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अ॒भि द्यां म॑हि॒ना भु॑वम॒भी॒३॒॑मां पृ॑थि॒वीं म॒हीम् । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi dyām mahinā bhuvam abhīmām pṛthivīm mahīm | kuvit somasyāpām iti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि । द्याम् । म॒हि॒ना । भु॒व॒म् । अ॒भि । इ॒माम् । पृ॒थि॒वीम् । म॒हीम् । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥ १०.११९.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:119» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (महिना) मैं अपनी महिमा से महान् सामर्थ्य से (द्याम्-अभि भुवम्) द्युलोक को अभिभूत करता हूँ (इमां महीम्) इस महती (पृथिवीम्-अभि) पृथिवी को अभिभूत करता हूँ, क्योंकि मैंने परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान किया है ॥८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के रस का बहुत पान करनेवाला द्युलोक और पृथिवीलोक को भी अपने ज्ञान में रखता है ॥८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

द्युलोक और पृथिवीलोक का विजय

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (कुवित्) = खूब ही (सोमस्य) = सोम का (अपाम्) = मैंने पान किया है, (इति) = इस कारण (महिना) = अपनी महिमा से (द्यां अभिभुवम्) = मैंने द्युलोक का अभिभव किया है और (इमाम्) = इस (महीं पृथिवीम्) = विशाल पृथिवी को भी मैंने अभिभूत किया है। [२] सोमपान से वह शक्ति प्राप्त होती है जिससे हम द्युलोक व पृथिवीलोक का विजय कर पाते हैं। ज्ञान की प्राप्ति ही द्युलोक का विजय है और शक्ति की प्राप्ति पृथिवीलोक का ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोम के रक्षण से मस्तिष्क ज्ञानदीप्त बनता है और शरीर शक्ति सम्पन्न होता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (महिना द्याम्-अभि भुवम्) अहं महिम्ना महासामर्थ्येन द्युलोकमभिभवामि  (इमां महीं पृथिवीम्-अभि) एतां महतीं पृथिवीमभिभवामि (कुवित्०) पूर्ववत् ॥८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - By the grandeur of my divine experience I realise the greatness of the solar regions and the greatness of this great earth, for I have drunk of the soma of the divine spirit.