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उ॒त दे॑वा॒ अव॑हितं॒ देवा॒ उन्न॑यथा॒ पुन॑: । उ॒ताग॑श्च॒क्रुषं॑ देवा॒ देवा॑ जी॒वय॑था॒ पुन॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta devā avahitaṁ devā un nayathā punaḥ | utāgaś cakruṣaṁ devā devā jīvayathā punaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त । दे॒वाः॒ । अव॑ऽहितम् । देवाः॑ । उत् । न॒य॒थ॒ । पुन॒रिति॑ । उ॒त । आगः॑ । च॒क्रुष॑म् । दे॒वः॒ । देवाः॑ । जी॒वय॑थ । पुन॒रिति॑ ॥ १०.१३७.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:137» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:11» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में पतित का उद्धार, रोगी के रोग का निवारण विद्वान् वैद्यों द्वारा करना चाहिये तथा आश्वासन भी देना चाहिये, यह उपदेश है।

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) हे विद्वानों ! (उत) अपि तु हाँ (अवहितम्) नीचे गये हुए को-स्वास्थ्यहीन को (पुनः) फिर (देवाः) विद्वानों ! (उन्नयथ) उन्नत करो (उत) और (देवाः) विद्वानों ! (आगः) अपथ्यरूप पाप (चक्रुषम्) कर चुकनेवाले को (देवाः) वैद्य विद्वानों ! (पुनः-जीवयथ) पुनर्जीवित करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - कोई मनुष्य यदि चरित्र से गिर जावे, तो विद्वान् लोग दया करके उसे चरित्रवान् बनावें और यदि कोई अपथ्य करके अपने को रोगी बना लेवे, तो विद्वान् वैद्य उसके रोग को दूर कर उसमें जीवनसंचार करें ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पुनर्जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] शरीर में सब देवताओं का वास है। सूर्य इसमें चक्षुरूप से तो वायु प्राणों के रूप से तथा अग्नि वाणी के रूप से रह रही है। इसी प्रकार अन्य देव भी भिन्न-भिन्न रूपों में यहाँ रहते हैं। इन बाह्य देवों का अन्तर्देवों से मेल बना रहे तो मनुष्य स्वस्थ होता है, अन्यथा अस्वस्थ । चन्द्रमा मन रूप से रहता है। इनकी अनुकूलता के न रहने पर मन विकृत हो जाता है और उसमें अशुभ वृत्तियाँ पनपने लगती हैं। सो देवों से कहते हैं कि हे (देवा:) = देवो ! (उत अवहितम्) = जो रुग्ण होकर नीचे खाट पर पड़ गया है उसे भी (पुनः उन्नयथा) = फिर से उठा दो। [२] और (देवाः) = हे देवो! आप (आगः चक्रुषम् उत) = अपराध को कर चुके हुए इस व्यक्ति को भी (उन्नयथा) = उठाओ। इसकी इन अशुभ वृत्तियों को दूर कर दो, [२] हे (देवाः देवा:) = सब देवो ! आप इसे (पुनः) = फिर से (जीवयथा) = जिला दो । व्याधियों ने इसे शारीरिक दृष्टि से तथा आधियों ने मानस दृष्टि से गिरा रखा था, आप कृपा करके इसे आधि-व्याधि से ऊपर उठाकर फिर से नया जीवन प्रदान करनेवाले होवो |
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सब प्राकृतिक देवों की अनुकूलता से हमें पुनर्जीवन प्राप्त हो ।
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते पतितस्योद्धरणं रुग्णस्य रोगनिवारणं च विद्वद्भिर्वैद्यैश्च तथा आश्वासनदानं चापि कार्यमित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः-उत-अवहितम्) हे विद्वांसः ! यूयम्-अपि नीचैः स्थितं जनं (पुनः-देवाः-उत् नयथ) पुनर्विद्वांसः ! उन्नयथ-उपरि नयथ (उत) अपि च (देवाः-आगः-चक्रुषम्) हे विद्वांसो वैद्याः ! पापमपथ्यं कृतवन्तं (देवाः-पुनः-जीवयथ) विद्वांसः ! पुनर्जीवयथ ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Devas, sages and noble scholars, raise the frustrated and the fallen. O divinities, save the despaired and raise him again. O saints, redeem the man committed to sin. O divines, give him the life again. Let the lost live once again.