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हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भः सम॑वर्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ आसीत् । स दा॑धार पृथि॒वीं द्यामु॒तेमां कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hiraṇyagarbhaḥ sam avartatāgre bhūtasya jātaḥ patir eka āsīt | sa dādhāra pṛthivīṁ dyām utemāṁ kasmai devāya haviṣā vidhema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हि॒र॒ण्य॒ऽग॒र्भः । सम् । अ॒व॒र्त॒त॒ । अग्रे॑ । भू॒तस्य॑ । जा॒तः । पतिः॑ । एकः॑ । आ॒सी॒त् । सः । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । द्याम् । उ॒त । इ॒माम् । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥ १०.१२१.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:121» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:7» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में जगत् से पूर्व परमात्मा की वर्तमानता, तीनों लोकों का वह धारक, आत्माओं का ज्ञानदाता, उसकी शरण अमृत, वह परमाणुओं का प्रेरक है इत्यादि विषय हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यगर्भः) हिरण्यमय चमचमाता हुआ गर्भ-मध्यवर्त्ती गर्भसदृश भुवन जिसका है या हिरण्य-प्रकाशमान सूर्यादि पिण्ड मध्य में जिसके हैं, वह हिरण्यगर्भ-परमात्मा (भूतस्य जातः) उत्पन्न हुए जगत् का प्रसिद्ध (एकः पतिः) एक ही स्वामी (आसीत्) है (अग्रे समवर्त्तत) जगत् से पूर्व सम्यक् वर्त्तमान रहता है, वह (पृथिवीम्) प्रथित फैले हुए अन्तरिक्ष को (द्याम्) द्युलोक को (उत) और (इमाम्) इस पृथिवी को (दाधार) धारण करता है (कस्मै देवाय) सुखस्वरूप प्रजापति-परमात्मा के लिये (हविषा विधेम) उपहार रूप से-अपने आत्मा को समर्पित करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा जगत् से पूर्व वर्त्तमान था और है, सूर्यादि प्रकाशमान पिण्डों को अपने अन्दर रखता हुआ सारे जगत् का स्वामी पृथिवी, अन्तरिक्ष और द्युलोक को धारण करता है, उस परमात्मा की आत्मभाव से उपासना करनी चाहिये ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सृष्टि का निर्माण व धारण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] 'हिरण्यं वै ज्योतिः, तद् गर्भे यस्य' (हिरण्यगर्भः) = ज्योतिर्मय गर्भवाला वह प्रभु (अग्रे समवर्तत) = सृष्टि के बनने से पूर्व ही था, वह कभी बना नहीं - 'स्वयम्भू' है । (जातः) = सदा से प्रादुर्भूत हुआ हुआ यह प्रभु (भूतस्य) = पृथिवी आदि का तथा प्राणिमात्र का (एकः पतिः) = अद्वितीय रक्षक (आसीत्) = सदा से है। प्रभु सृष्टि का निर्माण करते हैं, अपनी सर्वज्ञता से वे इसे पूर्ण ही बनाते हैं। सृष्टि का निर्माण करके वे इसमें सब प्राणियों का रक्षण करते हैं । [२] (सः) = वे प्रभु (पृथिवीम्) = पृथिवी को, विस्तृत अन्तरिक्ष को (दाधार) = धारण करते हैं। (द्यां) = द्युलोक को धारण करते हैं, (उत) = और (इमाम्) = इस पृथिवी को धारण करते हैं। धारण करने के कारण ही (कस्मै) = उस आनन्दमय (देवाय) = सब कुछ देनेवाले प्रभु के लिए (हविषा) = दानपूर्वक अदन से (विधेम) = हम पूजा करते हैं। प्रभु सब कुछ देनेवाले हैं, प्रभु का उपासक भी देनेवाला बनता है। उस जैसा बनकर ही तो उसकी उपासना हो सकती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु सृष्टि का अपनी सर्वज्ञता से निर्माण करते हैं और इसका धारण करते हैं। हम भी निर्माणात्मक व धारणात्मक कर्मों में लगकर प्रभु का स्मरण करनेवाले बनें ।
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते जगदुत्पत्तेः पूर्वं वर्तमानो लोकत्रयस्य धारकश्चालकः स्वामी जीवात्मनां ज्ञानदाताऽमृतरूपं च तच्छरणं कामानां पूरयिता परमाणूनां प्रेरयिता चेत्येवमादयो विषयाः सन्ति।

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यगर्भः) हिरण्यः-हिरण्यमयः “हिरण्यो हिरण्यमयो” [निरु० १०।२३] “मयट्प्रत्ययस्य लोपश्छान्दसः” हिरण्याः प्रकाशमयाः-सूर्यादयो गर्भे-गर्भसदृशे मध्येऽस्य स हिरण्यगर्भः-“हिरण्यानि सूर्यादि तेजांसि गर्भे यस्य स परमात्मा” [यजु० २५।१० दयानन्दः] स परमात्मा (भूतस्य जातः-एकः पतिः-आसीत्) उत्पन्नस्य जगतः प्रसिद्ध एक-एव स्वामी पालकोऽस्ति सः (अग्रे सम् अवर्तत) जगतः पूर्वमेव सम्यग् वर्त्तते वर्त्तमानो भवति हि (सः पृथिवीं द्याम्-उत-इमां दाधार) स खल्वन्तरिक्षम् “पृथिवी-अन्तरिक्षनाम” [निघ० १।३] द्युलोकमपि चेमां पृथिवीं धारयति (कस्मै देवाय हविषा विधेम) सुखस्वरूपाय प्रजापतये परमात्मने “प्रजापतिर्वैः कः” [ऐ० २।३७] “सुखं वै कः” [गो० उ० ६।३] उपहाररूपेण स्वात्मानं समर्पयेम ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Hiranyagarbha, the golden Seed, one lord of light and the sole creator of lights such as the sun, existed before creation (as he ever exists). He alone was and is the lord and sustainer of all forms of created being. He holds and sustains the earth and heaven and supports this whole universe. We worship the same one lord and offer him homage with oblations of fragrant materials.