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यस्ये॒मे हि॒मव॑न्तो महि॒त्वा यस्य॑ समु॒द्रं र॒सया॑ स॒हाहुः । यस्ये॒माः प्र॒दिशो॒ यस्य॑ बा॒हू कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasyeme himavanto mahitvā yasya samudraṁ rasayā sahāhuḥ | yasyemāḥ pradiśo yasya bāhū kasmai devāya haviṣā vidhema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑ । इ॒मे । हि॒मऽव॑न्तः । म॒हि॒ऽत्वा । यस्य॑ । स॒मु॒द्रम् । र॒सया॑ । स॒ह । आ॒हुः॒ । यस्य॑ । इ॒माः । प्र॒ऽदिशः॑ । यस्य॑ । बा॒हू इति॑ । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥ १०.१२१.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:121» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इमे हिमवन्तः) ये हिमालय पर्वतप्रदेश (यस्य) जिसके (महित्वा) महत्त्व को (आहुः) वर्णन करते हैं, (रसया सह समुद्रम्) नदी के साथ समुद्र भी जिसके महत्त्व का वर्णन करते हुए से लगते हैं, (यस्य) जिसकी (इमाः प्रदिशः) ये सब चारों ओर की दिशाएँ (बाहू) बाहू जैसी-फैली हुयी हैं (कस्मै....) पूर्ववत् ॥४॥
भावार्थभाषाः - नदियों के साथ समुद्र, हिमालय पर्वत और समस्त दिशाएँ परमात्मा के महत्त्व को दर्शा रही हैं, उस ऐसे सुखरूप प्रजापति के लिये उपहाररूप में अपनी आत्मा को समर्पित करना चाहिये ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'पर्वत - पृथ्वी - नदी' सब प्रभु की विभूति हैं

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (इमे हिमवन्तः) = ये हिमाच्छादित पर्वत (यस्य) = जिसकी (महित्वा) = महिमा को (आहुः) = प्रकट कर रहे हैं। और (रसया सह) = इस पृथ्वी के साथ (समुद्रम्) = समुद्र (यस्य) = जिसकी महिमा को प्रकट कर रहा है। हिमाच्छादित पर्वतों में, समुद्र में, पृथिवी में सर्वत्र प्रभु की महिमा का दर्शन होता है । [२] (इमाः प्रदिशः) = ये प्रकृष्ट दिशाएँ (यस्य) = जिसकी महिमा को प्रकट करती हैं और वस्तुतः ये सब दिशाएँ (यस्य बाहू) = जिसकी बाहुएँ ही है। 'बाह् प्रयत्ने' इन सब दिशाओं में प्रभु की कृतियों का ही दर्शन होता है। उस (कस्मै) = आनन्दस्वरूप (देवाय) = प्रकाशमय या सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन से (विधेम) = पूजा करें।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्रभु की ही विभूति है, ये सब पर्वत-पृथिवी-समुद्र प्रभु की ही महिमा का गायन करते हैं। इन सब में प्रभु की महिमा को देखते हुए हम प्रभु का ही स्तवन करें ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इमे हिमवन्तः) एते हिमालयाः पर्वताः पर्वतप्रदेशाः (यस्य महित्वा-आहुः) यस्य-महत्त्वं वर्णयन्तीव (रसया सह समुद्रम्) नद्या सह समुद्रः “समुद्रं नपुंसकं छान्दसम्” नदीसमुद्राः-यस्य महत्त्वं वर्णयन्तीव (यस्य-इमाः-प्रदिशः-बाहू) यस्येमाः प्रदिशः खलु बहू इवेति (कस्मै....) पूर्ववत् ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Whose majesty these snow covered mountains proclaim, whose depth and grandeur the ocean with rivers declares, whose arms these quarters of space extend to infinity, that lord of light and sublimity let us worship with offers of homage in havis.