उत्ता॑नपर्णे॒ सुभ॑गे॒ देव॑जूते॒ सह॑स्वति । स॒पत्नीं॑ मे॒ परा॑ धम॒ पतिं॑ मे॒ केव॑लं कुरु ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
uttānaparṇe subhage devajūte sahasvati | sapatnīm me parā dhama patim me kevalaṁ kuru ||
पद पाठ
उत्ता॑नऽपर्णे । सुऽभ॑गे । देव॑ऽजूते । सह॑स्वति । स॒ऽपत्नी॑म् । मे॒ । परा॑ । ध॒म॒ । पति॑म् । मे॒ । केव॑लम् । कु॒रु॒ ॥ १०.१४५.२
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:145» मन्त्र:2
| अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:2
| मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:2
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (देवजूते) हे जीवन्मुक्तों के द्वारा प्रीति-चाही हुई (सहस्वति) बलवाली (सुभगे) सुभाग की निमित्तभूत (उत्तानपर्णे) उत्कृष्ट पालन जिसका है, ऐसी अध्यात्मविद्या या उसके निमित्त सोम ओषधि ! (मे) मेरी (सपत्नीं पराधम) विरोधी कामवासना को परे कर (मे पतिं केवलं कुरु) मेरे विश्वपति परमात्मा को नितान्त बना ॥२॥
भावार्थभाषाः - जीवन्मुक्तों के द्वारा अध्यात्मविद्या या उसकी निमित्तभूत सोम ओषधि सेवन की जाती है, जो कामवासना को मिटाती है, परमात्मा का सङ्ग कराती है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
आत्मविद्या
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे आत्मविद्ये! जो तू (उत्तानपर्णे) = ऊर्ध्वमुखपर्णोवाली हैं, अर्थात् हमें सदा उन्नति की ओर ले चलनेवाली व हमारा पालन व पूरण करनेवाली है । (सुभगे) = उत्तम ज्ञान व अनासक्ति की भावना को उत्पन्न करनेवाली है [भगः ज्ञान, वैराग्य] । (देवजूते) = देवों - विद्वानों के द्वारा हमारे में प्रेरित होती है, अर्थात् विद्वानों से ही जिसका ज्ञान दिया जाता है। (सहस्वति) = शत्रुमर्षक बलवाली, जो हमारे काम-क्रोध आदि शत्रुओं को कुचल देती है। ऐसी आत्मविद्ये! तू (मे) = मेरी (सपत्नीम्) = सपत्नीभूत भोगवृत्ति को (पराधम) = सन्तप्त करके दूर कर दे। [२] आत्मविद्या से भोगवृत्ति क्षीण होती है, मनुष्य प्रभु-प्रवण बनता है। वह यही प्रार्थना करता है कि (केवलम्) = उस आनन्द में विचरनेवाले (पतिम्) = सर्वरक्षक प्रभु को (मे कृधि) = मेरा कर । मैं प्रभु प्राप्ति की ही कामनावाला बनूँ । सांसारिक कामनाओं से ऊपर उहूँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - आत्मविद्या हमें ऊपर ही ऊपर ले चलती है। यह हमारे में शत्रुओं के मर्षण करनेवाले बल को पैदा करती है।
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (देवजूते) हे देवैर्जीवन्मुक्तैः प्रीते “देवजूतं देवप्रीतम्” [निरु० १०।२८] (सहस्वति) बलवति (सुभगे) सुभागनिमित्ते (उत्तानपर्णे) ऊर्ध्वं पर्णं पालनं यस्यास्तथाभूतेऽध्यात्मविद्ये तन्निमित्ते सोमौषधे ! वा (मे सपत्नीं पराधम) मम विरोधिनीं कामवासनां परागमय (मे पतिं केवलं कुरु) मदर्थं परमात्मानं पतिं नितान्तं कुरु ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - O soma plant growing up with luxuriant leaves and branches, nobly effective, divinely energised, giver of peace, patience and courageous vitality, transform me to concentrate on my one and only love. Throw off my evil fascination. Let me be with my master spirit of life.
