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द्वावि॒मौ वातौ॑ वात॒ आ सिन्धो॒रा प॑रा॒वत॑: । दक्षं॑ ते अ॒न्य आ वा॑तु॒ परा॒न्यो वा॑तु॒ यद्रप॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dvāv imau vātau vāta ā sindhor ā parāvataḥ | dakṣaṁ te anya ā vātu parānyo vātu yad rapaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्वौ । इ॒मौ । वातौ॑ । वा॒तः॒ । आ । सिन्धोः॑ । आ । प॒रा॒ऽवतः॑ । दक्ष॑म् । ते॒ । अ॒न्यः । आ । वा॒तु॒ । परा॑ । अ॒न्यः । वा॒तु॒ । यत् । रपः॑ ॥ १०.१३७.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:137» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इमौ द्वौ वातौ वातः) ये दोनों वायु श्वास प्रश्वास बहते हैं-चलते हैं (आसिन्धोः-आ परावतः) उनमें से एक श्वास स्यन्दमान प्राणाशय हृदयपर्यन्त तक जाता है और दूसरा प्रश्वास बाहिर दूर तक जाता है (ते दक्षम्-अन्यः-आ वातु) हे रोगी तेरे लिए अन्य प्रश्वासरूप वायु बल को लाता है (अन्यः-यत्-रपः-परा वातु) अन्य प्रश्वासरूप पाप रोग दुःख को परे ले जाता है-दूर ले जाता है-दूर करता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य के अन्दर दो वायु काम करती हैं, उनमें से श्वासरूप वायु प्राणाशय हृदय में आती है और जीवनबल को लाती है, दूसरी प्रश्वासरूप वायु बाहर जाती है और रोग को बाहर निकालती है, इसलिए श्वास को धीरे-धीरे लेना चाहिए और प्रश्वास को शीघ्र निकाल देना चाहिए ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बल प्राप्ति व दोष-क्षय

पदार्थान्वयभाषाः - [१] शरीर में (इमौ) = ये (द्वौ वातौ) = दो वायुवें, प्राण और अपान (वातः) = चलती हैं, गति करती हैं। एक बाहर से अन्दर की ओर (आसिन्धोः) = हृदय सिन्धु तक, फेफड़ों तक जाती है। प्राणायाम में इसके द्वारा हम फेफड़ों को खूब भरने का प्रयत्न करते हैं । और दूसरी अन्दर से बाहर फेंकने जानेवाली आ परावतः खूब दूर देश तक जाती है। जितनी दूर से दूर तक यह फेंकी जा सके, उतना ही अच्छा है । [२] इनमें बाहर से अन्दर आनेवाली (अन्यः) = एक वायु (ते) = तेरे लिए (दक्षम्) = शक्ति व बल को (आवातु) = सब प्रकार से प्राप्त कराये। वायुमण्डल की अम्लजन अन्दर आती है और स्वास्थ्य व बल को देनेवाली बनती है । (अन्यः) = दूसरी अन्दर से बाहिर फेंके जानेवाली, (यद्) = जो भी (रपः) = शरीर में दोष हो उसे (परावातु) = दूर कर दे। अन्दर से बाहर आनेवाली या Co₂ कार्बन द्वि ओषजिद् वायु शरीर के दोषों को बाहर कर रही होती है। 'अम्लजन' अन्दर जाती है और 'कार्बन द्वि ओषजिद्' बाहर आती है, इस प्रकार यह प्राणायाम [क] बल देता है और [ख] शरीर के दोषों को दूर करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमें प्राणायाम द्वारा यह अन्दर व बाहर जानेवाली वायु बल दे और तथा दोषों को शरीर से दूर करे।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इमौ द्वौ वातौ वातः) एतौ द्वौ वायू श्वासप्रश्वासौ वहतः (आसिन्धोः-आपरावतः) तत्रैकः स्यन्दमानः प्राणाशयं हृदयपर्यन्तं श्वासरूपो वायुः “प्राणो वै सिन्धुः” [श० ८।५।२।४] द्वितीयो वायुः प्रश्वासो दूरस्थानपर्यन्तं शरीराद्बहिः (ते दक्षम्-अन्यः-आ वातु) तुभ्यं हे रोगिन् ! अन्यः श्वासो बलमानयतु (अन्यः-यत्-रपः-परा वातु) प्रश्वासो यद्रपः पापं रोगदुःखम् “रपः पापफलमिव रोगाख्यं दुःखम्” [यजु० १२।८४ दयानन्दः] “रपो रिप्रमिति पापनाम्नी भवतः” [निरु० ४।२१] परानयतु दूरं करोतु ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Here are two winds of life that blow: one from and upto the sea, the other beyond. May the one bring you strength and vigour of freshness, let the other blow out sin, evil and pollution far away.