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गाम॒ङ्गैष आ ह्व॑यति॒ दार्व॒ङ्गैषो अपा॑वधीत् । वस॑न्नरण्या॒न्यां सा॒यमक्रु॑क्ष॒दिति॑ मन्यते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

gām aṅgaiṣa ā hvayati dārv aṅgaiṣo apāvadhīt | vasann araṇyānyāṁ sāyam akrukṣad iti manyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गाम् । अ॒ङ्ग । ए॒षः । आ । ह्व॒य॒ति॒ । दारु॑ । अ॒ङ्ग । ए॒षः । अप॑ । अ॒व॒धी॒त् । वस॑न् । अ॒र॒ण्या॒न्याम् । सा॒यम् । अक्रु॑क्षत् । इति॑ । म॒न्य॒ते॒ ॥ १०.१४६.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:146» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग) पुनः-फिर (एषः-गाम्-आह्वयति) दिन में यह गोपाल-गौ चरानेवाला अपनी गौओं को चराकर ले जाने को पुकारता है (अङ्ग) और फिर (एषः) यह (दारु-अप अवधीत्) लकड़हारा लकड़ियों को काटता है (सायम्) रात्रि के समय (अरण्यान्यां वसन्) अरण्यानी में वसता हुआ-सोता हुआ मनुष्यगण (क्रुक्षत्-इति मन्यते) परमात्मा की स्तुति करता है, गाना गाता है और अपने को धन्य मानता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - अरण्यानी में यह भी दृश्य देखा जाता है कि गौवाला गौओं को चराकर सायंकाल हाँकने के लिए गौओं को पुकारता है और लकड़ी काटनेवाला लकड़ी काटता है, रात्रि में कोई मनुष्य या मनुष्यगण गाता बजाता है और परमात्मा की स्तुति करता हुआ अपने को धन्य मानता है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गौ का आह्वान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एषः) = यह वनस्थ पुरुष अंग शीघ्र ही ['अंग' क्षिप्रे च ] (गाम्) = इस ज्ञान की वाणीरूप गौ का (आह्वयति) = आह्वान करता है । यह सदा वेदवाणी का अध्ययन करता है और (एवः) = यह अंग- शीघ्र ही (दारु) = शक्तियों को विदीर्ण करनेवाली वासनाओं को अपावधीत् सुदूर विनष्ट करता है । वानप्रस्थ का मूल कर्त्तव्य यही है कि ज्ञान की वाणियों का अध्ययन करे, वासनाओं को विनष्ट करे। [२] (अरण्यान्यां वसन्) = वन में निवास करता हुआ अथवा उत्तम गति व ज्ञान की स्थिति में निवास करता हुआ यह (इति मन्यते) = यह मानता है कि पुरुष साधना के लिये (सायम्) = सायंकाल (अक्रुक्षत्) = अवश्य प्रभु का आह्वान करे। सायंकाल अन्धकार का प्रारम्भ होता है, उस समय आसुरभाव प्रबल होने लगते हैं। उनके विनाश के लिये सन्नद्ध होकर प्रभु का उपासन करने लगना यह आवश्यक है। इस प्रभु ध्यान में ही शून्यावस्था को लाने का प्रतिदिन अभ्यास निहित है। इसी स्थिति में निहित हो जाने से अशुभ स्वप्न न होकर स्वप्नावस्था में प्रभु - दर्शन का सम्भव होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वानप्रस्थ के तीन कर्त्तव्य हैं- [क] स्वाध्याय, [ख] वासना परिहार, [ग] प्रभु का आराधन ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अङ्ग) पुनः (एषः-गाम्-आह्वयति) दिनेऽयं गोश्चारको गोपालो वा गां गाः-स्वकीया गाः-आह्वयति (अङ्ग) पुनश्च (एषः) अयं (दारु-अप अवधीत्) काष्ठाहारो दारु-काष्ठं छिनत्ति (सायम्) रात्रौ (अरण्यान्यां वसन्) अरण्यान्यां शयानः (कुक्षत्-इति मन्यते) क्रोशति-आह्वयति-परमात्मानं स्तौति गायति चेत्थमात्मानं धन्यं मन्यते ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Dear spirit and forest presence, someone calls upon his cow to come home, this one cuts the tree, and in the evening someone staying in the forest shrieks, someone howls, someone bursts in song also.