करती है (पतिः-इव) पति जैसे (जायाम्-अभि) पत्नी को प्राप्त होता है (विश्ववारः) विश्व को वरनेवाला (दिवः-धर्ता) मोक्ष को धारण करनेवाला (सविता) परमात्मा (नः-नि-एतु) हमें नितरां प्राप्त हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - बाहर से चरकर गौवें जैसे ग्राम को प्राप्त होती हैं, योद्धा घोड़ों को, दुहने योग्य अच्छे मनवाली गौ जैसे बछड़े को, पति पत्नी को प्राप्त होता है, ऐसे ही विश्व को वरनेवाला मोक्ष को धारण करनेवाला परमात्मा उपासकों को अवश्य प्राप्त होता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (नः अभि) = हमारी ओर (नि एतु) = निश्चय से प्राप्त हो। वह (दिवः धर्ता) = द्युलोक व सूर्य का धारण करनेवाला, (सविता) = सबका उत्पादक, (विश्ववार:) = सब से वरण के योग्य प्रभु हमें इस प्रकार प्राप्त हो, (इव) = जैसे कि (गावः) = गौवें (ग्रामम्) = ग्राम को प्राप्त होती हैं। हम कभी भी प्रभु की आँख से ओझल न हों। [२] हमें प्रभु इस प्रकार प्राप्त हों, (इव) = जैसे कि (यूयुधिः) = एक योद्धा (अश्वान्) = अश्वों को प्राप्त होता है। एक योद्धा से अधिष्ठित अश्व विजय को प्राप्त होता है, इसी प्रकार प्रभु से अधिष्ठित हम विजयी हों। [३] इस प्रकार हमें प्रभु प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (वाश्रा) = शब्द करती हुई (सुमनाः) = उत्तम मनवाली (दुहाना:) = दूध देनेवाली गौ (वत्सम्) = बछड़े को प्राप्त होती है। हमें प्रभु ज्ञानोपदेश दें, हम प्रभु के लिये वत्स तुल्य प्रिय हों। [४] इस प्रकार प्रभु हमें प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (पतिः जायाम्) = पति-पत्नी को प्राप्त होता है। पति पत्नी का रक्षण करता है, हम प्रभु से रक्षणीय हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वह विश्ववरणीय प्रभु हमें प्राप्त हों। उस प्रकार प्राप्त हों जैसे गौवें ग्राम को, योद्धा अश्वों को, रम्भाती हुई गौ बछड़े को तथा पति-पत्नी को प्राप्त होता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (गावः-इव ग्रामम्) यथा गावो बहिश्चरित्वा ग्राममभिगच्छन्ति (यूयुधिः-अश्वान्) योद्धाऽश्वानभिगच्छति “युध सम्प्रहारे” [दिवादि०] ततः-“आदृगमहनजनः किकिनौ लिट् च” [अष्टा० ३।२।१७१] “उत्सर्गश्छन्दसि’ इति वार्तिकेन किन् प्रत्ययः” (दुहाना सुमनाः-वाश्रा-इव वत्सम्) यथा दोग्ध्री दुह्यमाना शोभनमनस्का कामयमाना स्ववत्समागच्छति (पतिः-इव जायाम्-अभि) यथा पतिः स्वभार्यामभिगच्छति, तद्वत् (विश्ववारः-दिवः-धर्ता सविता नः-नि-एतु) विश्वं वृणुते यः स विश्ववारो दिवो मोक्षस्य धारयिता सविता परमात्माऽस्मान् नितरामभिगच्छतु ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Just as cows hasten to the village, the warrior takes to the horse, loving mother cow anxious at heart runs to the calf for milk, the husband goes to the wife for love, so may Savita, sustainer of the heavenly world, love of all humanity, come and bless us as his children.