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मा नो॑ हिंसीज्जनि॒ता यः पृ॑थि॒व्या यो वा॒ दिवं॑ स॒त्यध॑र्मा ज॒जान॑ । यश्चा॒पश्च॒न्द्रा बृ॑ह॒तीर्ज॒जान॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā no hiṁsīj janitā yaḥ pṛthivyā yo vā divaṁ satyadharmā jajāna | yaś cāpaś candrā bṛhatīr jajāna kasmai devāya haviṣā vidhema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा । नः॒ । हिं॒सी॒त् । ज॒नि॒ता । यः । पृ॒थि॒व्याः । यः । वा॒ । दिव॑म् । स॒त्यऽध॑र्मा । ज॒जान॑ । यः । च॒ । अ॒पः । च॒न्द्राः । बृ॒ह॒तीः । ज॒जान॑ । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥ १०.१२१.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:121» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (पृथिव्याः) पृथिवी का (जनिता) उत्पादक (वा) और (यः) जो हि (सत्यधर्मा) सत्यनियमवाला परमात्मा (दिवम्) द्युलोक को (जजान) उत्पन्न करता है (च) और (यः) जो (बृहती) विस्तृत (चन्द्राः) आह्लाद करने-मन को भानेवाली (आपः) अन्तरिक्ष विभक्तियों को (जजान) उत्पन्न करता है (कस्मै...) पूर्ववत् ॥९॥
भावार्थभाषाः - जिस परमात्मा ने पृथिवीलोक, द्युलोक, चन्द्रताराओं से भरा मन भानेवाला अन्तरिक्ष उत्पन्न किया है, उस सुखस्वरूप प्रजापति के लिये उपहाररूप में अपने आत्मा का समर्पण करना चाहिये ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

रक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो (पृथिव्याः) = इस प्राणियों के निवास स्थानभूत पृथ्वी का (जनिता) = उत्पादक है, वह (नः) = हमें (मा हिंसीत्) = मत हिंसित करे । (वा) = अथवा वह (सत्यधर्मा) = सत्य का धारण करनेवाला प्रभु (यः) = जो (दिवं जजान) = द्युलोक को उत्पन्न करता है, वह हमें हिंसित न करे। वस्तुतः वह प्रभु पृथ्वीलोक व द्युलोक को उत्पन्न करके प्राणियों की रक्षा की व्यवस्था करता है । पृथिवी हमारी मातृ-स्थानापन्न होती है और द्युलोक हमारा पितृतुल्य होता है । 'द्यौ पिता, पृथिवी माता'। जैसे 'माता-पिता' सन्तानों का रक्षण करते हैं, उसी प्रकार प्रभु इन द्युलोक व पृथ्वीलोक के द्वारा हमारा रक्षण करते हैं । [२] और (यः) = जो प्रभु इन (चन्द्राः) = सब आह्लादों को जन्म देनेवाले (बृहती: आपः) = महान् व्यापक महत्तत्त्व को (जजान) = पैदा करता है । प्रकृति से प्रभु ही इस महत्तत्त्व को पैदा करते हैं । उस (कस्मै) = आनन्दमय देवाय सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन से (विधेम) = हम पूजा करें। प्रकृति का पहला परिणाम 'महत्तत्त्व' है, यही समष्टि बुद्धि भी कहलाता है। इस 'समष्टि बुद्धि' के रूप में यह वस्तुतः 'चन्द्रा: ' सब आह्लादों का कारण है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ– द्युलोके, पृथ्वीलोके व महत्तत्त्व के जन्म देनेवाले प्रभु हमें हिंसित होने से बचाएँ ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) यः खलु (पृथिव्याः-जनिता) भूमेरुत्पादयिता (वा) अथ च “वा समुच्चयार्थे” [निरु० १।५] (यः) यो हि (सत्यधर्मा) सत्यनियमवान् (दिवं जजान) द्युलोकमुत्पादयति (च) अपि च (यः) यः खलु (बृहतीः-चन्द्राः-आपः-जजान) महतीराह्लादकारिणीरन्तरिक्षविभक्तिर्नक्षत्रयुताः ‘आपोऽन्तरिक्षनाम” [निघ० १।३] उत्पादयति (कस्मै....) पूर्ववत् ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May the one lord supreme never hurt us, the lord that is creator of the earth, who also creates the heavens and who also creates the vast oceans of energies and waters, all beauteous, soothing and blissful, the master, controller and ordainer of all the laws of existence in operation in truth. Let us worship that one lord supreme with offers of faith and havis.