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हन्ता॒हं पृ॑थि॒वीमि॒मां नि द॑धानी॒ह वे॒ह वा॑ । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

hantāham pṛthivīm imāṁ ni dadhānīha veha vā | kuvit somasyāpām iti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हन्त॑ । अ॒हम् । पृ॒थि॒वीम् । इ॒माम् । नि । द॒धा॒नि॒ । इ॒ह । वा॒ । इ॒ह । वा॒ । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥ १०.११९.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:119» मन्त्र:9 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हन्त-अहम्) अरे मैं (इमां पृथिवीम्) इस पार्थिव तनू को देह को (इह वा नि दधानि) इस लोक में या इस योगभूमि में (इह वा) अथवा उस मोक्ष में या योगभूमि में नियुक्त करूँ ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के आनन्दरस को बहुत पी चुकनेवाला विचार किया करता है कि अपनी इस देह को इस लोक में या योगभूमि में अभी रखूँ या मोक्ष में या योगभूमि में रखूँ, इस प्रकार उसका अधिकार हो जाता है ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

यहाँ रख दूँ या वहाँ ?

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (कुवित्) = खूब ही (सोमस्य) = सोम का (अपाम्) = मैंने पान किया है (इति) = इस कारण (हन्त) = पूर्ण सम्भव है कि (अहम्) = मैं (इमां पृथिवीम्) = इस पृथिवी को (इह निदधानि) = यहाँ रख दूँ (वा) = अथवा (इह वा) = इस दूसरे स्थान में उसे स्थापित कर दूँ । अन्तरिक्षलोक में स्थापित कर दूँ अथवा द्युलोक में स्थापित कर दूँ। [२] सोमपान से, वीर्यरक्षण से मनुष्य अपने अन्दर इतनी शक्ति का अनुभव करता है कि पृथिवी को भी स्थानान्तरित करने का स्वप्न लेता है। सारी स्थिति को ही परिवर्तित करने का सामर्थ्य अपने में देखता है। सारा संसार एक ओर हो और यह दूसरी ओर तो भी यह पराजय का स्वप्न नहीं देखता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वीर्यरक्षण से मनुष्य सारे संसार को भी परिवर्तित कर देने का सामर्थ्य अपने में अनुभव करता है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हन्त-अहम्-इमां पृथिवीम्-इह नि दधानि-इह वा-इह वा) अरे-अहं खल्विमां पार्थिवीं तनूं “यच्छरीरं सा पृथिवी” [ऐ० आ० २।३।३] इहात्र लोके योगभूमौ यद्वाऽत्रामुष्मिन् मोक्षे योगभूमौ निदधानि, (कुवित्०) पूर्ववत् ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - And may be I shall hold the beauty and generosity of this earthly existence here or, later, there, for I have drunk of the soma of the spirit divine.