वांछित मन्त्र चुनें

चि॒ते तद्वां॑ सुराधसा रा॒तिः सु॑म॒तिर॑श्विना । आ यन्न॒: सद॑ने पृ॒थौ सम॑ने॒ पर्ष॑थो नरा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

cite tad vāṁ surādhasā rātiḥ sumatir aśvinā | ā yan naḥ sadane pṛthau samane parṣatho narā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चि॒ते । तत् । वा॒म् । सु॒ऽरा॒ध॒सा॒ । रा॒तिः । सु॒ऽम॒तिः । अ॒श्वि॒ना॒ । आ । यत् । नः॒ । सद॑ने । पृ॒थौ । सम॑ने । पर्ष॑थः । न॒रा॒ ॥ १०.१४३.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:143» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:4


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुराधसा-अश्विना) हे उत्तम ज्ञान धनवाले अध्यापक उपदेशक ! (वाम्) तुम दोनों के शिक्षित (चिते) चेतनावाले जीवात्मा मनुष्य के लिए (रातिः सुमतिः) ज्ञान देना और कल्याणमति प्रदान करना चलता रहे (नः पृथौ-सदने समने) हमारे विस्तृत ज्ञानसदन अन्तःकरण को (नरा पर्षथः) तुम नेताओं ! उसे पूर्ण करो भरो ॥४॥
भावार्थभाषाः - ज्ञानधन देनेवाले अध्यापक और उपदेशकों का मनुष्य के लिए ज्ञान देना सुमति प्रदान करना चालू रहना चाहिए, उससे ज्ञानसदन अन्तःकरण को भरना चाहिये ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

आ-पूरण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! सुराधसा आप उत्तम सिद्धि के प्राप्त करानेवाले हो । इस जीवनयज्ञ की सफलता आप पर ही निर्भर करती है । (वाम्) = आपकी (तद्) = वह (राति:) = देन व (सुमति:) = उत्तम बुद्धि (चिते) = उत्कृष्ट ज्ञान के लिये होती है। प्राणायाम के द्वारा सब अशुद्धियों का क्षय होकर ज्ञान की दीप्ति होती है । [२] हे (नरा) = हमें जीवनपथ में आगे ले चलनेवाले प्राणापानो ! (यत्) = जो आप (न:) = हमें (सं अने) = उत्तम प्राणशक्तिवाले, (पृथौ) = शक्तियों के विस्तारवाले (सदने) = इस शरीर गृह में (आपर्षथः) = सब दृष्टिकोणों से [ आपूरयथः सा० ] पूरण करते हो । शरीर में शक्ति- मन में निर्मलता व बुद्धि में तीव्रता का आप संचार करते हो ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणसाधना से सुमति प्राप्त होती है और शरीर में सब दृष्टिकोणों से पूरण होता है ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुराधसा-अश्विना) सुधनवन्तौ-अध्यात्माध्यापकोपदेशकौ ! (वाम्) युवयोः (चिते) चेतयतीति चित् तस्मै जीवात्मने (रातिः सुमतिः) ज्ञानदानं तथा कल्याणी मतिः सम्मतिर्भवतु (नः पृथौ सदने समने) अस्माकं विस्तृतं ज्ञानसदनमन्तःकरणम्, द्वितीयायां सप्तमी व्यत्ययेन (नरा पर्षथः) हे नेतारौ-अध्यात्माध्यापकोपदेशकौ पूरयथः ॥४॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, harbingers of wealth, competence and success, that wealth of noble thoughts and intelligence, that generous gift of yours, is for the enlightenment of humanity which, O leading lights, you bring in showers in this vast world of life, in this hall of yajna, in this struggle of our life for happiness and freedom.