पदार्थान्वयभाषाः - [१] शरीर में (इमौ) = ये (द्वौ वातौ) = दो वायुवें, प्राण और अपान (वातः) = चलती हैं, गति करती हैं। एक बाहर से अन्दर की ओर (आसिन्धोः) = हृदय सिन्धु तक, फेफड़ों तक जाती है। प्राणायाम में इसके द्वारा हम फेफड़ों को खूब भरने का प्रयत्न करते हैं । और दूसरी अन्दर से बाहर फेंकने जानेवाली आ परावतः खूब दूर देश तक जाती है। जितनी दूर से दूर तक यह फेंकी जा सके, उतना ही अच्छा है । [२] इनमें बाहर से अन्दर आनेवाली (अन्यः) = एक वायु (ते) = तेरे लिए (दक्षम्) = शक्ति व बल को (आवातु) = सब प्रकार से प्राप्त कराये। वायुमण्डल की अम्लजन अन्दर आती है और स्वास्थ्य व बल को देनेवाली बनती है । (अन्यः) = दूसरी अन्दर से बाहिर फेंके जानेवाली, (यद्) = जो भी (रपः) = शरीर में दोष हो उसे (परावातु) = दूर कर दे। अन्दर से बाहर आनेवाली या Co₂ कार्बन द्वि ओषजिद् वायु शरीर के दोषों को बाहर कर रही होती है। 'अम्लजन' अन्दर जाती है और 'कार्बन द्वि ओषजिद्' बाहर आती है, इस प्रकार यह प्राणायाम [क] बल देता है और [ख] शरीर के दोषों को दूर करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें प्राणायाम द्वारा यह अन्दर व बाहर जानेवाली वायु बल दे और तथा दोषों को शरीर से दूर करे।