अ॒हम॑स्मि महाम॒हो॑ऽभिन॒भ्यमुदी॑षितः । कु॒वित्सोम॒स्यापा॒मिति॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
मन्त्र उच्चारण
aham asmi mahāmaho bhinabhyam udīṣitaḥ | kuvit somasyāpām iti ||
पद पाठ
अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । म॒हा॒ऽम॒हः । अ॒भि॒ऽन॒भ्यम् । उ॒त्ऽई॑षितः । कु॒वित् । सोम॑स्य । अपा॑म् । इति॑ ॥ १०.११९.१२
ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:119» मन्त्र:12
| अष्टक:8» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:6
| मण्डल:10» अनुवाक:10» मन्त्र:12
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अहं महामहः) मैं महाप्राण दीर्घायु होता हुआ (अभिनभ्यम्) अन्तरिक्ष के प्रति (उदीषितः) ऊपर उठे हुए सूर्य की भाँति मोक्ष में हूँ (कुवित्०) पूर्ववत् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के आनन्दरस का बहुत पान करनेवाला उपासक अन्तरिक्ष में उठे सूर्य की भाँति मोक्ष में पहुँचा हुआ महादीर्घ जीवन प्राप्त करता है ॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार
सूर्यसम तेजस्वी
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (कुवित्) = खूब ही (सोमस्य) = सोम का (अपाम्) = मैंने पान किया है, वीर्य को शरीर में ही सुरक्षित किया है (इति) = इस कारण (अहम्) = मैं (महामहः) = महान् तेजवाला (अस्मि) = हुआ हूँ। ऐसा प्रतीत होता है कि (अभिनभ्यम्) = नाभि में, केन्द्र में होनेवाले अन्तरिक्षलोक में (उदीषित:) = उद्गत सूर्य ही होऊँ । जैसे सूर्य तेजस्वी है, उसी प्रकार मैं तेजस्वी हो गया हूँ। [२] सोम का, वीर्य का रक्षण मनुष्य को सूर्य के समान तेजस्वी बनाता है। वस्तुतः इस पिण्ड में वीर्यकण की वही स्थिति है जो ब्रह्माण्ड में सूर्य की। सुरक्षित हुआ हुआ सोमकण मुझे सूर्यसम दीप्तिवाला करता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-सोमरक्षण से मैं सूर्य की तरह चमक उठता हूँ ।
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ब्रह्ममुनि
पदार्थान्वयभाषाः - (अहं महामहः-अभिनभ्यम्-उदीषितः) अहं नभ्यमन्तरिक्षमभि खलूदयं गतः सूर्य इव मोक्षेऽभिभवामि “प्राण-एव महः” [गो० १।५।१५] महाप्राणः सन् संसारेऽभि भवामि ॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम
पदार्थान्वयभाषाः - I am greatest of the greats, shining bright, radiating upwards to the skies and spaces, for I have drunk of the soma of the spirit divine.
