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प्रत्य॑स्य॒ श्रेण॑यो ददृश्र॒ एकं॑ नि॒यानं॑ ब॒हवो॒ रथा॑सः । बा॒हू यद॑ग्ने अनु॒मर्मृ॑जानो॒ न्य॑ङ्ङुत्ता॒नाम॒न्वेषि॒ भूमि॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

praty asya śreṇayo dadṛśra ekaṁ niyānam bahavo rathāsaḥ | bāhū yad agne anumarmṛjāno nyaṅṅ uttānām anveṣi bhūmim ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रति॑ । अ॒स्य॒ । श्रेण॑यः । द॒दृ॒श्रे॒ । एक॑म् । नि॒ऽयान॑म् । ब॒हवः॑ । रथा॑सः । बा॒हू इति॑ । यत् । अ॒ग्ने॒ । अ॒नु॒ऽमर्मृ॑जानः । न्य॑ङ् । उ॒त्ता॒नाम् । अ॒नु॒ऽएषि॑ । भूमि॑म् ॥ १०.१४२.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:142» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:30» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशक परमात्मन् ! (अस्य) इस तेरे उपासकजन (श्रेणयः) तेरे अनुग्रह से तेरे-आश्रय लेनेवाले (प्रति ददृशे) दिखाई देते हैं, जैसे (एकं नियानम्) एक नियम से चलनेवाले, “एञ्जिन” के पीछे चलनेवाले (बहवः-रथासः) बहुत रथ-डिब्बे गाड़ी होते हैं (बाहू-अनु मर्मृजानः) उसके भुजाओं को एकड़ अनुकुल गति करता हुआ (न्यङ्) नीची भूमि से (उत्तानां भूमिम्-अन्वेषि) ऊँची भूमि को प्राप्त कराता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के उपासक आत्माएँ उसके आश्रय में वर्तमान होते हैं, वह उन्हें अच्छी यात्रा कराता है, उनके भुजाओं को एकड़ मानो ले जाता है, नीचे भूमि से ऊँची भूमि पर पहुँचता है, वह दयालु उपास्य है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

नीचे से ऊपर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र के अनुसार वासनाओं को काटकर हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! (यद्) = जब (बाहू) = [बाह्य प्रयत्ने] इहलोक व परलोक सम्बन्धी प्रयत्नों को (अनुमर्मृजान:) = क्रमशः शुद्ध करता हुआ (न्यड्) = नीचे से (उत्तानाम्) = उत्कृष्ट (भूमिम्) = भूमि को (अन्वेषि) = तू प्राप्त होता है । जितना-जितना प्रयत्नों का शोधन, उतना उतना उत्तम भूमि का आक्रमण [ उतना उतना उत्त्थान] । [२] उस समय इस व्यक्ति के (बहवः रथासः) = ये स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर रूप रथ (एकं नियानम्) = उस अद्भुत [ cowpen] बाड़े में, प्रभु में स्थित होते हैं और (अस्य) = इसकी (श्रेणयः) = भूतपञ्चक, प्राणपञ्चक, कर्मेन्द्रियपञ्चक, ज्ञानेन्द्रियपञ्चक व अन्तःकरणपञ्चक [हृदय, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार] आदि श्रेणियाँ (प्रति ददृशे) = एक-एक करके देखी जाती हैं। ये प्रत्येक श्रेणि का ध्यान करता हुआ उन्हें मलिन व क्षीण शक्ति नहीं होने देता।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - अपने कर्मों या शोधन करते हुए हम ऊपर और ऊपर उठें। हम अपने रथों का बाड़ा प्रभु को ही बनायें, अर्थात् इन शरीरों को प्रभु में स्थापित करने का प्रयत्न करें । अन्तःकरण आदि एक-एक अंग का ध्यान करें। उन्हें मलिन न होने दें।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे ज्ञानप्रकाशक परमात्मन् ! (अस्य) तव खलूपासकाः (श्रेणयः प्रति ददृश्रे) तवानुग्रहात् खलु बहवो आश्रयिणः “श्रेणिः श्रयतेः” [निरु० ४।१३] दृश्यन्ते (एकं नियानं बहवः-रथासः) एकं निश्चितं यानमनु बहवो रथा गच्छन्ति (बाहू-अनुमर्मृजानः) तस्य बाहू भुजावनु प्रापयन्-अनुगृह्णन् “मार्ष्टि गतिकर्मा०” [निघ० २।१४] (न्यङ्) नीचस्थानात् “सुपां सुलुक्०” [अष्टा० ७।१।३९] ‘इति पञ्चम्या लुक्’ (उत्तानां भूमिम्-अन्वेषि) उत्कृष्टां भूमिमनुगमयसि नयसि ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The flames of Agni in rising sequence are seen like a row of chariots following one leader as engine when, Agni, you raise your arms waxing and shining and cover hills and valleys on the land.