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येन॒ द्यौरु॒ग्रा पृ॑थि॒वी च॑ दृ॒ळ्हा येन॒ स्व॑ स्तभि॒तं येन॒ नाक॑: । यो अ॒न्तरि॑क्षे॒ रज॑सो वि॒मान॒: कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yena dyaur ugrā pṛthivī ca dṛḻhā yena sva stabhitaṁ yena nākaḥ | yo antarikṣe rajaso vimānaḥ kasmai devāya haviṣā vidhema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येन॑ । द्यौः । उ॒ग्रा । पृ॒थि॒वी । च॒ । दृ॒ळ्हा । येन॑ । स्व१॒॑रिति॑ स्वः॑ । स्त॒भि॒तम् । येन॑ । नाकः॑ । यः । अ॒न्तरि॑क्षे । रज॑सः । वि॒ऽमानः॑ । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥ १०.१२१.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:121» मन्त्र:5 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (येन) जिस परमात्मा ने (उग्रा द्यौः) तेजस्वी द्यौ (च) और (दृढा पृथिवी च) कठोर पृथिवी धारण की है (येन) जिसने (स्वः स्तभितम्) मध्य स्थान को सम्भाला हुआ है (येन नाकः) जिसने मोक्ष धारण किया हुआ है (यः) जो (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष में (रजसः-विमानः) लोकमात्र का विशेषरूप से मानकर्त्ता साधनेवाला है (कस्मै...) पूर्ववत् ॥५॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा तेजस्वी द्युमण्डल को और कठोर पृथिवी को, मध्य स्थान को और लोकमात्र को तथा मोक्षधाम को सम्भाले हुए है, उस ऐसे सुखस्वरूप प्रजापति के लिये उपहाररूप से अपनी आत्मा को समर्पित करना चाहिये ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'तेजस्वी द्युलोक' व 'दृढ़ पृथिवी'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (येन) = जिस प्रभु ने (द्यौः उग्रा) = द्युलोक को बड़ा तेजस्वी बनाया है, (च) = और (पृथिवी) = पृथिवी को (दृढ़ा) = दृढ़ किया है। द्युलोक सूर्य व सितारों से देदीप्यमान है, और पृथिवी आकाश से गिरनेवाले ओलों को किस प्रकार अविचल भाव से सहन करती है। (येन) = जिस प्रभु ने (स्वः) = इस देदीप्यमान सूर्य को अथवा स्वर्गलोक को (स्तभितम्) = थामा है, तथा (येन) = जिसने (नाकः) = मोक्षलोक का धारण किया है । [२] (यः) = जो प्रभु (अन्तरिक्षे) = इस अन्तरिक्ष लोक में (रजसः) = जल का (विमानः) = एक विशिष्ट व्यवस्था के द्वारा निर्माण करनेवाले हैं। सूर्य की उष्णता से वाष्पीभूत होकर जल ऊपर उठता है, ये वाष्प ऊपर जाकर ठण्डे प्रदेश में पहुँचने पर फिर से घनीभूत होकर बादल के रूप में होते हैं । इस प्रकार अन्तरिक्ष लोक में जल का निर्माण होता है। इस (कस्मै) = आनन्दमय (देवाय) = सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन से (विधेम) = हम पूजा करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- द्युलोक, पृथ्वीलोक, स्वर्ग व मोक्ष सभी का धारण करनेवाले प्रभु हैं। ये प्रभु ही एक विशिष्ट व्यवस्था द्वारा अन्तरिक्ष में जलों का निर्माण करते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (येन-उग्रा द्यौः) येन परमात्मा तेजस्विनी द्यौः (दृढा पृथिवी च) कठोरा पृथिवी च धारिता (येन स्वः स्तभितम्) येन मध्यमं स्थानं स्थिरीकृतं (येन नाकः) येन परमात्मना मोक्षो धारितः (यः-अन्तरिक्षे) योऽन्तरिक्षे (रजसः-विमानः) लोकमात्रस्य विशेषेण मानकर्त्ता संसाधयिता (कस्मै....) पूर्ववत् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - By him the suns blaze, by him the earth is firm, by him the heaven of bliss is sustained, by him the ecstasy of Moksha is constant, and he is the creator of the worlds of space. Let us worship the lord refulgent and omnipotent with offers of homage in havis.