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अयु॑द्धसेनो वि॒भ्वा॑ विभिन्द॒ता दाश॑द्वृत्र॒हा तुज्या॑नि तेजते । इन्द्र॑स्य॒ वज्रा॑दबिभेदभि॒श्नथ॒: प्राक्रा॑मच्छु॒न्ध्यूरज॑हादु॒षा अन॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayuddhaseno vibhvā vibhindatā dāśad vṛtrahā tujyāni tejate | indrasya vajrād abibhed abhiśnathaḥ prākrāmac chundhyūr ajahād uṣā anaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अयु॑द्धऽसेनः । वि॒ऽभ्वा॑ । वि॒ऽभि॒न्द॒ता । दाश॑त् । वृ॒त्र॒ऽहा । तुज्या॑नि । ते॒ज॒ते॒ । इन्द्र॑स्य । वज्रा॑त् । अ॒बि॒भे॒त् । अ॒भि॒ऽश्नथः॑ । प्र । अ॒क्रा॒म॒त् । शु॒न्ध्यूः । अज॑हात् । उ॒षाः । अनः॑ ॥ १०.१३८.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:138» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अयुद्धसेनः) युद्ध न किया जा सके जिसके साथ, ऐसी सेनावाला (विभ्वा) सर्वशक्तियों से व्याप्त पूर्ण (विभिन्दता) अपने बलों से शत्रुबलों का विदारण करनेवाला (वृत्रहा) शत्रुनाशक (तुज्यानि-तेजते) हिंसक शस्त्रों को तीक्ष्ण करता है (दाशत्) अपनी प्रजाओं को अभय देता है (इन्द्रस्य-अभिश्नथः-वज्रात्) राजा के हिंसक वज्र से (अबिभेत्) शत्रु भय को प्राप्त होता है (शुन्ध्यूः) संग्रामभूमि का शोधन करनेवाला राजा (प्र अक्रामत्) आगे बढ़े (उषाः) विजय की कामना करती हुई सेना (अनः) रथ को-रथस्थ सैनिकगण को (अजहात्) संग्रामभूमि में युद्ध के लिये छोड़ दे ॥५॥
भावार्थभाषाः - राजा की सेना सबल, स्वयं शक्तियों से पूर्ण तीक्ष्ण शस्त्रों को चलानेवाला हो, उसके शस्त्रप्रहार से शत्रु भय करे, संग्राम में शत्रुओं का सफाया करनेवाली सेना भी संग्राम में डट जानेवाली होनी चाहिए ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शुन्ध्यु व उषा बनना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अयुद्धसेनः) = जिसकी सेना युद्ध नहीं करती, अर्थात् जो स्वयं अकेला ही शत्रुओं पर आक्रमण करता है वह इन्द्र अपने (विश्वा) = व्यापक (विभिन्दता) = शत्रुओं का विदारण करनेवाले बल से (वृत्रहा) = वृत्र का विनाश करनेवाला होता हुआ (दाशत्) = हमें उन्नति के लिये सब आवश्यक साधनों को प्राप्त कराता है। यह इन्द्र (तुज्यानि) = हिंसित करने योग्य शत्रुओं को (तेजते) = हिंसित करता है । [२] वस्तुतः (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (अभिश्नथः) = चारों ओर वासनाओं को हिंसित करनेवाले (वज्रात्) = क्रियाशीलतारूप वज्र से (अबिभेत्) = सब शत्रु भयभीत होते हैं । इस प्रकार क्रियाशीलतारूप वज्र से वासनाओं का संहार करके (शुन्ध्युः) = जीवन को शुद्ध बनानेवाला वह व्यक्ति यह (प्राक्रामत्) = प्रकृष्ट गतिवाला होता है, उन्नति के मार्ग पर आगे और आगे बढ़ता है। यह (उषाः) = [उष दाहे] दोषों का दहन करनेवाला बनकर (अन:) = [birth] जन्म को (अजहात्) = छोड़ता है, अर्थात् यह जन्म-मरण-चक्र से ऊपर उठ जाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-वासनाओं का संहार करके हम शुद्ध जीवनवाले बनकर आगे बढ़ें। दोषों का दहन करके जन्म-मरण-चक्र से ऊपर उठें।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अयुद्धसेनः) न युद्धं कृतं कर्तुं शक्यं केनचित् तया सेनया सह तथाभूतेऽयोधव्यसेनावान् (विभ्वा) सर्वशक्तिभिर्व्याप्तः पूर्णः (विभिन्दता) स्वबलेन शत्रुबलानां विदारयिता (वृत्रहा) शत्रुनाशकः (तुज्यानि तेजते) हिंसकानि शस्त्राणि तीक्ष्णीकरोति यः सः (दाशत्) स्वप्रजाभ्योऽभयं ददाति (इन्द्रस्य-अभिश्नथः-वज्रात्-अबिभेत्) राज्ञो हिंसकात् “श्नथति वधकर्मा” [निघ० २।१९] वज्रात् खलु शत्रुर्भयं प्राप्नोति (शुन्ध्युः) सङ्ग्रामभूमिः शोधयिता राजा (प्र अक्रामत्) प्रागच्छेदग्रे (उषाः) विजयं कामयमाना सेना (अनः-अजहात्) स्वकीयं रथं रथस्थं सैनिकगणं तत्र सङ्ग्रामभूमौ युद्धाय त्यजेत् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, heroic commander of irresistible force, omnipresent and boundless, destroyer of evil and darkness by his inviolable potential, is generous, reduces the hurtful and promotes the progressive. The evil and wicked fear the shattering thunderbolt of Indra who is ever moving forward, illuminating and purifying, and every day the morning moves his chariot for a new dawn of light and progress for humanity.