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स॒वि॒ता य॒न्त्रैः पृ॑थि॒वीम॑रम्णादस्कम्भ॒ने स॑वि॒ता द्याम॑दृंहत् । अश्व॑मिवाधुक्ष॒द्धुनि॑म॒न्तरि॑क्षम॒तूर्ते॑ ब॒द्धं स॑वि॒ता स॑मु॒द्रम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

savitā yantraiḥ pṛthivīm aramṇād askambhane savitā dyām adṛṁhat | aśvam ivādhukṣad dhunim antarikṣam atūrte baddhaṁ savitā samudram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒वि॒ता । य॒न्त्रैः । पृ॒थि॒वीम् । अ॒र॒म्णा॒त् । अ॒स्क॒म्भ॒ने । स॒वि॒ता । द्याम् । अ॒दृं॒ह॒त् । अश्व॑म्ऽइव । अ॒धु॒क्ष॒त् । धुनि॑म् । अ॒न्तरि॑क्षम् । अ॒तूर्ते॑ । ब॒द्धम् । स॒वि॒ता । स॒मु॒द्रम् ॥ १०.१४९.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:149» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में सूर्य पृथिवी को परमात्मा सम्भालता है, मेघ को वर्षाता है, जीवन्मुक्तों को मोक्ष में भेजता है, परमात्मा से भिन्न उसका अनुगामी उस जैसा चेतन जीव भी कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (सविता) उत्पन्न करनेवाला परमात्मा या प्रेरित करनेवाला सूर्य (यन्त्रैः) नियन्त्रणसामर्थ्यों से (पृथिवीम्) पृथ्वी को (अस्कम्भने) निरालम्बन अन्तरिक्ष में (अरम्णात्) अवलम्बित करता है-सम्भालता है, जैसे गेंद को डोरियों से सम्भालता है (सविता) परमात्मा या सूर्य (द्याम्) द्युलोक को (अदृंहत्) दृढ़रूप में ऊपर तानता है (अतूर्ते-अन्तरिक्षम्) अच्छेद्य सूक्ष्म अचल अन्तरिक्ष में (बद्धम्) अवरुद्ध (समुद्रम्) सम्यक् भिगोनेवाले (धुनिम्) मेघ को (अश्वम्-इव) घोड़े को जैसे (अधुक्षत्) अश्वारोही-घुड़सवार जैसे उत्तेजित करता है-क्लेशित करता है या कम्पाता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा या सूर्य अपने नियन्त्रणसामर्थ्यों से निरालम्बन आकाश में पृथ्वी को रखता है या द्युलोक को तानता है, मेघ को आन्दोलित करता है बरसने के लिए ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

नियामक सविता

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सविता) = सबका उत्पादक प्रभु (यन्त्रैः) = अपने नियन्त्रण [ नियमन ] के साधनों से (पृथिवीम्) = इस पृथिवी को (अरम्णात्) = [अरमयत् सा० ] सुख से स्वस्थान में स्थापित करता है। वह (सविता) = उत्पादक प्रभु ही (अस्कम्भने) = स्वकाम आदि आधारों से रहित स्थल में (द्याम्) = इस द्युलोक को (अगृ॑हत्) = दृढ़ करता है अथवा (द्याम्) = सूर्य को दृढ़ करता है । [२] (अश्वं इव धुनिम्) = घोड़े की तरह कम्पायितव्य इस (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्ष से (अतूर्ते) = किसी से भी अहिंसित स्थान में (बद्धम्) = बन्धे हुए (समुद्रम्) = जल समुद्र को (अधुक्षत्) = दोहता है। घोड़ा जैसे अपने शरीर को कम्पित करता है, इसी प्रकार अन्तरिक्ष वायु आदि की गति से कम्पित-सा होता रहता है। इस अन्तरिक्ष में मेघ जल समुद्र के रूप में बन्धा हुआ है, इस स्थान पर यह जल समुद्र किसी से भी हिंसनीय नहीं । प्रभु इसका दोहन करते हैं, और इस भूलोक को उस जल समुद्र से सिक्त करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के नियमन साधनों से पृथिवी व द्युलोक अपने-अपने स्थान में थामे गये हैं । प्रभु ही अन्तरिक्ष को वायु आदि से कम्पित करते हैं और मेघरूप जल समुद्र का दोहन करते हैं ।
अन्य संदर्भ: सूचना - यहाँ मन्त्र के उत्तरार्ध में 'गपयो दोग्धि ' की तरह द्विकर्मकता है। प्रथम कर्म का अर्थ पञ्चमी का करना होता है। जैसे 'गो से दूध दोहता है'।
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते सूर्यं पृथिवीं परमात्मा धारयति मेघं च वर्षयति जीवन्मुक्तान् मोक्षं प्रेरयति, परमात्मनो भिन्नस्तदनुगामी तद्धर्मश्चेतनो जीवोऽस्तीत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (सविता) उत्पादयिता परमात्मा प्रेरयिता सूर्यो वा (यन्त्रैः पृथिवीम्-अस्कम्भने-अरम्णात्) नियन्त्रणसामर्थ्यैः पृथिवीं निरालम्बनेऽन्तरिक्षेऽरमयद्-अवलम्बयति सूत्रैः कन्दुकमिव (सविता द्याम्-अदृंहत) स एव परमात्मा सूर्यो वा द्युलोकं दृढमुदतानयदुत्तानयति-उपरि-तानयति (अतूर्ते-अन्तरिक्षम्) अच्छेद्ये सूक्ष्मेऽचलेऽन्तरिक्षे ‘सप्तम्यर्थे द्वितीया व्यत्ययेन’ (बद्धं समुद्रं धुनिम्) अवरुद्धं समुदितारं सम्यक् क्लेदयितारं मेघम् “धुनिं मेघम्” [निरु० १०।३२] (अश्वम्-इव-अधुक्षत्) अश्वमिव क्लेशयति कम्पयति भ्रमयति भ्रान्तं करोति वा यथाश्वारोही तद्वत् “धुक्ष धिक्ष सन्दीपनक्लेशनजीवनेषु” [भ्वादि०] यद्वा ‘धूञ्-कम्पने’ [स्वादि०] कुक् छान्दस आगमो धातोर्लुङि छान्दसः-क्सश्च ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Savita, lord creator, places the earth in orbit, and Savita places the region of light, in columnless space by the forces of cosmic gravitation. Savita moves the thundering cloud like a horse in skies and brings the showers, and Savita places the middle regions and the vast expanse of vapours and waters bound in boundless space.