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इ॒मा ब्रह्मे॑न्द्र॒ तुभ्यं॑ शंसि॒ दा नृभ्यो॑ नृ॒णां शू॑र॒ शव॑: । तेभि॑र्भव॒ सक्र॑तु॒र्येषु॑ चा॒कन्नु॒त त्रा॑यस्व गृण॒त उ॒त स्तीन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imā brahmendra tubhyaṁ śaṁsi dā nṛbhyo nṛṇāṁ śūra śavaḥ | tebhir bhava sakratur yeṣu cākann uta trāyasva gṛṇata uta stīn ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒मा । ब्रह्म॑ । इ॒न्द्र॒ । तुभ्य॑म् । शं॒सि॒ । दाः । नृऽभ्यः॑ । नृ॒णाम् । शू॒र॒ । शवः॑ । तेभिः॑ । भ॒व॒ । सऽक्र॑तुः । येषु॑ । चा॒कन् । उ॒त । त्रा॒य॒स्व॒ । गृ॒ण॒तः । उ॒त । स्तीन् ॥ १०.१४८.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:148» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शूर इन्द्र) हे पराक्रमी ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (तुभ्यम्) तेरे लिए (इमा ब्रह्म) ये वेद के स्तुतिवचन (शंसि) शंसित किये जाते हैं-गाये जाते हैं (नृणाम्) जनों के मध्य (नृभ्यः) स्तुति करनेवाले जनों के लिए (शवः) धन को (दाः) दे, प्रदान कर (तेभिः) उनके साथ (सक्रतुः) समान सङ्कल्पवाला अर्थात् जो मन से कामना करें कि यह मेरे लिए हो यह मेरे लिए हो, इस प्रकार संकल्पों को पूरा करनेवाला (भव) तू हो (येषु चाकन्) जिन स्तुति करनेवालों में तू कामना करता है (उत) और (गृणतः) स्तुति करते हुए (उत स्तीन्) और मिले हुए सम्बन्धियों की (त्रायस्व) तू रक्षा कर ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की वेदवचनों द्वारा स्तुति करना चाहिए, अन्यथा नहीं, जो परमात्मा की स्तुति करते हैं, उनके संकल्प के अनुसार परमात्मा उनकी कामना पूरी करता है तथा उनके सहयोगियों की परमात्मा रक्षा करता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु-स्तवन व बल प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (इमा ब्रह्म) = इन स्तोत्रों का (तुभ्यं शंसि) = आपके लिये शंसन किया जाता है। हम इन स्तोत्रों के द्वारा आपका स्तवन करते हैं । हे (शूर) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले प्रभो! आप (नृणां नृभ्यः) = उन्नतिपथ पर चलनेवालों में भी श्रेष्ठ मनुष्यों के लिये [नरों में नरों के लिये] (शवः) = बल को (दाः) = दीजिये । [२] हे प्रभो ! आप (येषु) = जिन स्तोताओं में (चाकन्) = इन बल आदि की स्थापना की कामना करते हैं, (तेभिः) = उन स्तोताओं के साथ (सक्रतुः) = समान कर्मा भव-होइये । वे स्तोता भी आपके समान कर्मोंवाले हों, अथवा उन स्तोताओं में स्थित हुए-हुए आप ही उन्हें शक्ति सम्पन्न बनाकर कार्य करानेवाले हो । (उत) = और (गृणतः) = इन स्तोताओं का (त्रायस्व) = आप रक्षण करिये, (उत) = और (स्तीन्) = मिलकर [संघीभूय सा० ] यज्ञादि कार्यों को करनेवाले इन यज्ञशील पुरुषों को आप रक्षित करिये । स्तोता व यजमान आपके रक्षणीय हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमें बल देते हैं । स्तोताओं व यजमानों का प्रभु ही रक्षण करते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शूर इन्द्र) हे पराक्रमिन् ! ऐश्वर्यवन् ! परमेश्वर ! (तुभ्यम्-इमा ब्रह्म शंसि) त्वदर्थमिमानि ब्रह्माणि वेदस्य स्तुतिवचनानि, “ब्रह्माणि वेदस्य स्तोत्राणि” [ऋ० १।३।६ दयानन्दः] शस्यन्ते गीयन्ते “शंसु स्तुतौ” [भ्वादि०] ततः कर्मणि लुङि व्यत्ययेनैकवचनं (नृणां नृभ्यः शवः दाः) जनानां मध्ये स्तोतृजनेभ्यः धनं देहि “शवः-धननाम” [निघ० २।१०] (तेभिः सक्रतुः-भव) तै सह समानसङ्कल्पः “स यदेव मनसा कामयते-इदं मे स्यादिदं कुर्यामिति स एव क्रतुः” [श० ४।१।४।१] ससङ्कल्पो भवेत्यर्थः (येषु चाकन्) येषु स्तोतृषु त्वं कामयसे (उत) अपि तु (गृणतः-उत स्तीन् त्रायस्व) स्तुवतः स्तुतिं कुर्वतः-मिलितान् च “स्तीन् मिलितान्” [ऋ० ७।१९।११ दयानन्दः] रक्ष ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord omnipotent, brave leader, these songs of adoration are offered in homage to your honour. Be pleased to accept these. Pray bless us with strength and power worthy of the brave. Bless these leading lights with love and sure fulfilment in their holy acts of yajna. Save the celebrants and upraise the fallen who depend on you and look up for help.