पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र का प्राणसाधक (अन्तरिक्षेण पतति) = सदा मध्य मार्ग से चलता है। 'युक्ताहार विहार' बनता है । प्राणायाम का लाभ इस युक्तचेष्ट पुरुष को ही होता है। यह (विश्वारूपा अवचाकशत्) = सब पदार्थों को सूक्ष्मता से देखता है, उनके तत्त्व को जानता हुआ उनका ठीक ही प्रयोग करता है । [२] (मुनिः) = यह मौन के साथ मनन करनेवाला होता है। इस चिन्तन का ही परिणाम है कि यह (देवस्य देवस्य) = प्रत्येक इन्द्रिय के (सौकृत्याय) = उत्तम कृत्य के लिए होता है । इसकी सब इन्द्रियाँ शुभ ही कर्मों को करनेवाली होती हैं। यह सबका (सखा) = मित्र होता है। और (हितः) = सबके हित की कामना व करणीवाला होता है । यह कभी दूसरों के अहित के दृष्टिकोण से कार्यों को नहीं करता।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणसाधक सदा मध्यमार्ग से चलता है। विचारशील होता है, सदा सबका हित करने की वृत्तिवाला होता है।