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उत्ते॒ शुष्मा॑ जिहता॒मुत्ते॑ अ॒र्चिरुत्ते॑ अग्ने शशमा॒नस्य॒ वाजा॑: । उच्छ्व॑ञ्चस्व॒ नि न॑म॒ वर्ध॑मान॒ आ त्वा॒द्य विश्वे॒ वस॑वः सदन्तु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ut te śuṣmā jihatām ut te arcir ut te agne śaśamānasya vājāḥ | uc chvañcasva ni nama vardhamāna ā tvādya viśve vasavaḥ sadantu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत् । ते॒ । शुष्माः॑ । जि॒ह॒ता॒म् । उत् । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । श॒श॒मा॒नस्य॑ । वाजाः॑ । उत् । श्व॒ञ्च॒स्व॒ । नि । न॑मः । वर्ध॑मानः । आ । त्वा॒ । अ॒द्य । विश्वे॑ । वस॑वः । स॒द॒न्तु॒ ॥ १०.१४२.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:142» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:30» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (शशमानस्य तव) प्रशंसमान-स्तुति में लाए जाते हुए तेरे (शुष्माः) स्तुति करनेवाले में पाप अज्ञान से शोषक गुण (उत्-जिहताम्) उद्भूत हों, उसे (ते) तेरा (अर्चिः) ज्ञानप्रकाश उद्भूत हो उठे (वाजाः) अमृतभोग उद्भूत हो-उठे (वर्धमानः)  स्तुतिकर्ता के अन्दर साक्षात् होता हुआ (उत् श्वञ्चस्व) उसे उन्नत कर (नि नम) सद्गुणों को परिणत करे (अद्य) इस समय (त्वा) तुझे (विश्वे वसवः) सब वासशील स्तुति करनेवाले जन (आ सदन्तु) भलीभाँति प्राप्त हों ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा स्तुति में लाया जाता है, तो स्तुति करनेवाले के अन्दर पाप अज्ञान के शोषण करनेवाले बलगुण उद्भूत होते हैं उठते हैं, उसका प्रकाश भी उदय होता है, अमृत अन्नभोग प्राप्त होते हैं, परमात्मा स्वयं साक्षात् होता है, उसे उत्पन्न करता है, स्तुति करनेवालों को अपना आश्रय देता है ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उत्त्थान का स्वरूप

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में उत्थान का उल्लेख था । उसी उत्थान को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि (ते शुष्मा:) = तेरे शत्रु- शोषक बल (उत् जिहताम्) = उद्गत हों । तू काम, क्रोध व लोभ को परास्त कर सके। (ते अर्चिः उत्) = तेरी ज्ञान ज्वाला उद्गत हो, अर्थात् तेरा ज्ञान निरन्तर बढ़ता चले। हे अग्ने प्रगतिशील जीव ! शशमानस्य स्फूर्ति से कार्यों को करनेवाले [शश प्लुतगतौ] अथवा स्तुति करनेवाले [शंसमानस्य नि०] (ते) = तेरे (वाजाः) = बल (उत्) = उत्कृष्ट हों । इस प्रकार शरीरस्थ वाज [बल] तुझे नीरोग बनाएँ । ज्ञान तेरे मस्तिष्क को उज्ज्वल करे और मानस बल 'काम-क्रोध-लोभ' पर विजय को पानेवाला हो । 'शुष्म, अर्चि व वाज' को प्राप्त करके तू (उत् श्वञ्चस्व) = ऊर्ध्व गतिवाला हो, उन्नतिपथ पर आरूढ़ होनेवाला हो । परन्तु (वर्धमानः) = सब दृष्टिकोणों से बढ़ता हुआ तू (नि नम) = नम्र बन । जितना जितना उन्नत, उतना उतना नम्र । नम्रता ही उन्नति का निशान है। इस प्रकार उन्नत हुए-हुए (त्वा) = तुझे (विश्वे वसवः) = सब वसु (आसदन्तु) = प्राप्त हों । निवास को उत्तम बनानेवाले तत्त्व ही 'वसु' हैं। ये सब वसु तेरे में स्थित हों। इन वसुओं को प्राप्त करके तेरा जीवन सुन्दरतम बन जाये ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हमें शत्रु-शोषक शक्ति [शुष्म], ज्ञानदीप्ति [अर्चि] तथा बल [वाज] प्राप्त हो । उन्नत होकर हम नम्र बने रहें । सब वसुओं को प्राप्त करके सुन्दर जीवनवाले हों।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (शशमानस्य तव) शंसमानस्य प्रशंसमानस्य स्तूयमानस्य “शशमानः शंसमानः” [निरु० ६।८] तव (शुष्माः-उत्-जिहताम्) स्तोतरि पापाज्ञानशोषका गुणा उद्गच्छन्तु (ते) तव (अर्चिः) ज्ञानप्रकाश उद्गच्छतु (वाजाः) अमृतान्नभोगाः उद्गच्छन्तु “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै० २।१९३] (वर्धमानः) स्तोतरि साक्षाद्भवन् (उत् श्वञ्चस्व) तमुन्नय “श्वच गतौ” [भ्वादि०] ‘अन्तर्गतो णिजर्थः’ (नि नम) निनामय सद्गुणेषु परिणय (अद्य) अस्मिन् काले (त्वा) त्वां (विश्वे वसवः) सर्वे वासशीलाः स्तोतारः (आ सदन्तु) आसीदन्तु ‘सद्धातोः’ सीदादेशाभावश्छान्दसः ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of light, illuminative and enlightening power, may your bright flames rise higher, may the radiations of your light and grandeur and your victories over want and darkness rise high and elevate the body, mind and soul of the celebrant. Yourself rising and expanding, raise the high higher, condescend, save and raise the low, and may all the soothing, sheltering powers and personalities of the world sit by you on the vedi and rehabilitate the uprooted here today and now.