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अग्ने॒ अच्छा॑ वदे॒ह न॑: प्र॒त्यङ्न॑: सु॒मना॑ भव । प्र नो॑ यच्छ विशस्पते धन॒दा अ॑सि न॒स्त्वम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne acchā vadeha naḥ pratyaṅ naḥ sumanā bhava | pra no yaccha viśas pate dhanadā asi nas tvam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑ । अच्छ॑ । व॒द॒ । इ॒ह । नः॒ । प्र॒त्यङ् । नः॒ । सु॒ऽमनाः॑ । भ॒व॒ । प्र । नः॒ । य॒च्छ॒ । वि॒शः॒ । प॒ते॒ । ध॒न॒ऽदाः । अ॒सि॒ । नः॒ । त्वम् ॥ १०.१४१.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:141» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में प्रजाजन सभाध्यक्ष, सेनाध्यक्ष व वैश्य को आमन्त्रित करें, परस्पर विचारें कि न्यायाधीश न्याय दे, धनाधिकारी धन दे, विद्वान् ज्ञान दे इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने-इह) हे अग्रणेता परमात्मन् ! तू इस जगत् में (नः) हमें लक्ष्य कर (अच्छ वद) अच्छे मन्त्रप्रवचन कर (सुमनाः) शोभन मनवाला-शोभन मन सम्पादक होता हुआ तू (नः प्रत्यङ् भव) हमें साक्षात् हो-हमारे में साक्षात् हो (विशः-पते) हे प्राणिमात्रप्रजा के पालक ! (नः प्र यच्छ) हमारे लिए जीवनार्थ साधन प्रदान कर (त्वं नः-धनदाः-असि) तू हमारा धनदाता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा से अच्छे ज्ञान का उपदेश प्रेरित करने और उसके साक्षात् करने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, वह अच्छे मन का बनानेवाला और जीवनार्थ साधनों का देनेवाला तथा धनदाता है ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'उत्तम मन' व 'धन'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अग्ने) = अग्रेणी प्रभो ! (नः) = अच्छा हमारे प्रति (इह) = इस हृदयदेश में (वद) = धर्म का, हमारे कर्त्तव्यों का हमें उपदेश दीजिये । प्रभु शुद्ध हृदय में स्थित हुए हुए सुन्दर प्रेरणा प्राप्त कराते रहते हैं। हमें भी वह प्रेरणा सदा प्राप्त हो । (नः) = हमारे लिये (प्रत्यङ्) = अन्दर प्राप्त होनेवाले आप (सुमना भव) = उत्तम मनवाले होइये । अर्थात् आप हमें उत्तम मन प्राप्त कराइये। [२] हे (विशस्पते) = प्रजाओं के रक्षक प्रभो ! (नः) = हमारे लिए (प्रयच्छ) = आवश्यक धनों को दीजिये। हे प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (नः) = हमारे लिये (धनदाः असि) = धनों के देनेवाले हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु हमें उत्तम मन प्राप्त करायें तथा आवश्यक धनों को प्राप्त करायें ।
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ब्रह्ममुनि

अत्र सूक्ते प्रजाजनाः सभासेनाध्यक्षौ वैश्यं चामन्त्र्य परस्परं राष्ट्ररक्षणस्योपायान् चिन्त्येरन् न्यायाधीशो न्यायं प्रयच्छेद्धनाध्यक्षो धनं दद्यात्, विद्वान् विद्यां चेत्यादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने-इह नः-अच्छ वद) हे अग्रणेतः परमात्मन् ! त्वमस्मिन्-जगति खल्वस्मान्-अभिलक्ष्य वद-प्रवद-मन्त्रं प्रवद (सुमनाः-नः-प्रत्यङ् भव) शोभनमनस्कः-शोभनमनः सम्पादकः सन्-अस्मान् साक्षाद्भव (विशः-पते) हे प्राणिमात्रप्रजायाः पालक ! (नः प्र यच्छ) अस्मभ्यं जीवनार्थसाधनं प्रदेहि (त्वं नः-धनदा असि) त्वमस्माकं धनदाताऽसि ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Agni, lord of light, knowledge and speech, speak to us here of the knowledge of science and divinity, be good and gracious to us here and now, direct. O Vishpati, protector and promoter of the people, you are the giver of life’s wealth, knowledge and enlightenment, pray give us the wealth, knowledge and enlightenment about life and the art of living.