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य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः । यस्य॑ छा॒यामृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya ātmadā baladā yasya viśva upāsate praśiṣaṁ yasya devāḥ | yasya chāyāmṛtaṁ yasya mṛtyuḥ kasmai devāya haviṣā vidhema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । आ॒त्म॒ऽदाः । ब॒ल॒ऽदाः । यस्य॑ । विश्वे॑ । उ॒प॒ऽआस॑ते । प्र॒ऽशिष॑म् । यस्य॑ । दे॒वाः । यस्य॑ । छा॒याम् । ऋत॑म् । यस्य॑ । मृ॒त्युः । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥ १०.१२१.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:121» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (आत्मदाः) आत्मबोध का देनेवाला (बलदाः) बल का देनेवाला (यस्य) जिसके (प्रशिषम्) प्रशासन को (विश्वे) सब साधारण जन (उपासते) सेवन करते हैं (यस्य) जिसके प्रशासन को (देवाः) विशिष्ट विद्वान् सेवन करते हैं, आचरण में लाते हैं (यस्य छाया) जिसकी छाया-आश्रय-शरण (अमृतम्) अमृत है (यस्य मृत्युः) जिसकी अच्छाया-अशरण मृत्यु है (कस्मै देवाय हविषा विधेम) पूर्ववत् ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा संसार में भेजकर आत्मबोध देता है, अपनी सङ्गति से बल देता है, उसका नियम सब सेवन करते हैं, कोई तोड़ नहीं सकता, उसकी शरण लेने से अमृत हो जाता है, अन्यथा मृत्यु को प्राप्त होता रहता है, उस सुखस्वरूप प्रजापति को उपहाररूप से अपने आत्मा का समर्पण करना चाहिये ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बल के द्वारा शोधन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो प्रभु (आत्मदा) = [दैप् शोधने] हम आत्माओं का शोधन करनेवाले हैं। इस शोधन के लिए ही बलदा-हमें बलों के देनेवाले हैं। निर्बलता में ही पाप व मलिनता आती है। [२] (यस्य) = जिस प्रभु की (विश्वे) = सब (उपासते) = उपासना करते हैं। और समय प्रभु का न भी स्मरण करें, आपत्ति आने पर तो उसे याद करते ही हैं। पर (देवाः) = देव लोग (यस्य) = जिसकी (प्रशिषम्) = आज्ञा को उपासित करते हैं । प्रभु के गुणगान ही न करते रहकर प्रभु के आदेशों का पालन करने का प्रयत्न करते हैं । सामान्य लोग प्रभु की, पर ज्ञानी प्रभु की आज्ञा की उपासना करते हैं । [३] (यस्य) = जिस प्रभु का (छाया) = किया हुआ छेदन-भेदन दिया हुआ दण्ड (अमृतम्) = हमारी अमरता के लिए हैं । अर्थात् प्रभु का दण्ड कभी बदले की भावना से न होकर हमारे सुधार के लिए ही होता है । (यस्य मृत्युः) = प्रभु की, प्रभु से प्राप्त करायी गयी, तो (मृत्युः) = मृत्यु भी हमारी अमरता के लिए है। उस (कस्मै) = आनन्दमय (देवाय) = सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन से (विधेम) = हम पूजा को करें ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु शक्ति को देकर हमारा शोधन करते हैं। हम प्रभु के आदेशों का पालन करके प्रभु के सच्चे पुजारी होते हैं। प्रभु से दिया गया दण्ड भी हमारा कल्याण करनेवाला है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः-आत्मदाः-बलदाः) य आत्मत्वस्य-आत्मबोधस्य दाता बलस्य च दाता स्वसङ्गत्या, (यस्य प्रशिषं विश्वे-उपासते) यस्य प्रशासनं सर्वे साधारणा जनाः सेवन्ते (यस्य देवाः) यस्य प्रशासनं विशिष्टा विद्वांसश्च सेवन्ते-आचरन्ति (यस्य छाया-अमृतम्) यस्य छाया-आश्रयोऽमृतम् (यस्य मृत्युः) यस्य ‘अच्छाया’ ‘सामर्थ्यात्’ मृत्युर्नाशोऽस्ति (कस्मै देवाय हविषा-विधेम) पूर्ववत् ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The lord who is the giver of birth to the soul with its power and potential in body, whose glory all the divinities of the world celebrate in song, whose shade of protection is immortality and falling off is death, to him we offer our homage and worship in hymns with havi.