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न॒हि मे॑ अक्षि॒पच्च॒नाच्छा॑न्त्सु॒: पञ्च॑ कृ॒ष्टय॑: । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahi me akṣipac canācchāntsuḥ pañca kṛṣṭayaḥ | kuvit somasyāpām iti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि । मे॒ । अ॒क्षि॒ऽपत् । च॒न । अच्छा॑न्त्सुः । पञ्च॑ । कृ॒ष्टयः॑ । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥ १०.११९.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:119» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:26» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्च कृष्टयः) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद ये पाँचों जन (मे-अक्षिपत्) परमात्मा में प्रवृत्त मेरे नेत्रपात-नेत्रसञ्चार को (न हि-चन) नहीं कोई (अच्छान्त्सुः) आच्छादन या अवरोध कर सकते, क्योंकि मैंने परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान किया है ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान करनेवाले के नेत्रसञ्चार-दर्शनव्यवहार को कोई रोक नहीं सकता ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विषय विमुखता

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (कुवित्) = खूब ही (सोमस्य) = सोम का (अपाम्) = मैंने पान किया है (इति) = इस कारण (पञ्च) = पाँचों (कृष्टयः) = हमें अपनी ओर खेंचनेवाले विषय (मे) = मेरे (अक्षिपत् चन) = आँख के पतन को भी (नहि) = नहीं (अच्छान्त्सुः) = अपवृत कर सकते, अर्थात् विषयों की ओर मेरी आँख नहीं जाती । [२] विषय आकर्षक हैं । इनकी आपातरमणीयता सभी को लुभा लेती है। पर सोमरक्षण के कारण मुझे वह शक्ति प्राप्त होती है, जिससे कि मैं अपनी इन्द्रियों को इन विषयों की ओर जाने से रोक पाता हूँ। ये विषय मेरी आँख को अपनी ओर नहीं खैंच पाते।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमपान के द्वारा मैं अपने मन को वशीभूत करके इन्द्रियों को विषयों की ओर जाने से रोक पाता हूँ ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पञ्च कृष्टयः) ब्राह्मक्षत्रियविट्शूद्रनिषादाः पञ्चजनाः “कृष्टयः-मनुष्यनाम” [निघ० २।३] (मे-अक्षिपत्) मम परमात्मनि प्रवृत्तं नेत्रपातं-नेत्रसञ्चारं दूरदर्शित्वं (न हि चन-अच्छान्त्सुः) न हि कदाचिदावृण्वन्ति-न हि अवरोधयन्ति (कुवित् सोमस्य अपाम् इति) पूर्ववत् ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Nor can all the five communities elude or blur the vision of my eye and what I see, for I have drunk of the soma of the divine spirit.